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Bihar Ka Veer Yodha Kunwar Singh: बिहार के बहादुर वीर योद्धा, जिसने 80 साल की उम्र में अंग्रेजों को कर दिया था परास्त

Bihar Ka Veer Yodha Kunwar Singh: वीर कुंवर सिंह ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और एक साहसी योद्धा के रुप में उभरे थे। आइए जानते हैं उनकी वीरता की कहानी

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 20 Jan 2025 2:03 PM IST
Bihar Ka Veer Yodha Kunwar Singh Ka Jivan Parichay
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Bihar Ka Veer Yodha Kunwar Singh Ka Jivan Parichay (Photo - Social Media)

Bihar Ka Veer Yodha Kunwar Singh: भारत के इतिहास में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम आजादी की पहली लड़ाई के रूप में जाना जाता है। इस लड़ाई में वीर योद्धा, 80 वर्षीय कुंवर सिंह, ने भोजपुर की धरती पर अंग्रेजी शासन को चुनौती दी।

वीर कुंवर सिंह (Veer Kunwar Singh) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और एक साहसी योद्धा के रुप में उभरे। जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे बिहार के अररिया जिले (Araria) के जगदीशपुर के राजा थे। अपनी वीरता, साहस और नेतृत्व क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं। कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उनकी सेना का डटकर मुकाबला किया। उन्होंने भारतीय सैनिकों को एकजुट किया और 1857 के विद्रोह को बिहार में मजबूती से समर्थन दिया। अपनी शहादत से पहले वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्धों में भाग लिया और अपनी अद्वितीय वीरता का परिचय दिया। उनकी निडरता और देशभक्ति उन्हें भारतीय इतिहास के अमर नायकों में शामिल करती है।

वीर कुंवर सिंह का परिचय (Veer Kunwar Singh Ka Jivan Parichay)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

वीर कुंवर सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1777 को बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव के एक प्रतिष्ठित क्षत्रिय जमीनदार परिवार में हुआ था। उनके पिता, बाबू साहबजादा सिंह, अंग्रेजी सरकार के प्रति वफादार थे, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें भोजपुर जिले की जमींदारी मिली थी। वीर कुंवर सिंह की माताजी का नाम पंचरत्न कुंवर था। उनके परिवार में कई अन्य प्रमुख सदस्य भी थे, जैसे उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह। इनका नाम इस क्षेत्र में सम्मान के साथ लिया जाता है। इसके अलावा, उनके परिवार के अन्य सदस्य जैसे बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह और गजराज सिंह भी प्रसिद्ध जागीरदार थे। अपने कुटुंब की आज़ादी की रक्षा हेतु निरंतर संघर्ष करते रहे।

वीर कुंवर सिंह के परिवार का इतिहास संघर्ष और देशभक्ति से भरा हुआ था। यही कारण था कि उन्होंने भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके परिवार के सदस्य हमेशा अपने अधिकारों और स्वाधीनता के लिए लड़ते रहे, जो वीर कुंवर सिंह के अद्वितीय साहस और वीरता की नींव बने।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली क्रांति और संघर्ष की एकता

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1857 की क्रांति को स्वतंत्रता का पहला आंदोलन कहा जाता है, जो देश में आज़ादी की एक नई उम्मीद लेकर आया। यह आंदोलन मंगल पांडे द्वारा शुरू की गई उस चिंगारी से शुरू हुआ, जो जल्द ही पूरे देश में एक बड़े विप्लव के रूप में फैल गई। इस आंदोलन के दौरान हिंदू और मुसलमानों के बीच अभूतपूर्व एकता देखने को मिली, जो अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में एकजुट हो गए थे। भारतीयों ने अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए एक राष्ट्रव्यापी संघर्ष शुरू कर दिया। बिहार के दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाही पहले बगावत करने वालों में शामिल हुए। इस संघर्ष की लपटें जल्द ही मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली तक फैल गईं। ये स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख केंद्र बन गए।

