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Motivational Story: संतों के संग का प्रभाव
Motivational Story: साधु-संग अति पापी को भी पुण्यात्मा बना देता है । अति घृणित को भी श्रेष्ठ बनाने का सामर्थ रखता है, डाकू रामखान महात्मा से दीक्षित हुआ, उसे सच्चे प्रेम की एक निगाह मिली ।
Motivational Story: डाकू रामखान भयानक वेश, डरावना चेहरा,क्रूर भुजाओं से युक्त, ऐसा था कि सामने आने वाला व्यक्ति उसे देखते ही शक्ति हीन हो जाये।परंतु महात्मा हरनाथ ने उससे न घृणा की,न चिन्ता की,न भय किया।वे आगे बढते गये ।डाकू रामखान पाँच ही कदम दूर रह गया था । वह भी न पीछे हटा, न आगे बढा, फिर भी भीतर से संत की निगाह मात्र से इतना आगे बढ गया कि देखते-देखते ही उसकी यात्रा हो रही थी । हे महात्मन् ! हे प्रभु ! हे चलते- फिरते भगवान ! मैं बहुत पापी हूँ, मैंने बहुत पाप किये हैं, कई खून किये हैं, कई निर्दोषों की संपत्ति हडप ली है । संपत्ति छीनकर उनके हाथ-पैर तोड दिये या उन्हें यमपुरी पहुँच दिया । मैंने कितने, कौन-कौन से पाप किये हैं वह मैं गिना नहीं सकता । हे महात्मन् ! मैं अनाथ ! जन्मों का भटका हुआ जीव आपकी शरण में हूँ । मुझे कोई रास्ता बताइए । मुझे शरण में स्वीकार कर लीजिए ।
महात्मा हरनाथ ने अपनी गुणातीत दृष्टि, पुण्य-पाप से परे,सुख-दुःख से परे,साम्य अवस्था की दृष्टि डाली । महात्मा के समक्ष डाकू रामखान ने अपने पापों का प्रायश्चित किया, अपनी गलती को स्वीकार किया। जो गुरु, संत, महापुरुष के आगे अपनी गलती, पाप को स्वीकार करता है उसके पाप तो कटते हैं, लेकिन जो उनके आगे गलती करता है, झूठ-कपट करता है या कुछ अंट-संट कहता है उसकी गलती और पाप खतरे का रूप ले लेते हैं, बहुत बढ जाते हैं ।
अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति ।
तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।
और जगह किया हुआ पाप तीर्थक्षेत्र में जाओ तो मिट जाता है । परंतु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप हो जाता है । तीर्थ बनता है महापुरुषों की चरणरज से ।भगवान या भगवत्प्राप्त महापुरुषों की चरणरज से वह जगह तीर्थ बनती है । ऐसे साकार महापुरुषों के आगे जो अपने पापों का प्रायश्चित करता है,उनके पाप जल जाते हैं। जबकि ऐसे महापुरुषों के आगे जो कूट- कपट, जिद्द, हठ करता है उसके पुण्य जल जाते हैं ।डाकू रामखान ने और तो कईयों को सताया परंतु एक महापुरुष को रिझा लिया । एक सत्पुरुष के आगे वह हृदयपूर्वक पापों का प्रायश्चित करते हुये, आँखों से गंगा- यमुना बहाते हुये, सच्चे हृदय से उन महापुरुष के चरणों को दूर से प्रणाम किया । मैं अधम हूँ, पापी हूँ । मुझे संतों के चरण छूने का अधिकार ही नहीं है, ऐसा सोचकर मन ही मन प्रणाम किया । उसका यह शुभ भाव देखकर जोगी हरनाथ मन ही मन खूब प्रसन्न हुये और मधुर वाणी में कहा :-
रामखान ! लोग तुझे डाकू कहते हैं, यह तेरी प्रकृति के गुणों का काम है । तू अपने स्वरूप को पहचानने के लिए भगवान के नाम की थोडी सहायता ले । प्राणायाम, ध्यान और भगवन्नाम का सहारा, ये तीन चीजें तुझे शुद्ध कर देगी । तू ध्यान की विधि मुझसे सीख ले । भगवन्नाम की दीक्षा ले ले । प्राणायाम करने की कला सीख ले । तेरे सारे पाप जल जायेंगे। तेरी छुपी हुई शक्तियाँ जाग्रत होगी वत्स ! उस डाकू को संत हरनाथ वत्स कह रहे हैं, पुत्र कह रहे हैं । तुमने संत के आगे पापों का प्रायश्चित किया । अब तुम्हारे पाप रहे कहाँ ? पाप तो चले गये । अब पुण्यों को और प्रभु को प्रगट करना ही तेरा कर्तव्य है । ‘मैं पापी हूँ, डाकू हूँ यह चिन्तन मत कर । तूने पाप-ताप मेरे आगे रख दिये, वे सब प्रायश्चित की अग्नि में स्वाहा हो गये ।
साधु-संग अति पापी को भी पुण्यात्मा बना देता है । अति घृणित को भी श्रेष्ठ बनाने का सामर्थ रखता है । डाकू रामखान महात्मा से दीक्षित हुआ, उसे सच्चे प्रेम की एक निगाह मिली । उसने संसार से कँटीले मार्ग का त्याग करके संन्यास मार्ग को ग्रहण किया । गुरु महाराज के उपदेश के अनुसार वृंदावन में, श्रीकृष्ण की लीलास्थली में रहने लगा । थोडे ही समय में उसकी सुषुप्त शक्तियाँ जाग्रत हुई । प्राणायाम आदि से क्रियाशक्ति में बढोत्तरी हुई । भगवन्नाम से हृदय केन्द्र विकसित हुआ। गुरु महाराज के सत्संग से ज्ञान का केन्द्र विकसित हुआ । तीन शक्तियों को विकसित करके संसार के तीन गुणों से पार होने लगा । एक सिद्ध संन्यासी हो गया। कहाँ तो एक खूँखार डाकू और कहाँ एक सिद्ध संन्यासी ! मनुष्य में बहुत सारी संभावनाएँ हैं । बहुत सारी योग्यताएँ छिपी हुई हैं । प्रेम, सद्भावना, शुभकामना उसका मंगल करती हैं । संत का संग एवं कृपा बहुत कुछ कर जाती है।
( लेखिका प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं ।)