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Atal Ji Ki Lahore Yatra: 20 फरवरी 1999, अटल बिहारी वाजपेयी की ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा

Atal Ji Ki Lahore Yatra 20 February History: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 20 फरवरी 1999 को दिल्ली से लाहौर तक की एक ऐतिहासिक बस यात्रा की...

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 19 Feb 2025 1:51 PM IST
Atal Ji Ki Lahore Yatra 20 February Ka Itihas
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Atal Ji Ki Lahore Yatra 20 February Ka Itihas

Atal Bihari Vajpayee Historic Bus Ride To Lahore: भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध हमेशा से जटिल और संवेदनशील रहे हैं। 1947 में देश के विभाजन के बाद से ही दोनों देशों के बीच संघर्ष और युद्ध होते रहे। 1947, 1965 और 1971 के युद्धों के अलावा, 1998 में दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण करके एक-दूसरे के खिलाफ अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था।

ऐसे माहौल में, जब दोनों देशों के बीच अविश्वास गहरा हो चुका था, भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 20 फरवरी 1999 को एक ऐतिहासिक बस यात्रा के माध्यम से शांति वार्ता की पहल की। इस यात्रा का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच मित्रता को बढ़ावा देना, कश्मीर सहित विभिन्न विवादित मुद्दों पर वार्ता को मजबूत करना और दक्षिण एशिया में स्थायी शांति की नींव रखना था।

लाहौर बस यात्रा की पृष्ठभूमि

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

भारत और पाकिस्तान के संबंध शुरू से ही तनावपूर्ण रहे हैं। 1947 में विभाजन के बाद, 1948 में दोनों देशों के बीच पहला युद्ध हुआ, जिसमें कश्मीर एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा। 1965 और 1971 में भी दोनों देशों के बीच युद्ध हुए, जिसमें 1971 का युद्ध पाकिस्तान के लिए विनाशकारी साबित हुआ और बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

1998 में भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के खिलाफ परमाणु परीक्षण किए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और भी बढ़ गया। भारत ने मई 1998 में पोखरण में शक्ति-II परीक्षण किए, जिसके जवाब में पाकिस्तान ने चागई में अपने परमाणु परीक्षण किए। इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित हो गया और दक्षिण एशिया में युद्ध की आशंका बढ़ गई।

इसके बाद, 1998 के अंत में, भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया। तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच बातचीत हुई, जिसमें दोनों नेताओं ने रिश्ते सुधारने की इच्छा जताई। इसी वार्ता के परिणामस्वरूप, 20 फरवरी 1999 को वाजपेयी ने दिल्ली से लाहौर तक की ऐतिहासिक बस यात्रा की घोषणा की।

बस यात्रा का उद्देश्य

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और स्थिरता स्थापित करना था। वाजपेयी मानते थे कि युद्ध और हिंसा से कोई समाधान नहीं निकल सकता, इसलिए उन्होंने बातचीत और विश्वास बहाली को प्राथमिकता दी। इसके अलावा, इस यात्रा के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे–

भारत और पाकिस्तान के बीच विश्वास बढ़ाना– विभाजन के बाद से ही दोनों देशों के बीच गहरी अविश्वास की भावना थी। इस यात्रा से यह संदेश देना था कि भारत पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण संबंध चाहता है।

व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को सुधारना– दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए यह यात्रा महत्वपूर्ण थी।

कश्मीर मुद्दे पर वार्ता की शुरुआत– कश्मीर विवाद लंबे समय से दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ था। इस यात्रा से उम्मीद की जा रही थी कि इस मुद्दे पर रचनात्मक चर्चा की जा सकेगी।

परमाणु हथियारों की दौड़ को कम करना– 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद दोनों देशों के बीच हथियारों की दौड़ तेज हो गई थी। इस यात्रा का उद्देश्य इस तनाव को कम करना भी था।

कैसे बना बस यात्रा का प्लान?

