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Chandrayaan-3 Poem: मीलों के फासले थे पर न अंजाम अधूरा हुआ, ज़मीन पर देखा जो ख़्वाब चांद पर पूरा हुआ
Chandrayaan-3 Poem: 41 दिन की यात्रा पूरी करके चंद्रायान-3 बुधवार (23 अगस्त) को चांद पर पहुंचा। लोगों के दिमाग में यह भी सवाल है कि जब चीन, अमेरिका और रूस ने सिर्फ 4 दिन में मिशन मून पूरा कर लिया तो भारत को 41 दिन क्यों लगे।
Chandrayaan-3 Poem: अब हमारे चंदा मामा बिल्कुल हमसे दूर नहीं
अब हमारी भारत माता अपने भाई से पूँछ रही
इतने वर्षों से अलग अलग थे
अब हम बिल्कुल दूर नहीं
रक्षा बंधन की लाज बचाई
चंदा मामा मान गये
खुशी खुशी उतरा है लेंडर
मामा बिल्कुल नाराज़ नहीं
एक बहन भारत माता ने
रक्षा सूत्र भिजवाया है
एक भाई चंदा मामा ने
इसका मान बढ़ाया है
जय हिंद बंदे मातरम
चन्द्रयान 3 के सफलतम चन्द्र स्पर्श ने हमारे देश भारत को अद्भुत व अद्वितीय गौरव प्रदान किया है। यह 40दिनो की सफलतम यात्रा व अन्तिम 17मिनिट और उसमें भी 12 मिनट व उसमें भी अन्तिम 12 सेकेंड और 6.04 मिनट पर चन्द्रयान 3 के सफलतम लैन्डिग के लिए इसरो के समस्त वर्तमान व पूर्व इन्जीनीयर व समस्त अधिकारीयों व कर्मकारों को हमारी ओर से व सम्पूर्ण अखिल भारतीय गोस्वामी सभा रजि दिल्ली के सभी स्वजातीय गोस्वामी बन्धुओ की ओर से कोटि-कोटि बधाई व कोटि-कोटि नमन व अभिनन्दन ।
भोपाल के ऑटो वालों को समर्पित
महिला (ऑटो वाले से) : भैया, चाँद तक चलोगे।
ऑटो ड्राइवर : हाँ, बैठिये पर 1200 करोड़ रुपये लगेगें।
महिला : 1200 करोड़ क्यों, चंद्रयान तो 600 करोड़ में पहुंच गया।
ऑटो ड्राइवर : मैडम, लौटने में सवारी नहीं मिलती। खाली आना पड़ता है।
दारू पीकर नशे में , पति जब दबे पांव घर में दाखिल होता है।
इस क्रिया को भी सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं।
कृपाकर निवेदन है कि चंद्रायण की सफलता को जाति और धर्म से न देखें। जिस संस्थान ने इसे सफलतम आयाम तक पहुंचाया है उसे डॉ कलाम जैसे व्यक्तित्व ने भी हेड किया हुआ है । जिन्हें हिन्दू और जैन मुनियों के सत्संग अतिप्रिय था । साथ ही हिंदुत्व शिरोमणि श्री अटल जी ने राष्ट्रपति के पद पर विराजमान कराया था। यह भारत की सफलता का समय है न कि किसी जाति और धर्म विशेष की।
वो क्षण वो पल
हमने देखा अविरल
जब विक्रम ने छुआ
चाँद का तल I
भटके ना कहीं अटके ना कहीं
मन बहुत विकल
चाँद पर लील ना जाए कोई रसातल !
सूर्य चन्द्र वंशी भरत वंशियों की
सदियोंसेअमृत पूरित आकांक्षाओं का बेताल
कन्धों पर लादे
विक्रम ने पहुंचाया चाँद के तल!
इसके पहले कि निशा पहुंचती
प्रति दिन की तरह हो सजल
विक्रम ने सुधा पान किया
अमृत काल के इस पल!
अब विक्रम सदा सुनाएगा
हो जाएगा मन विह्वल
हमें और हमारी अगली पीढ़ी को
जब गौरव गाथा के ये पल!
हठ कर बैठा चाँद एक दिन
माता से यह बोला-
"सिलवा दो माँ मुझे ऊन का
मोटा एक झिंगोला।"
"सन-सन बहती हवा रात भर
जाड़े से मरता हूंँ।
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह
यात्रा पूरी करता हूंँ।"
"आसमान का सफर और
यह मौसम है जाड़े का,
न हो अगर तो ला दो कुरता
ही कोई भाड़े का।"
बेटे की सुन बात कहा माता ने
"अरे सलोने...
