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पश्चिम में बही आस्था की पुरवाई, यूपी-बिहार की तरह यहां भी सजते हैं बाजार
दुर्गेश पार्थसारथी
अमृतसर। पंजाब अनुपम धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्व पटल पर जाना जाता है। यहां जितनी शिद्दत के साथ गुरु पर्व मनाया जाता है तो उतनी ही शिद्दत के साथ दशहरा व दीपावली का पर्व भी मनाया जाता है। देश में वैसे कई अन्य त्योहार भी मनाए जाते हैं जो पंजाब व पंजाब के लोगों के लिए नए होते हैं।
इसके बावजूद लोग इन त्योहारों में बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है सूर्य षष्ठी व्रत। आमतौर पर छठ को बिहार व झारखंड के लोगों को पर्व माना जाता है, लेकिन इस पर्व का दायरा धीरे-धीरे काफी बढ़ गया है। यह पर्व प्रदेश की सीमा को लांघकर आज सर्व व्यापक बन गया है। यानी जहां-जहां उत्तर प्रदेश व बिहार के लोग गए वहां-वहां अपनी सांस्कृतिक व धार्मिक खुशबू को बिखेरा। चाहे वह देश का पश्चिमी छोर गुजरात व महाराष्ट्र हो या पंजाब।
उत्तरी छोर जम्मू-कश्मीर ही क्यों न हो। हर जगह बिहारियों ने सूर्य षष्ठी व्रत की पूजा शुरू की और उन्हें देख वहां के रहने वाले स्थानीय लोग भी उगते हुए सूर्य की आराधना करने के साथ-साथ डूबते सूर्य की भी पूजा कर रहे हैं या दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि आस्था की पुरवाई अब पश्चिम में भी बहने लगी है।
दुग्याणा तीर्थ में उमड़ पड़ता है आस्था का सैलाब
इस वर्ष 26 अक्टूबर को पड़ रही छठ पूजा को लेकर अमृतसर स्थित विश्वप्रसिद्ध दुग्र्याणा मंदिर में मंदिर प्रबंधन की ओर से खास प्रबंध किए गए हैं। यह व्यवस्था मंदिर कमेटी की ओर करीब 20 वर्षों से की जा रही है।
इसके लिए मंदिर कमेटी की ओर से छठ पूजा के लिए आने वाले लोगों को ठहरने व सरोवर के किनारे पूजा प्रबंध से लेकर कई अन्य तरह के प्रबंध किए जाते हैं। मंदिर प्रबंधकों का कहना है कि छठ पूजा की तैयारियां अभी से शुरू कर दी गई हैं। हालांकि इससे पहले दीपावली है, लेकिन दोनों ही त्योहारों को मनाने की तैयारी एक साथ की जाती है।
इस मंदिर के अलावा अमृतसर से होकर निकलने वाली नहरों के किनारे पर भी छठ पूजा के खास प्रबंध किए गए हैं। इस काम में मंदिर कमेटी के अलावा अमृतसर जिला प्रशासन का भी भरपूर सहयोग रहता है।
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मंदिर परिसर में उमड़ती है हजारों की भीड़
दुग्र्याणा मंदिर कमेटी से सेक्रेटरी का कहना है कि छठ पूजा के दिन मंदिर परिसर में 35 से 40 हजार लोगों की भीड़ उमड़ती है। इस दौरान लोगों का हुजूम देखते ही बनता है। वे कहते हैं कि 15 साल पहले इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी, लेकिन अब छठ पूजा का दायरा बढ़ा है। लोग एक-दूसरे की धर्म व संस्कृतियों से प्रभावित हो रहे हैं।
अब यह पर्व सिर्फ झारखंड, बिहार या पूर्वी उत्तर प्रदेश का ही नहीं रह गया है। अब स्थानीय लोग भी इस पर्व को मनाने लगे हैं। इस पर्व में यहां के रहने वाले लोग भी भाग लेते हैं और डूबते हुए सूर्य की उपासना कर उन्हें अघ्य देते हैं। भले ही उन्हें छठ पूजा की पद्धति न आती हो,लेकिन वे भी छठ पूजा करते हैं।
मंदिर परिसर में पूजा करने आने वाले लोगों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। लोगों की बढ़ती संख्या के हिसाब से उनके सुरक्षा व ठहरने का प्रबंध भी मंदिर कमेटी की ओर से किया जाता है। इस बात का भी खास ध्यान रखा जाता है कि कहीं किसी श्रद्धालु को कोई परेशानी न हो।
यूपी-बिहार की तरह यहां भी सजते हैं बाजार
उत्तर प्रदेश व बिहार की तरह ही अमृतसर में भी छठ पूजा के समानों की बिक्री के लिए विशेष बाजार सजते हैं। शहर के प्रसिद्ध रामबाग में बांस की सूपों के अलावा पीतल व स्टील के बने सूप भी बेचे जाते हैं।
इसके अतिरिक्त पूजा में प्रयुक्त होने वाले सामानों की भी खूब बिक्री होती है। यह बाजार दीपावली के दूसरे दिन से भी सजने लगता है। दुकानदारों का कहना है कि पर्व चाहे कोई भी हो या किसी भी प्रदेश का हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इससे लोगों को एक-दूसरे की संस्कृतियों को नजदीक से समझने व देखने का मौका मिलता है।
सजीव हो उठती है आस्था
छठ पूजा के दौरान दुग्याणा तीर्थ स्थित सरोवर के किनारों पर टिमटिमाते मिट़़टी के दिए पानी की लहरों पर ऐसे लगते हैं जैसे आसमान से असंख्य तारे जमीन पर उतर आए हों। सिर पर डाल और हाथों में कलश लिए व्रत रखने वाली महिलाओं व पुरुषों का समूह जैसे-जैसे आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे आस्था सजीव होती जाती है। इस दौरान मंदिर के सरोवर के जल में उठने वाला प्रतिबिंब देखते ही बनता है।
सोने के पत्तों से ढका मंदिर का शिखर सूर्यास्त व उगते हुए सूरज की स्वॢणम रस्मियों से आच्छादित हो अप्रतिम आभा बिखेरता है। ऊपर से भक्तों का जनसमूह ऐसे लगता है मानो पूरी कायनात इस मंदिर परिसर में समा गई हो।
सुरक्षा के व्यापक प्रबंध
मंदिर कमेटी के सदस्यों का कहना है कि छठ पूजा के दिन उमडऩे वाली भीड़ व इस दौरान किसी भी तरह की स्थिति से निपटने के लिए सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए गए हैं। इसके लिए पुलिस व सिविल प्रशासन से भी सहयोग लिया गया है। इसके अतिरिक्त मंदिर गार्ड व सेफ्टी जैकेट से लैस गोताखोर भी सरोवर में विशेष नाव पर चक्कर लगाते रहेंगे।
सुरक्षा के लिहाज से सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं जो हर स्थिति पर नजर रखेंगे। इसके अलाव एक समस्या भाष की भी आती है। इसे हल करने के लिए उत्तर प्रदेश व बिहार की स्वयंसेवी संस्थाओं की कमेटियां भी बनाई गई हैं जो श्रद्धालुओं की समस्याओं का समाधान करेंगी।