1998 में भारत और पाकिस्तान दोनों ने परमाणु परीक्षण किए थे, जिससे पूरे विश्व का ध्यान दक्षिण एशिया में बढ़ते तनाव की ओर चला गया था। सितंबर 1998 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक आयोजित होने वाली थी, जिसमें भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात हुई। इसी दौरान दिल्ली-लाहौर ‘सदा-ए-सरहद’ बस सेवा शुरू करने का विचार सामने आया।

हालांकि, इस विचार पर तुरंत कोई प्रगति नहीं हुई। दो महीने बीतने के बाद भी बस सेवा को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, जिससे दोनों देशों के प्रधानमंत्री चिंतित थे। कई राजनयिक स्तर की बैठकों और चर्चाओं के बाद यह तय किया गया कि फरवरी 1999 में बस यात्रा को शुरू किया जाएगा और इसकी सूचना पाकिस्तान को दे दी गई।

बस यात्रा का सफर और स्वागत

20 फरवरी 1999 को ‘सदा-ए-सरहद’ नाम की बस नई दिल्ली से लाहौर के लिए रवाना हुई। इसमें वाजपेयी के अलावा उनकी कैबिनेट के कई मंत्री, राजनयिक, पत्रकार और अन्य गणमान्य व्यक्ति सवार थे।

जब बस वाघा बॉर्डर पहुंची, तो वहां वाजपेयी का भव्य स्वागत किया गया। नवाज शरीफ स्वयं वाघा बॉर्डर पर पहुंचे और वाजपेयी को गले लगाया। यह दृश्य ऐतिहासिक था, क्योंकि इससे पहले किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री को पाकिस्तान में इस तरह का सम्मान नहीं मिला था। लाहौर पहुंचने के बाद वाजपेयी और उनके प्रतिनिधिमंडल को गवर्नर हाउस ले जाया गया, जहां उनके स्वागत में एक बड़ा समारोह आयोजित किया गया।

लाहौर घोषणा पत्र

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इस यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि ‘लाहौर घोषणा पत्र’ (Lahore Declaration) था, जिस पर वाजपेयी और नवाज शरीफ ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते में निम्नलिखित बिंदु शामिल थे –

भारत और पाकिस्तान युद्ध नहीं करेंगे और मतभेदों को शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से सुलझाएंगे।

परमाणु हथियारों और मिसाइल कार्यक्रमों के प्रति जिम्मेदार रवैया अपनाएंगे।

व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देंगे।

सीमा पर शांति बनाए रखेंगे और आतंकवाद के खिलाफ मिलकर काम करेंगे।

भारत में प्रतिक्रिया

भारत में वाजपेयी की इस यात्रा का कई राजनीतिक दलों ने समर्थन किया, लेकिन कुछ ने आलोचना भी की।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ ने इस यात्रा की सराहना की और इसे दक्षिण एशिया में शांति के लिए एक सकारात्मक कदम बताया।

क्या यह पहली बार हुआ था?

इससे पहले भी भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ताएं हुई थीं, जैसे –

1972 में शिमला समझौता (इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच)।

1988 में राजीव गांधी और बेनजीर भुट्टो की वार्ता।

लेकिन यह पहली बार था जब एक भारतीय प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान की यात्रा की और वहां के लोगों से सीधे संवाद किया।

वाजपेयी कैसे गए लाहौर?

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

शुरुआती योजना के अनुसार, अटल बिहारी वाजपेयी को केवल बस यात्रा को हरी झंडी दिखानी थी, न कि स्वयं उस पर सवार होकर पाकिस्तान जाना था। लेकिन फरवरी 1999 में उनकी एक आधिकारिक यात्रा अमृतसर में तय थी।

जब इस बारे में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जानकारी मिली, तो उन्होंने वाजपेयी को फोन किया। नवाज शरीफ ने कहा – "मैंने सुना है कि आप अमृतसर आ रहे हैं?" इस पर अटल बिहारी वाजपेयी ने जवाब दिया– "हां।" नवाज शरीफ ने तुरंत निमंत्रण देते हुए कहा– "दर तक आ रहे हो, घर नहीं आओगे?"