कुशल करे भगवान, लगे मत
तुझको जादू-टोने।"
"जाड़े की तो बात ठीक है,
पर मैं तो डरती हूँ।
एक नाप में कभी नहीं
तुझको देखा करती हूँ।"
"कभी एक अंगुल भर चौड़ा,
कभी एक फुट मोटा।
बड़ा किसी दिन हो जाता है
और किसी दिन छोटा।"
"घटते-घटते और किसी दिन
ऐसा भी होता है,
नहीं किसी की आँखों से तू
दिखलाई पड़ता है।"
"अब तू ही यह बता, नाप तेरी
किस रोज लिवाएं?
सी दें एक झिंगोला जो
हर रोज बदन में आये।"
? अब चाँद का जवाब सुनिए...
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हँसकर बोला चाँद, "अरे
माता, तू इतनी भोली।
दुनिया वालों के समान क्या
तेरी मति भी डोली?"
"घटता-बढ़ता कभी नहीं मैं
वैसा ही रहता हूँ।
केवल भ्रमवश दुनिया को
घटता-बढ़ता लगता हूंँ।"
"आधा हिस्सा सदा उजाला,
आधा रहता काला।
इस रहस्य को समझ न पाता
भ्रमवश दुनिया वाला।"
"अपना उजला भाग धरा को
क्रमशः दिखलाता हूँ।
एक्कम दूज तीज से बढ़ता
पूनम तक जाता हूँ।"
"फिर पूनम के बाद प्रकाशित
हिस्सा घटता जाता।
पन्द्रहवां दिन आते आते
पूर्ण लुप्त हो जाता।"
"दिखलाई मैं भले पड़ूँ ना
यात्रा हरदम जारी।
पूनम हो या रात अमावस
चलना ही लाचारी।"
"चलता रहता आसमान में
नहीं दूसरा घर है।
फिक्र नहीं जादू टोने की
सर्दी का बस डर है।"
"दे दे पूनम की ही साइज
का कुर्ता सिलवा कर।
आएगा हर रोज बदन में
इसकी मत चिंता कर।"
"अब तो सर्दी से भी ज्यादा
एक समस्या भारी।
जिसने मेरी इतने दिन की
इज्जत सभी उतारी।"
"कभी अपोलो मुझको रौंदा
लूना कभी सताता।
मेरी कंचन सी काया को
मिट्टी का बतलाता।"
"मेरी कोमल काया को
कहते राकेट वाले
कुछ ऊबड़-खाबड़ जमीन है,
कुछ पहाड़, कुछ नाले।"
"चन्द्रमुखी सुन कौन करेगी
गौरव निज सुषमा पर?
खुश होगी कैसे नारी
ऐसी भद्दी उपमा पर।"
"कौन पसंद करेगा ऐसे
गड्ढों और नालों को?
किसकी नजर लगेगी अब
चंदा से मुख वालों को?"
"चन्द्रयान भेजा भारत ने
भेद और कुछ हरने।
रही सही जो पोल बची थी
उसे उजागर करने।"
"एक सुहाना भ्रम दुनिया का
क्या अब मिट जायेगा?
नन्हा-मुन्ना क्या चंदा की
लोरी सुन पायेगा?"
"अब तो तू ही बतला दे माँ
कैसे लाज बचाऊँ?
ओढ़ अँधेरे की चादर क्या
सागर में छिप जाऊँ?"
Chandrayaan 3 Moon Landing: 41 दिन की यात्रा पूरी करके चंद्रायान-3 बुधवार (23 अगस्त) को चांद पर पहुंचा। लोगों के दिमाग में यह भी सवाल है कि जब चीन, अमेरिका और रूस ने सिर्फ 4 दिन में मिशन मून पूरा कर लिया तो भारत को 41 दिन क्यों लगे। चंद्रयान सीधे चांद पर लैंड करने के बजाय पृथ्वी और चांद की कक्षाओं में चक्कर लगाते हुए आगे बढ़ रहा है, जबकि दूसरे देशों ने मिशन मून के लिए इस तरीके का इस्तेमाल नहीं किया। एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत ने जुगाड़ तरीके से मिशन मून की योजना बनाई है ताकि कम फ्यूअल खर्च हो और लागत भी कम आए।
विज्ञान के एक्सपर्ट राघवेंद्र सिंह ने बताया कि चीन, अमेरिका और रूस की टेक्नोलॉजी भारतीय से थोड़ी एडवांस है और उनका रॉकेट काफी ज्यादा पावरफुल है। एक्सपर्ट ने कहा, 'पावरफुल का मतलब उसमें प्रोप्लैंड ज्यादा होता है और प्रोप्लैंड का मतलब होता है कि ऑक्सीजाइडर और फ्यूअल का मिश्रण। उनमें ज्यादा फ्यूअल होता है तो उनमें ज्यादा पावर बिल्ड होती है। ज्यादा पावर बिल्ड करने से ज्यादा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और एटमोस्फोरिक फ्रिक्शन (वायुमंडलीय घर्षण) को कम करते हुए रॉकेट को सीधे लेकर जाते हैं और चांद पर भी उसी तरह पहुंच जाते हैं.'
