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Dr BR Ambedkar Wikipedia: डॉ. भीमराव अंबेडकर- एक दलित नेता ने कैसे बदल दी संविधान की तस्वीर
Dr BR Ambedkar Ke Bare Me Jankari: भीमराव अंबेडकर का जीवन मुख्य रूप से जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में समर्पित रहा। उनका मानना था कि भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद ने दलितों और पिछड़ी जातियों को शोषित किया है।
BR Ambedkar Biography in Hindi: डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय समाज के महान नेता, समाज सुधारक और भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता थे। उनका जीवन एक संघर्षों से भरी यात्रा थी, जो भारत के दलित समाज के उत्थान के लिए समर्पित थी। अंबेडकर ने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, असमानता और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया और अपने विचारों और कार्यों से भारतीय समाज को एक नया दिशा दी। उनका योगदान आज भी भारतीय राजनीति, समाज और कानून में महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रारंभिक जीवन
भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था।वह अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे। वे एक मराठा परिवार में जन्मे थे, जिनकी स्थिति उस समय दलित (अछूत) वर्ग में थी। उनके पिता रामजी मालोजी साठे एक सैनिक थे। उनका परिवार भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था में निचले पायदान पर आता था। डॉ. अंबेडकर अपनी स्कूली शिक्षा सतारा में ही कर रहे थे। दुर्भाग्यवश, डॉ अंबेडकर की मां की मौत हो गई। उनकी चाची ने उनकी देखभाल की। बाद में, वह मुंबई चले गए। अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान, वह अस्पृश्यता के अभिशाप से पीड़ित हुए।
शिक्षा और संघर्ष
भीमराव अंबेडकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा महू और फिर मुंबई से प्राप्त की। उनका जीवन शिक्षा के प्रति अडिग समर्पण का प्रतीक था। वे भारतीय समाज के उन पहले छात्रों में से एक थे जिन्होंने अपने समाज की जातिगत धारा को चुनौती दी। अंबेडकर ने 1912 में बंबई विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।फिर 1915 में वे अपनी मास्टर डिग्री (M.A.) के लिए विदेश गए। उन्होंने अपनी शिक्षा को ब्रिटेन में जारी रखा और 1927 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।
अंबेडकर का समाजिक संघर्ष
भीमराव अंबेडकर का जीवन मुख्य रूप से जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में समर्पित रहा। उनका मानना था कि भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद ने दलितों और पिछड़ी जातियों को शोषित किया है।अंबेडकर ने भारत के दलितों और अछूतों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कई आंदोलन किए। 1927 में, उन्होंने ‘मनुस्मृति’ को जलाने का कदम उठाया, जो उस समय के हिंदू धर्म के अंतर्गत जातिवाद को बढ़ावा देता था। इसके बाद, उन्होंने 'आत्मशुद्धि आंदोलन' और 'शुद्धि आंदोलन' शुरू किए ताकि दलितों को समाज में सम्मान मिल सके।डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के नेतृत्व में किए गए शुरुआती प्रमुख आंदोलनों में से एक 1927 का महाड़ सत्याग्रह था, जिसका उद्देश्य महाराष्ट्र के महाड़ में दलितों के लिए सार्वजनिक जलस्रोतों के उपयोग के अधिकार को सुनिश्चित करना था। इसी तरह, 1930 में आयोजित कलाराम मंदिर आंदोलन का मकसद दलित समुदाय को हिंदू मंदिरों में प्रवेश का अधिकार दिलाना था।
सार्वजनिक जीवन
