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मछली प्रेमी सावधान! टूना और बिना तली हुई मछली के सेवन से बढ़ जाता है त्वचा कैंसर का खतरा: रिसर्च
अमेरिकी छात्रों के एक बड़े अध्ययन से पता चलता है कि टूना और बिना तली हुई मछली सहित उच्च स्तर की मछली खाने से घातक मेलेनोमा यानी त्वचा कैंसर का खतरा का अधिक खतरा होता है।
Skin Cancer: आमतौर पर मछली खाना अधिकतर लोगों को बेहद पसंद होता है। लोग खास तौर पर sea food के शौक़ीन होते हैं। समंदर के किनारे बसे हुए शहरों में लोग ख़ास कर अलग -अलग प्रकार के sea food का आनंद लेने जाते हैं। लेकिन अब इसके समबन्ध में आयी एक नयी रिपोर्ट मछली लवर्स को सावधान करती है। जी हाँ अमेरिकी छात्रों के एक बड़े अध्ययन से पता चलता है कि टूना और बिना तली हुई मछली सहित उच्च स्तर की मछली खाने से घातक मेलेनोमा यानी त्वचा कैंसर का खतरा का अधिक खतरा होता है।
बता दें कि मेलानोमा संयुक्त राज्य अमेरिका में पांचवां सबसे आम कैंसर माना जाता है और जीवन भर मेलेनोमा विकसित होने का जोखिम सफेद लोगों के लिए 38 में से एक है, जबकि काले लोगों के लिए 1,000 में से एक और हिस्पैनिक लोगों के लिए 167 में से एक है। हालांकि हाल के दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में मछली का सेवन बढ़ा है, मछली के सेवन और मेलेनोमा जोखिम के बीच संबंधों की जांच करने वाले पिछले अध्ययनों के परिणाम असंगत रहे हैं। जबकि अभी इस सम्बन्ध में और भी शोधों की आवश्यकता है।
औसत दैनिक मछली का सेवन 3.2 ग्राम था: शोधकर्ता
बता दें कि शोधकर्ताओं के अनुसार जिनकी औसत दैनिक मछली का सेवन 3.2 ग्राम था, उन लोगों में घातक मेलेनोमा का जोखिम 22 प्रतिशत अधिक था जबकि उनका औसत दैनिक सेवन 42.8 ग्राम था। उन्होंने यह भी पाया कि जिनकी औसत दैनिक खपत 42.8 ग्राम मछली थी, उनमें केवल त्वचा की बाहरी परत में असामान्य कोशिकाओं के विकास का 28 प्रतिशत का अधिक जोखिम था। बल्कि जिन्हें स्टेज 0 मेलेनोमा या स्वस्थानी मेलेनोमा के रूप में जाना जाता है। जिनकी औसत दर्जे की तुलना में दैनिक सेवन 3.2 ग्राम मछली थी। उल्लेखनीय है कि मछली के सेवन और मेलेनोमा जोखिम के बीच संबंधों की जांच करने के लिए, शोधकर्ताओं ने 491,367 वयस्कों से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिन्हें 1995 और 1996 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका से एनआईएच-एएआरपी आहार और स्वास्थ्य अध्ययन में भर्ती किया गया था। प्रतिभागियों, जिनकी आयु औसतन 62 वर्ष थी, ने बताया कि पिछले वर्ष के दौरान उन्होंने कितनी बार तली हुई मछली, बिना तली हुई मछली और टूना खाया और साथ ही साथ उनके हिस्से के आकार भी।
15 वर्षों की औसत अवधि में विकसित हुए नए मेलेनोमा की घटनाओं की गणना की
शोधकर्ताओं ने कैंसर रजिस्ट्रियों से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग करके 15 वर्षों की औसत अवधि में विकसित हुए नए मेलेनोमा की घटनाओं की गणना की। उन्होंने समाजशास्त्रीय कारकों के साथ-साथ प्रतिभागियों के बीएमआई, शारीरिक गतिविधि स्तर, धूम्रपान इतिहास, शराब का दैनिक सेवन, कैफीन और कैलोरी, कैंसर का पारिवारिक इतिहास, और उनके स्थानीय क्षेत्र में औसत यूवी विकिरण स्तर के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने पाया कि 5,034 प्रतिभागियों (1.0 प्रतिशत ) ने अध्ययन अवधि के दौरान घातक मेलेनोमा विकसित किया और 3,284 (0.7प्रतिशत ) ने चरण 0 मेलेनोमा विकसित किया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि बिना तली हुई मछली और टूना का अधिक सेवन घातक मेलेनोमा और स्टेज 0 मेलेनोमा के बढ़ते जोखिम से जुड़ा था। जिनकी औसत दैनिक टूना सेवन 14.2 ग्राम थी, उनमें घातक मेलेनोमा का 20 प्रतिशत अधिक जोखिम और चरण 0 मेलेनोमा का 17प्रतिशत अधिक जोखिम था, जिनकी तुलना में औसत दैनिक ट्यूना सेवन 0.3 ग्राम था। प्रति दिन 17.8 ग्राम गैर-तली हुई मछली का औसत सेवन घातक मेलेनोमा के 18प्रतिशत अधिक जोखिम और चरण 0 मेलेनोमा के 25प्रतिशत अधिक जोखिम से जुड़ा था, प्रति दिन 0.3 ग्राम गैर-तली हुई मछली के औसत सेवन की तुलना में। लेकिन बता दें कि शोधकर्ताओं ने तली हुई मछली की खपत और घातक मेलेनोमा या चरण 0 मेलेनोमा के जोखिम के बीच महत्वपूर्ण संबंधों की पहचान नहीं की।
शोध के निष्कर्षों में संभवतः मछली में दूषित पदार्थों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे कि पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल, डाइऑक्सिन, आर्सेनिक और पारा। बता दें कि पिछले शोध में उच्च मछली का सेवन शरीर के भीतर इन दूषित पदार्थों के उच्च स्तर से जुड़ा मिला और इन दूषित पदार्थों और त्वचा कैंसर के उच्च जोखिम के बीच संबंधों के बीच पहचान हुई है। हालांकि, ध्यान दें कि इस अध्ययन ने प्रतिभागियों के शरीर में इन दूषित पदार्थों की सांद्रता की जांच नहीं की है और इसलिए इस संबंध की पुष्टि के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।"
शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा कि उनके अध्ययन की अवलोकन प्रकृति मछली के सेवन और मेलेनोमा जोखिम के बीच एक कारण संबंध के बारे में निष्कर्ष निकालने की अनुमति नहीं देती है। उन्होंने अपने विश्लेषण में मेलेनोमा के लिए कुछ विशेष जोखिम वाले कारकों जैसे कि तिल की गिनती, बालों का रंग, गंभीर सनबर्न का इतिहास और सूरज से संबंधित व्यवहार आदि का भी हिसाब नहीं दिया। इसलिए मछली के उन घटकों की जांच के लिए भविष्य में इस सम्बन्ध में और भी ज्यादा शोध की आवश्यकता है जो मछली के सेवन और मेलेनोमा जोखिम और इसके अंतर्निहित किसी भी जैविक तंत्र के बीच देखे गए संबंध में योगदान दे सकते हैं।