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Acharya Chanakya Thoughts: आचार्य चाणक्य कहते हैं बुरे समय के लिए बचत करना जरूरी है यह मत भुलो कि अच्छा समय सदा नहीं रहता है
Chanakya Niti: किसी भी मनुष्य की पहचान करना आज के समय में उतना ही कठिन है जैसे बहते पानी को अपने हंथों में पकड़ना लेकिन आचार्य चाणक्य ने इन्हे पहचानने के दिलचस्प तरीके बताये हैं।
Acharya Chanakya Thoughts: आचार्य चाणक्य ने मनुष्य को जीवन के गुरुमंत्र सिखाने का प्रयास किया जिससे हम सफलता की सीढ़ी आसानी से चढ़ सकें। उन्होंने अपने विचार को चाणक्य नीति में लिपिबध्य भी किया है। जिसे समझ और जानकर हम भी अपना जीवन सफल बना सकते हैं।
आचार्य चाणक्य विचार (Acharya Chanakya Thoughts)
- “भगवान लकड़ी, या पत्थर या मिट्टी की मूर्तियों में नहीं रहते हैं। उनका वास हमारी भावनाओं में, हमारे विचारों में है। यह केवल इस भावना से है कि हम इन मूर्तियों में भगवान को विद्यमान मानते हैं।”
- “शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति का हर जगह सम्मान होता है। शिक्षा सुंदरता और यौवन को हरा देती है।”
- “एक बार जब आप किसी चीज़ पर काम करना शुरू कर देते हैं तो असफलता से डरो मत और इसे मत छोड़ो। जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वे सबसे ज्यादा खुश होते हैं।”
- “धन, मित्र, पत्नी और राज्य तो वापस मिल सकता है, लेकिन यह शरीर खो जाने पर फिर कभी प्राप्त नहीं हो सकता।”
- “विनम्रता आत्म नियंत्रण के मूल में है।”
- “एक उत्कृष्ट बात जो एक शेर से सीखी जा सकती है वह यह है कि एक आदमी जो कुछ भी करने का इरादा रखता है उसे पूरे दिल और ज़ोरदार प्रयास के साथ करना चाहिए।”
- “जिस तरह एक सूखा पेड़ आग लगने पर पूरे जंगल को जला देता है, उसी तरह एक दुष्ट पुत्र पूरे परिवार को नष्ट कर देता है।”
- “साँप के दाँत में, मक्खी के मुँह में और बिच्छू के डंक में ज़हर होता है; परन्तु दुष्ट उस से तृप्त होता है।”
- “भाषण की पवित्रता, मन की, इंद्रियों की, और एक दयालु हृदय की आवश्यकता होती है, जो दिव्य मंच पर उठने की इच्छा रखता है।”
- “फूलों की सुगंध हवा की दिशा में ही फैलती है। लेकिन, एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है”
- मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से, दुष्टा स्त्री के पालन-पोषण से अथवा दीन-दुखियों के सम्पर्क में रहने से, बुद्धिमान मनुष्य भी दुख पाते हैं।
- दुष्टा (कुमार्गी) स्त्री, कपटी (मूर्ख) मित्र, हर बात में जवाब देने वाला नौकर (दास) तथा जिस घर में सांप रहता हो उसमें रहना, ये सब मृत्यु तुल्य हैं, इसमें संदेह नहीं है।
- आपत्ति काल के लिये धन की रक्षा करे, धन से बढ़कर स्त्री की रक्षा करे तथा धन और स्त्री दोनों से बढकर सर्वदा अपनी रक्षा करनी चाहिए।
- . आपत्ति निवारणार्थ धन की रक्षा करना उचित है। धनी मनुष्य है तो विपत्ति कैसी ? लक्ष्मी (धन) चंचल है। कभी-कभी संजोया धन भी नष्ट हो जाता है।
- जिस देश में सम्मान नहीं, जीविकोपार्जन का साधन नहीं, बन्धु-बाँधव भी नहीं और न विद्या का ही लाभ हो, तो ऐसे स्थान पर एक दिन भी वास नहीं करना चाहिए।
- कठिन काम पड़ने पर सेवक की, संकट के समय भाई बन्धु की, आपत्ति काल में मित्र की तथा धन के नाश हो जाने पर स्त्री की परीक्षा होती है।
- जिस स्थान पर जीविका, भय, लज्जा (शर्म), चतुराई और थोड़ा-बहुत त्याग करने की लगन इन पाँचों चीजों का अभाव हो वहाँ के लोगों का साथ कदापि न करे।
- जहाँ पर धंनी (महाजन), वेद ज्ञाता ब्राह्मण, राजा, नदी या जलाशय
- अथवा वैद्य ये पाँचों विधमान न हों वहाँ एक दिन भी नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इनके रहने पर यह लोक अथवा परलोक दोनों बन जाता है।
- बुरे समय के लिए बचत करना जरूरी है यह मत भुलो कि अच्छा समय सदा नहीं रहता है।
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