1930 के दशक में अंबेडकर ने भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर 'दलितों' के अधिकारों की आवाज उठाई। 1930 में, उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए 'नमक सत्याग्रह' और 'चमार आंदोलन' में हिस्सा लिया और दलितों के लिए अधिक अधिकारों की मांग की। सामाजिक सुधार के लिए कानूनी उपायों के महत्व को समझते हुए, डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने दलितों की आवाज को ब्रिटिश अधिकारियों तक पहुंचाने का कार्य किया। उन्होंने लंदन में गोलमेज सम्मेलनों में दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व किया।उनके राजनीतिक अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की वकालत की। बाबासाहेब के प्रयासों का परिणाम 1932 के पूना पैक्ट के रूप में सामने आया, जिसमें आम निर्वाचन क्षेत्रों में दलितों के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया।डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1924 में स्थापित अपने ‘दलित वर्ग शिक्षा समाज’ के माध्यम से कमजोर वर्गों के छात्रों को शिक्षा का अवसर प्रदान किया। उन्होंने छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, पुस्तकालयों और अन्य शैक्षणिक गतिविधियों के जरिए उन्हें पढ़ाई और साथ ही आजीविका कमाने में सक्षम बनाया।
भारतीय संविधान निर्माण में योगदान
डॉ. भीमराव अंबेडकर का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संविधान के निर्माण में था। भारतीय संविधान सभा में उन्हें संविधान का मुख्य लेखाकार चुना गया था। अंबेडकर ने संविधान में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को समाहित करते हुए यह सुनिश्चित किया कि संविधान भारतीय समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार प्रदान करे। अंबेडकर का संविधान भारतीय लोकतंत्र की नींव बना और आज भी यह भारतीय संविधान के रूप में दुनिया भर में सम्मानित है।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने औपचारिक राजनीति में अपनी पहली बड़ी पहल के रूप में 1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की, जो दलितों और मजदूर वर्गों के हितों का प्रतिनिधित्व करती थी। इस पार्टी ने 1937 के बॉम्बे प्रेसीडेंसी चुनावों में भाग लिया। कुछ हद तक सफलता भी अर्जित की, जिससे अंबेडकर एक प्रभावशाली राजनीतिक नेता के रूप में उभरे।
स्वतंत्रता के बाद, 1947 में डॉ. बी.आर. अंबेडकर को जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में भारत के पहले विधि और न्याय मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान हिंदू कोड बिल का प्रारूप तैयार करना था, जिसका उद्देश्य हिंदू व्यक्तिगत कानूनों का सुधार और संहिताकरण करना तथा महिलाओं को व्यक्तिगत मामलों में समान अधिकार प्रदान करना था। हालांकि, यह बिल संसद में पारित नहीं हो सका, जिससे निराश होकर डॉ. अंबेडकर ने 1951 में नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
30 सितंबर,1956 को, बाबासाहेब ने अपने पूर्व संगठन अनुसूचित जाति संघ को बर्खास्त करके रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की घोषणा की। हालाँकि, नई पार्टी के गठन से पहले ही 6 दिसंबर 1956 को उनका निधन हो गया।
बौद्ध धर्म की ओर रुझान
डॉ. बी.आर. अंबेडकर की बौद्ध धर्म में रुचि उनके करियर के प्रारंभिक दौर में ही विकसित हो गई थी, जब उन्होंने विभिन्न दर्शनों और धर्मों का गहन अध्ययन किया। 1935 में, नासिक के येवला में आयोजित एक प्रांतीय सम्मेलन में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से घोषणा की, "मैं हिंदू धर्म में जन्मा हूँ, लेकिन हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा।"
14 अक्टूबर,1956 को, डॉ. अंबेडकर ने नागपुर में आयोजित एक विशाल सार्वजनिक समारोह में औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लिया। इसके बाद उन्होंने अपना शेष जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया।
व्यक्तिगत जीवन
अंबेडकर का व्यक्तिगत जीवन भी संघर्षों से भरा हुआ था। वे दलित समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक थे। लेकिन उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी जातिवाद और भेदभाव का सामना करना पड़ा। अंबेडकर का विवाह रामा भीमाबाई से हुआ था। बाद में उन्होंने सावित्री बाई से भी विवाह किया। उनकी पत्नी सावित्री ने अंबेडकर के समाज सुधार के कार्यों में पूरा सहयोग किया।
स्वास्थ्य और मृत्यु
अंबेडकर का स्वास्थ्य कभी अच्छा नहीं रहा। वे अक्सर बीमार रहते थे। कई सालों तक डायबिटीज और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से जूझते रहे। 6 दिसंबर, 1956 को, केवल 65 वर्ष की आयु में, डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन हो गया। उनका निधन भारतीय समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। उनकी मृत्यु के बाद लाखों अनुयायी और उनके समर्थक उनके योगदान को याद करते हैं और उनकी शिक्षाओं पर अमल करते हैं।
