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Chankya Niti For Women: जानिए स्त्री के स्वभाव को लेकर क्या कहती है चाणक्य नीति, ये बात तो आप कभी नहीं जानते होंगे

Chankya Niti For Women: चाणक्य नीति आपको जीवन जीने का नया सिद्धांत सिखाती है। वहीँ आज हम आपको चाणक्य नीति से जुडी कई बातें बताने जा रहे हैं। जो आपको आपके जीवन में बेहद काम आएंगी।

Shweta Shrivastava
Published on: 11 July 2023 7:21 AM IST
Chankya Niti For Women: जानिए स्त्री के स्वभाव को लेकर क्या कहती है चाणक्य नीति, ये बात तो आप कभी नहीं जानते होंगे
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Chankya Niti For Women ( Image Credit-Social Media)

Chankya Niti For Women: चाणक्य नीति आपको जीवन जीने का नया सिद्धांत सिखाती है। वहीँ आज हम आपको चाणक्य नीति से जुडी कई बातें बताने जा रहे हैं। जो आपको आपके जीवन में बेहद काम आएंगी। इसे ब्राह्मण परिवार में जन्मे चाणक्य जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में लिखा है। आइये जानते हैं क्या है वो अनमोल विचार व कथन।

आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार

आचार्य चाणक्य प्राचीन भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, रणनीतिकार, दार्शनिक, लेखक व सलाहकार थे। वो मौर्य साम्राज्य चंद्रगुप्त मौर्य और मौर्य साम्राज्य के महामंत्री व सलाहकार रहे। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसी बातें अपनी पुस्तक चाणक्य नीति में लिखीं जो आज के समय में भी अहम् भूमिका रखती हैं।

1. कल्पवृक्ष अभिलाषाओं की पूर्ति करता है, लेकिन लकड़ी ही तो है। सुमेरू पर्वत धन का भण्डार है, लेकिन है तो पत्थरों का ढेर। चिन्तामणि चिन्ता-हरण करती है, लेकिन वह भी पत्थर है। सूर्य की किरणें प्रकाशवान हैं, लेकिन प्रचण्ड हैं। चन्द्रमा शीतलता और प्रकाश प्रदान करता है, लेकिन वह क्षय रोग से पीड़ित है।

2. समुद्र खारे जल वाला और कामदेव अशरीर है। बलि राक्षस कुल से संबद्ध है और सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली कामधेनु एक पशु ही तो है। हे ईश्वर, इनमें से कोई भी आपकी तरह महान नहीं। किसी को भी आपके तुल्य नहीं रखा जा सकता। अर्थात् जगत् में ईश्वर सर्वोपरि है।

3. स्वाभाविक दोष वे दोष हैं, जिन्हें कहीं बाहर से ग्रहण नहीं करना पड़ता, बल्कि वे स्वतः ही जन्म से आविर्भूत होते हैं। पक्षी स्वभाव और जन्म से ही उड़ने में निपुण होते हैं। अग्नि का स्वभाव जलाना है, जल शीतलता प्रदान करता है।

4. यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक स्त्री के स्वभाव में उपर्युक्त दोष उपलब्ध हों। भोजन में योग्य स्वादिष्ट व्यंजन और उन्हें ग्रहण करने का सामर्थ्य, रूपवान स्त्री और भोग-विलास की शक्ति, विपुल धन और दानशीलता, ऐसे गुण घोर तप अथवा पूर्व जन्म के सुफलों के परिणामस्वरूप ही प्राप्त हो सकते हैं।

5. विषहीन सर्प को भी रक्षा के लिए फन फैलाना ही पड़ता है।

6. संसार रूपी इस वृक्ष के अमृत के समान दो फल हैं- सुन्दर बोलना तथा सज्जनों की संगति करना।

7. जिस पिता का पुत्र आज्ञाकारी हो, पत्नी अनुकूल आचरण वाली और पतिव्रता हो, जो मेहनत से प्राप्त धन से ही संतुष्ट हो, ऐसा व्यक्ति इस संसार में ही स्वर्ग-सा सुख अनुभव करता है। अर्थात् संतोषी सदा सुखी।

8. जो पुत्र माता-पिता का आज्ञाकारी और भक्त हो, वही पुत्र कहलाने का अधिकारी है।

9. जो व्यक्ति अपनी सन्तान का पालन-पोषण करता हो, उनके सुख-दु:ख का ख्याल रखता हो, वही वास्तविक अर्थों में पिता है।

10. सच्चा मित्र वही हो सकता है जो विश्वसनीय हो।

11. पति को सच्चा सुख देने वाली स्त्री ही, सही अर्थों में पत्नी है।

12. ऊपर से सुन्दर दिखाई पड़ने वाले फल बहुधा मीठे नहीं होते। इसी प्रकार मुंह पर मीठी-मीठी बातें करने वाले लोग भी घातक, सिद्ध हो सकते हैं। जो लोग सामने हमारी प्रशंसा करें, पीठ पीछे निन्दा-ऐसे सभी लोगों का परित्याग कर देना चाहिए, क्योंकि वे उस विष-कुम्भ के समान हैं, जिसके ऊपर तो दूध भरा होता है किन्तु अन्दर विष होता है। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिये।