दूसरे देशों के मिशन से कई सौ करोड़ रुपये सस्ता है चंद्रयान-3
एक्सपर्ट राघवेंद्र ने बताया, 'हमारा रॉकेट कम पावरफुल है इसलिए देशी भाषा में जैसे कहते हैं, हम जुगाड़ टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करते हैं। हमारी धरती अपने अक्ष पर चारों तरफ घूम रही है तो हमें पता है कि यह 1650 किमी प्रति घंटे के साथ घूम रही है और इसके साथ हम भी घूम रहे हैं। तो इस मोमेंटम का फायदा उठाते हुए धीरे-धीरे अपनी हाइट बढ़ाते हैं ताकि फ्यूअल कम खर्च हो। दूसरे देश अपने मिशन को 4-5 दिन में पूरा करने के लिए 400 से 500 करोड़ रुपये खर्च करते हैं जबकि भारत में मिशन की लागत 150 करोड़ रुपये है।’
अमेरिका, चीन और रूस ने किया किस तकनीक का इस्तेमाल?
चांद पर पहुंचने के दो तरीके हैं. चीन, अमेरिका और रूस ने जिस तरीके का इस्तेमाल किया उसमें धरती से सीधे चांद की ओर रॉकेट छोड़ दिया जाता है। दूसरा तरीका है कि रॉकेट के जरिए स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी के ऑर्बिट में पहुंचाया जाता है और फिर स्पेसक्राफ्ट चक्कर लगाना शुरू कर देता है। इसके लिए स्पेसक्राफ्ट फ्यूएल की जगह पृथ्वी की रोटेशनल स्पीड और ग्रेवेटिशनल फोर्स का इस्तेमाल करता है। धरती अपने अक्ष पर 1650 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से घूमती है, जिससे स्पेसक्राफ्ट को रफ्तार पकड़ने में मदद मिलती है। बाद में साइंटिस्ट इसके ऑर्बिट का दायरा बदलते हैं। इस प्रक्रिया को बर्न कहते हैं। इस तरह स्पेसक्राफ्ट के ऑर्बिट के चारों ओर चक्कर लगाने का दायरा बढ़ जाता है और धरती के ग्रेविटेशनल फोर्स का असर भी अंतरिक्षयान पर कम होना शुरू हो जाता है। बर्न की मदद से ही स्पेसक्राफ्ट को सीधे चांद के रास्ते पर ड़ाल दिया जाता है और बिना किसी मेहनत के स्पेसक्राफ्ट चांद पर पहुंच जाता है।
# चन्द्रयान 3 ने मैसेज भेजा है कि धरती पर किसी की बीबी चांद जैसी नहीं है,
सब झूठ मूठ हांक रहे थे।
बड़ा गुमान था तुझे तेरे हुस्न पे ऐ चांद
देख तेरा दीदार करने हिंदुस्तान आया है।।
#चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग में विज्ञान ही काम आया है। जो धरती पर बैठकर ग्रहों की चाल बदलने का दावा करते हैं, वो गप के सिवा कुछ नहीं है। आज आप सबने विज्ञान की शक्ति देखी, हमारे वैज्ञानिकों ने इतिहास रच दिया है। अंधविश्वास से निकलें और वैज्ञानिक सोच को अपनाएं।
# नीतीश जी को पता ही नहीं था कि ये चंद्रयान क्या है , अपने साथी से पूछा ,तब जान पाये।
#ओम प्रकाश राजभर चंद्रयान को धरती पर लैंड करा रहे थे।
# राजस्थान के मंत्री चंद्रयान में यात्री भी भेज चुके थे ।
उनका कहना है कि चंद्रयान में जो यात्री गए उनको सलाम करता हूं।
(राजस्थान सरकार के मंत्री अशोक चांदना)
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चन्द्रमा पर आइये इन सबकी मेधा को प्रणाम कीजिये।
( चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय मिशन विक्रम की सफल लैंडिंग पर सोशल मीडिया पर क्या और कैसे कैसे हुए हास- परिहास व दी गई बधाइयों के कुछ चुनिन्दा पीस।)