डॉ. अंबेडकर के योगदान के अनकहे पहलू
महिला अधिकारों के प्रबल समर्थक डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाले हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में सुधार के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए। उन्होंने हिंदू कोड बिल पेश किया, जिसका उद्देश्य महिलाओं को विरासत, विवाह और तलाक के मामलों में समान अधिकार प्रदान करना था।
साहित्य और लेखन
डॉ. भीमराव अंबेडकर एक प्रखर लेखक थे, जिनकी कृतियाँ कानून, अर्थशास्त्र, धर्म और सामाजिक मुद्दों पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में ‘अस्पृश्यता का विनाश,’ ‘शूद्र कौन थे?’ और ‘बुद्ध और उनका धम्म’ शामिल हैं, जो आज भी दुनिया भर के पाठकों को प्रेरित करती हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की परिकल्पना
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्थापना में अहम योगदान दिया। 1925 में, उन्होंने रॉयल कमीशन (हिल्टन यंग कमीशन) के समक्ष भारतीय मुद्रा और वित्त पर अपने विचार प्रस्तुत किए, जहां उन्होंने भारत में एक केंद्रीय बैंकिंग प्रणाली की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विरासत
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अपने बहुआयामी योगदानों के माध्यम से भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य पर गहरी छाप छोड़ी है। उनकी विरासत के प्रमुख प्रतीक निम्नलिखित हैं:
अंबेडकर जयंती
14 अप्रैल को पूरे भारत में अंबेडकर जयंती मनाई जाती है। इस अवसर पर राष्ट्रभर में कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जहां उनके जीवन और योगदान को याद किया जाता है।
आरक्षण नीतियाँ
डॉ. अंबेडकर की सामाजिक न्याय और सकारात्मक भेदभाव की वकालत भारत की आरक्षण नीतियों में झलकती है, जो वंचित वर्गों को समान अवसर प्रदान करती हैं।
मूर्तियाँ और स्मारक
भारत के विभिन्न शहरों और कस्बों में डॉ. अंबेडकर की मूर्तियाँ सार्वजनिक स्थानों की शोभा बढ़ाती हैं।
साथ ही, उनके सम्मान में कई संग्रहालय, पुस्तकालय और स्मारक भी स्थापित किए गए हैं।
राजनीतिक प्रभाव
डॉ. अंबेडकर के विचार और सिद्धांत आज भी कई राजनीतिक दलों की नीतियों और विचारधाराओं को प्रभावित करते हैं। विशेष रूप से, हाशिए के समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले दल उनके सिद्धांतों को अपने एजेंडे में शामिल करते हैं।
साहित्य और कला
डॉ. अंबेडकर का जीवन और कार्य साहित्य, कला, संगीत और सिनेमा के लिए प्रेरणास्रोत बना है। उनके बारे में अनेक पुस्तकें, आत्मकथाएँ, कविताएँ और नाटक लिखे गए हैं।
जमीनी आंदोलन
दलित और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदाय समानता और सम्मान के लिए संघर्ष में डॉ. अंबेडकर के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेते रहे हैं।
अंबेडकरवादी आंदोलन इसका एक प्रमुख उदाहरण है।
शैक्षणिक संस्थान
देशभर में कई विश्वविद्यालय और कॉलेज डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नाम पर स्थापित किए गए हैं, जो उनके शैक्षिक योगदान को याद करते हैं।
शिक्षा और जागरूकता
डॉ. अंबेडकर के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सेमिनार, कार्यशालाओं और अध्ययन मंडलों का आयोजन किया जाता है। स्कूल और कॉलेज में उनके सिद्धांतों पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन एक प्रेरणा है। उन्होंने भारतीय समाज को शिक्षा, समानता, और सामाजिक न्याय का पाठ पढ़ाया। उनका संघर्ष न केवल दलितों के लिए, बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए था। उनका योगदान भारतीय संविधान, भारतीय राजनीति और भारतीय समाज के सुधार में अनमोल रहेगा। अंबेडकर ने जो सपने देखे थे, वे आज भी पूरे भारत में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं, और उनका आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मील का पत्थर रहेगा।