13. निकृष्ट मित्र पर तो विश्वास कदापि नहीं ही करना चाहिए अपितु अच्छे मित्र पर भी पूर्ण विश्वास न किया जाये। चाणक्य इस सम्बन्ध में तर्क देते हैं कि यदि जब कभी अच्छा मित्र शत्रु बन जाता है तो हमारे सारे गोपनीय विचारों को प्रकट कर हमें हानि पहुंचा सकता है।

14. यदि हम किसी विशेष कार्य अथवा योजना पर चिन्तन-मनन कर रहे हैं तो यह आवश्यक है कि उसके कार्यान्वित होने तक किसी अन्य के सामने उसे प्रकट न करें। ऐसा करने पर योजना के सफल होने में संदेह उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।

15. अज्ञान सदैव कष्टप्रद होता है। अज्ञानी हर जगह उपहास का पात्र बनता है।

16. सर्वाधिक कष्टप्रद है- पराश्रित होकर जीना। दूसरों के सहारे जीने वाला व्यक्ति पशु-तुल्य हो जाता है, उसे जहां हांका जाता है, वहीं को वह जाता है अन्यथा दण्ड का भोगी होना होगा। अतएव् अपना सहारा स्वयं ही बनना श्रेयस्कर होगा।

17. संसार में कई तरह की प्रवृत्ति के लोग वास करते हैं, हमें उनमें से सज्जन पुरुषों से ही सम्पर्क बनाना चाहिए, हमें सफलता सज्जन-पुरुषों की संगति से ही प्राप्त हो सकती है।

18. ज्ञानशील व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी सन्तानों को चरित्र-निर्माण के कार्यों में लगाएं। उनके गुणों में वृद्धि के लिए अच्छी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध करें, क्योंकि व्यक्ति के गुण ही विश्व में पूज्यनीय होते हैं ज्ञानी प्राणी ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान रूपी पशु का नाश कर देता है। जब कभी हम किसी मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च अथवा अन्य किसी श्रद्धेय स्थल के समक्ष से गुजरते हैं तो मन ही मन वहां श्रद्धान्वत हो उठते हैं, क्योंकि उस स्थान के प्रति हमारे मन में आस्था है। इसी प्रकार गुणी व्यक्ति भी आस्था के प्रतीक बन सभी के लिए पूज्यनीय बन जाते हैं।

19. जो माता-पिता अपनी सन्तान को अच्छी शिक्षा नहीं दिलवाते, वे उनके शत्रु हैं, क्योंकि अज्ञानी और बुद्धिहीन लोग सब जगह उपहास का पात्र बनते हैं। ऐसे लोग जब किसी सभा में गूगों की तरह मुंह बन्द किये बैठे रहते हैं तो हंसों की सभा में कौओं की तरह प्रतीत होते हैं।

20. गुण भी योग्य विवेकशील व्यक्ति के पास जाकर ही सुन्दर लगता है, क्योंकि सोने में जड़े जाने पर ही रत्न सुन्दर लगता है। से क्या लाभ?

22. गुणी मनुष्य भी उचित आसरा नहीं मिलने पर खिन्न हो जाता है, क्योंकि मोती का कोई मोल नहीं जब तक कि उसे धारण नहीं किया जाता। गुणों से ही व्यक्ति बड़ा बनता है, न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से। राजमहल के शीर्ष पर बैठ जाने पर भी कौवा हंस नहीं बनता। दूसरे व्यक्ति यदि गुणहीन व्यक्ति की भी प्रशंसा करें, तो वह बड़ा हो जाता है।

23. अपनी प्रशंसा खुद करने पर तो इन्द्र भी छोटा हो जाता है। जिसके पास स्वयं अपनी बुद्धि नहीं, उसके लिए शास्त्र क्या कर सकते हैं! आंखों के अंधे के लिए दर्पण क्या करेगा। अर्थात जो जन्म से ही मूर्ख हो; जिसके पास अपनी बुद्धि न हो, शास्त्र उसका क्या भला कर सकते हैं। वह शास्त्रों से कुछ नहीं सीख सकता क्योंकि शास्त्रों को समझने के लिए भी बुद्धि चाहिए। भला एक नेत्रहीन को शीशा दिखाने।

24. मूर्ख मनुष्य चाहे कितने भी धर्म शास्त्र पढ़ लें, वे रस से भरे उस पात्र की तरह होते हैं जिसमें रस तो होता है पर वह पात्र उसका स्वाद नहीं ले पाता। ठीक उसी प्रकार ही मूर्ख मनुष्य अपनी आत्मा को नहीं पाता।

25, मधुर वचन, दान देने की प्रवृत्ति, देवताओं की पूजा-अर्चना तथा सत्पुरुषों को संतुष्ट रखना-इन लक्षणों वाला व्यक्ति, इस पृथ्वीलोक में स्वर्गलोक से अवतरित की कोई आत्मा होता है।

26. युग का अन्त होने पर भले ही सुमेरू पर्वत अपने स्थान से हट जाये और कल्प का अन्त होने पर भले ही सातों समुद्र विचलित हो जाएं, किन्तु सज्जन अपने मार्ग से विचलित नहीं होते।

27. योग्य इंसान के पास आकर अयोग्य वस्तु भी का भी आकृषण बढ़ जाता है, किन्तु अयोग्य के पास जाने पर योग्य काम की वस्तु भी मूल्य घट जाता है। महादेव के पास आने पर विष भी गले का आभूषण बन गया, किन्तु राहु को अमृत मिलने पर भी मृत्यु को गले लगाना पड़ा।



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Shweta Shrivastava

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