यह सुनकर वाजपेयी ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। इस यात्रा को लेकर मतभेद थे, क्योंकि परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका सहित कई पश्चिमी देश भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर नजर बनाए हुए थे। लेकिन अंततः भारत सरकार ने इस न्योते को स्वीकार कर लिया और इस ऐतिहासिक यात्रा की नींव रखी गई।

जाने-माने लोग बस पर सवार थे

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जब अटल बिहारी वाजपेयी वाघा बॉर्डर पार कर लाहौर पहुंचे, तो उनके साथ भारत के कला, सिनेमा और खेल जगत की कई प्रसिद्ध हस्तियां भी थीं। इन हस्तियों ने इस यात्रा में शामिल होकर भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने का संदेश दिया। बस में शामिल कुछ प्रमुख हस्तियां थीं–

कुलदीप नायर (वरिष्ठ पत्रकार और लेखक)

सतीश गुजराल (प्रसिद्ध चित्रकार और वास्तुकार)

देवानंद (बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता)

जावेद अख्तर (कवि और गीतकार)

शत्रुघ्न सिन्हा (अभिनेता और राजनेता)

मल्लिका साराभाई (नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता)

कपिल देव (पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान)

इन सभी हस्तियों की उपस्थिति ने इस यात्रा को और भी ऐतिहासिक बना दिया। यह सिर्फ एक राजनीतिक यात्रा नहीं थी, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का प्रयास भी था।

आधिकारिक रूप से बस सेवा की शुरुआत

दिल्ली-लाहौर बस सेवा को आधिकारिक रूप से 16 मार्च 1999 से आम जनता के लिए शुरू किया गया। इस सेवा का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करना था। यह बस सेवा केवल राजनयिक यात्राओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि आम नागरिकों को भी यात्रा करने का अवसर देती थी, जिससे दोनों देशों के बीच आपसी संवाद और समझ बढ़ सके।

बस सेवा कारगिल युद्ध और उसके बाद

करगिल युद्ध (मई-जुलाई 1999)

शांति प्रयासों के बावजूद, कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने करगिल में घुसपैठ कर दी, जिससे 1999 का करगिल युद्ध हुआ। इसने दोनों देशों के बीच भरोसे को तोड़ दिया।

नवाज शरीफ का तख्तापलट

अक्टूबर 1999 में परवेज मुशर्रफ ने सैन्य तख्तापलट कर नवाज शरीफ को सत्ता से हटा दिया। इससे भारत-पाक संबंध और खराब हो गए।

2001 में आगरा शिखर सम्मेलन

2001 में भारत और पाकिस्तान के बीच आगरा में एक शिखर सम्मेलन हुआ, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।

दिल्ली-लाहौर बस सेवा को जारी रखने का निर्णय इतना मजबूत था कि कारगिल युद्ध (1999) के दौरान भी यह बस सेवा चालू रही। हालांकि, 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले के बाद द्विपक्षीय संबंधों में तनाव आ गया और इस बस सेवा को अस्थायी रूप से रोक दिया गया।

बस सेवा की दोबारा शुरुआत

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

लगभग दो साल के अंतराल के बाद, 16 जुलाई 2003 को भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार हुआ, जिसके परिणामस्वरूप इस बस सेवा को पुनः शुरू कर दिया गया। यह निर्णय दोनों देशों के बीच शांति बहाली के प्रयासों का हिस्सा था।

इसके बाद, 4 से 6 जनवरी 2004 के बीच प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस्लामाबाद में आयोजित सार्क (SAARC) सम्मेलन में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गए। इस यात्रा के दौरान उन्होंने पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो से भी मुलाकात की।

20 फरवरी 1999 की लाहौर बस यात्रा इतिहास में शांति प्रयासों के एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में दर्ज हुई। यह यात्रा यह साबित करती है कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति संभव है, बशर्ते कि दोनों देश आपसी विश्वास और ईमानदारी से बातचीत करें। हालांकि, करगिल युद्ध और नवाज शरीफ के तख्तापलट ने इस पहल को विफल कर दिया, लेकिन यह यात्रा आज भी भारत-पाक संबंधों के इतिहास में एक सकारात्मक पहल के रूप में याद की जाती है।



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