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Dance Tradition In India: नृत्य परंपरा, शिव से आधुनिकता तक का सफर और स्वास्थ्य पर प्रभाव

Dance Development In India: आज इस आर्टिकल में हम नृत्य परंपरा की उत्पत्ति, इसके विविध रूपों और इसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।

Ankit Awasthi
Written By Ankit Awasthi
Published on: 18 March 2025 6:18 PM IST
Dance Tradition In India: नृत्य परंपरा, शिव से आधुनिकता तक का सफर और स्वास्थ्य पर प्रभाव
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Dance Tradition In India (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Dance Tradition In India: नृत्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति, साधना और संस्कृति का प्रतिबिंब भी है। इसकी जड़ें प्राचीन भारतीय परंपराओं में इतनी गहरी हैं कि इसे ईश्वरीय कला माना जाता है। विशेष रूप से भगवान शिव, जिन्हें नटराज कहा जाता है, को नृत्य का आदिगुरु माना जाता है। उनका तांडव नृत्य सृष्टि, संहार और पुनर्जन्म का प्रतीक है। इस लेख में हम नृत्य परंपरा की उत्पत्ति, इसके विविध रूपों और इसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।

शिव और नृत्य: आदिशक्ति का प्रतीक

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भारतीय संस्कृति में भगवान शिव को "नटराज" (Natraj) कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'नृत्य के राजा'। शिव का तांडव नृत्य दो रूपों में वर्णित है-

1. रौद्र तांडव (Rudra Tandav): यह विनाश और पुनरुत्थान का नृत्य है, जिसमें सृष्टि के चक्र को दर्शाया गया है।

2. लास्य नृत्य (Lasya Tandav): यह कोमलता और सृजनशीलता से जुड़ा नृत्य है, जिसे देवी पार्वती का सौम्य रूप माना जाता है।

शिव के इस नृत्य को ब्रह्मांड की गति, लय और ऊर्जा से जोड़ा जाता है। तांडव मुद्रा में शिव के चारों ओर घूमता हुआ अग्नि-प्रवाह जीवन और मृत्यु का संतुलन दर्शाता है।

भारतीय नृत्य परंपराओं का विकास (Development of Indian Dance Traditions)

शास्त्रों के अनुसार, नृत्य की उत्पत्ति नाट्यशास्त्र से हुई, जिसे भरत मुनि ने लिखा था। भारतीय नृत्य दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:-

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1. शास्त्रीय नृत्य

भारत में कई शास्त्रीय नृत्य रूप हैं, जो मंदिरों और राजदरबारों से विकसित हुए हैं:-

भरतनाट्यम (तमिलनाडु): शिव के तांडव से प्रेरित, यह सबसे प्राचीन शास्त्रीय नृत्य है।

कथक (उत्तर भारत): मुगलों के समय में यह दरबारी नृत्य बना, जिसमें गति और भावनाओं का अद्भुत समावेश है।

कुचिपुड़ी (आंध्र प्रदेश): धार्मिक कथाओं पर आधारित यह नृत्य नाटकीयता से भरपूर होता है।

ओडिसी (ओडिशा): मंदिरों में देवी-देवताओं को समर्पित यह नृत्य कोमल और सुंदर मुद्राओं से युक्त होता है।

मणिपुरी (मणिपुर): भक्ति और अध्यात्म से जुड़ा एक कोमल और लयबद्ध नृत्य।

कथकली (केरल): नाटकीय भाव-भंगिमाओं और रंगीन मुखौटों से सजीव किया जाने वाला नृत्य।

सत्रिया (असम): वैष्णव संप्रदाय से प्रेरित एक धार्मिक नृत्य।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

2. लोकनृत्य

शास्त्रीय नृत्यों के अलावा, भारत में कई लोकनृत्य भी प्रचलित हैं, जो विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों की पहचान हैं:

गिद्दा और भांगड़ा (पंजाब)

गरबा और डांडिया (गुजरात)

बिहू (असम)

चाऊ (झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल)

लावणी (महाराष्ट्र)

इन नृत्यों में आम जनता की जीवनशैली, त्यौहार और उत्सवों की झलक मिलती है।

आधुनिक युग में नृत्य की स्थिति

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

आज नृत्य केवल एक कला नहीं रहा, बल्कि मनोरंजन, फिटनेस और पेशे के रूप में उभर चुका है। बॉलीवुड डांस, कंटेम्पररी, सालसा, हिप-हॉप और जैज़ जैसे नृत्य रूप पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित होकर लोकप्रिय हो चुके हैं। विभिन्न रियलिटी शो और सोशल मीडिया ने नृत्य को एक नया मंच दिया है।

नृत्य और स्वास्थ्य पर प्रभाव (Dance and Health Effects)

नृत्य न केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि इसका स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

1. शारीरिक लाभ (Physical Benefits Of Dance)

फिटनेस में सुधार: नियमित नृत्य करने से शरीर लचीला और मजबूत होता है।

हृदय स्वास्थ्य: यह कार्डियो एक्सरसाइज के समान है, जिससे हृदय स्वस्थ रहता है।

वजन नियंत्रण: डांस करने से कैलोरी बर्न होती है, जिससे मोटापा कम किया जा सकता है।

मांसपेशियों को मजबूती: विभिन्न नृत्य मुद्राओं से शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

2. मानसिक लाभ (Mental Benefits Of Dance)

तनाव कम करता है: नृत्य करने से एंडोर्फिन हार्मोन रिलीज होता है, जिससे मूड बेहतर होता है।

एकाग्रता बढ़ती है: नृत्य की मुद्राओं को याद रखने से मस्तिष्क तेज होता है।

आत्मविश्वास बढ़ता है: नृत्य करने से आत्म-अभिव्यक्ति और आत्म-सम्मान बढ़ता है।

3. आध्यात्मिक लाभ (Spiritual Benefits Of Dance)

ध्यान की तरह नृत्य करने से आत्मिक शांति मिलती है।

योग और ध्यान के साथ नृत्य को जोड़कर इसे मेडिटेशन का रूप दिया जा सकता है।

नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता, संस्कृति और स्वास्थ्य का संगम है। शिव के नटराज रूप से लेकर आधुनिक डांस फॉर्म्स तक, नृत्य ने अपनी यात्रा में अनेक परिवर्तन देखे हैं। चाहे शास्त्रीय नृत्य हो या लोकनृत्य, यह जीवन को संपूर्णता से जीने की प्रेरणा देता है। साथ ही, इसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव इसे एक संपूर्ण जीवनशैली बना देते हैं। अतः नृत्य को अपनाकर न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजा जा सकता है, बल्कि स्वस्थ और खुशहाल जीवन भी जिया जा सकता है।

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