1857 में भोजपुर की स्वतंत्रता की लड़ाई

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

27 अप्रैल, 1857 को बाबू कुंवर सिंह (Babu Kunwar Singh) ने अपनी वीरता का पहला परिचय दिया। जब उन्होंने दानापुर के सिपाहियों, भोजपुर के सैनिकों और अन्य समर्थकों के साथ मिलकर आरा नगर पर कब्जा कर लिया। इस संघर्ष में बाबू वीर कुंवर सिंह खुद को सेनापति के रूप में प्रस्तुत कर भारतीय सैनिकों के साथ मैदान में कूद पड़े। अंग्रेजों की तमाम कोशिशों के बावजूद भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र बना रहा। वीर कुंवर सिंह ने आरा जेल को तोड़कर वहां बंदी बनाए गए लोगों को मुक्त किया और अंग्रेजों के खजाने पर भी कब्जा कर लिया। उन्होंने आरा के अलावा आजमगढ़ पर भी अधिकार किया। लखनऊ से भागे कई क्रांतिकारी भी उनके साथ मिलकर उनकी सेना का हिस्सा बने।

संघर्ष और बलिदान की कहानी

वीर कुंवर सिंह, जो मालवा के प्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे, के पास एक बड़ी जागीर थी। लेकिन अंग्रेजों की नीतियों के कारण उनकी जागीर छीन ली गई। अंग्रेजों ने आरा पर हमला किया, जिसके बाद बीबीगंज और दिव्या के जंगलों में जबरदस्त संघर्ष हुआ। इसके बाद स्वतंत्रता सेनानी आरा को पुनः स्वतंत्र कराने के बाद, अंग्रेजों ने बाबू वीर कुंवर सिंह के किले को चारों ओर से घेर लिया। इस स्थिति में वीर कुंवर सिंह और उनके भाई अमर सिंह को अपनी जन्मभूमि छोड़नी पड़ी। अमर सिंह छापामार युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते रहे, जबकि वीर कुंवर सिंह अपने सैनिकों के साथ बनारस, आजमगढ़, बलिया, गाजीपुर और गोरखपुर में स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती से आगे बढ़ाते रहे।

अंग्रेजों के खिलाफ अभियान

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1857 में जगदीशपुर पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद, कुंवर सिंह ने 1200 सैनिकों के साथ एक अभियान शुरू किया, जिसमें उन्होंने रोहतास, रीवां, बांदा, ग्वालियर, कानपुर, और लखनऊ होते हुए अयोध्या और आजमगढ़ तक का सफर तय किया। आजमगढ़ पहुंचने का उद्देश्य प्रयागराज और बनारस पर आक्रमण कर अपने गढ़ जगदीशपुर को पुनः हासिल करना था। कुंवर सिंह छापामार युद्ध में माहिर थे। उन्होंने मिलमैन, कर्नल डेम्स और एडवर्ड लगर्ड की सेनाओं को हराकर अंग्रेजों को बार-बार पराजित किया। उनकी कुशल रणनीतियों और साहस ने अंग्रेजों को भारी नुकसान पहुंचाया।

ब्रिटिश इतिहासकार की टिप्पणी

ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने बाबू वीर कुंवर सिंह की वीरता को देखकर लिखा था कि "उस साहसी राजपूत ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अद्वितीय वीरता और सम्मान के साथ संघर्ष किया। यह अच्छी बात थी कि जब युद्ध हुआ, तब वीर कुंवर सिंह की उम्र लगभग 80 वर्ष थी। अगर वे जवान होते, तो संभवतः 1857 में ही अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ता।"

निधन और विरासत (Veer Kunwar Singh Death)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

बाबू वीर कुंवर सिंह ने लंबे समय तक अपनी सेना के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। एक बार जब वह बलिया के पास शिवपुरी घाट से रात के समय नाव के सहारे गंगा नदी पार कर रहे थे, तो अचानक अंग्रेजों ने उन पर हमला कर दिया। ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इस हमले में वीर कुंवर सिंह घायल हो गए। उनके बांह में गोली लगी। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी तलवार से घायल बांह को काटकर गंगा में प्रवाहित कर दिया और अंग्रेजी सेना को हराकर 23 अप्रैल, 1858 को अपने गांव जगदीशपुर लौट आए।

जगदीशपुर के किले पर विजय प्राप्त कर उन्होंने ब्रिटिश झंडे को उतारकर अपना झंडा फहराया। इस ऐतिहासिक विजय के कारण 23 अप्रैल का दिन उनके विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हालांकि, अपने किले पर लौटने के कुछ ही दिनों बाद, 26 अप्रैल, 1858 को उन्होंने वीरगति प्राप्त की।

वीर कुंवर सिंह की विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अमिट पहचान के रूप में जीवित है। वे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी प्राणों की आहुति दी। उनके अद्वितीय नेतृत्व और साहस ने न केवल अपने समय के सिपाहियों को प्रेरित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा दी।



Shreya

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