Weather Update: सावधान! गर्मी और उमस : जानलेवा कॉम्बिनेशन

Weather Update: जहाँ प्रचंड गर्मी में हीटवेव से डिहाइड्रेशन, हीट स्ट्रोक, स्किन संबंधी समस्याओं, हृदय संबंधी बीमारियों की स्थिति बन सकती है

Neel Mani Lal
Published on: 15 July 2024 11:45 AM GMT
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Weather Update: प्रचंड गर्मी तो खतरनाक होती ही है लेकिन उससे भी खतरनाक है गर्मी और उमस का कॉम्बिनेशन जो इन दिनों उत्तर भारत में बना हुआ है। ये कॉम्बिनेशन ऐसा है जो जान तक ले सकता है।भले ही मानसून ने कुछ राहत दी है और अब भीषण हीटवेव नहीं है और पारा भी 35 डिग्री के इर्दगिर्द घूम रहा है। लेकिन फिर भी ये मौसम तमाम लोगों के लिए असहनीय है क्योंकि पारे के साथ साथ ह्यूमिडिटी यानी आर्द्रता का लेवल भी बहुत बढ़ा हुआ है।

घातक नतीजे मुमकिन

विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मी और उमस का संयोजन घातक हो सकता है और इससे कई अचानक वाली स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। ह्यूमिडिटी का हाई लेवल हीट स्ट्रोक और मस्तिष्क विकारों से लेकर डिप्रेशन तक पैदा कर सकता है। जहाँ प्रचंड गर्मी में हीटवेव से डिहाइड्रेशन, हीट स्ट्रोक, स्किन संबंधी समस्याओं, हृदय संबंधी बीमारियों की स्थिति बन सकती है वहीँ उच्च आर्द्रता शरीर पर इसके प्रभाव को तेज कर सकती है जिससे बेहोशी के दौरे, हीट स्ट्रोक, दिल का दौरा और मूड विकार एक आम घटना बन जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब नमी त्वचा पर बहुत देर तक रहती है तो शरीर को ठंडा होने में मुश्किल होती है।


डाक्टरों के अनुसार, हमारा शरीर आमतौर पर पसीने के दौरान त्वचा पर जमा होने वाले पसीने को बाहर निकालने के लिए हवा का उपयोग करता है। इससे शरीर ठंडा हो जाता है। जब हवा में नमी ज्यादा होती है, तो गर्म नमी हमारी त्वचा पर अधिक समय तक रहती है, जिससे हमें और भी गर्मी लगती है। जब नमी ज्यादा होती है तो कई लोगों को ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है या थकान होती है और कई ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से ऐसी मौसम की स्थिति लोगों को कई तरह से बीमार कर सकती है।

क्या क्या हो सकता है

- ज्यादा ह्यूमिडिटी उनींदापन और थकान के एहसास को बढ़ा सकती है।

- यह हाइपरथर्मिया का कारण भी बन सकता है, जो एक ऐसी स्थिति है जिसमें आप ज़्यादा गर्म हो जाते हैं क्योंकि शरीर गर्मी को ठीक से बाहर निकालने में असमर्थ होता है। यह हाई ह्यूमिडिटी को अधिक गर्मी से भी ज्यादा खतरनाक बनाता है।

- ज्यादा ह्यूमिडिटी खराब मूड में डाल सकती है। कुछ अध्ययनों का कहना है कि यह मस्तिष्क के केमिकल को प्रभावित कर सकता है जो मूड को नियंत्रित करते हैं। कई लोगों को ज्यादा ह्यूमिडिटी के संपर्क में आने पर उदासी, चिंता और डिप्रेशन का अनुभव हो सकता है और कुछ मामलों में तो आत्महत्या करने का भी मन करता है।

- ज्यादा ह्यूमिडिटी से बेहोशी का दौरा, उल्टी और हीट स्ट्रोक तक हो सकता है। नमी डिहाइड्रेशन, भ्रम, थकान और सुस्ती का कारण बन सकती है। विशेष रूप से हृदय रोगी, ह्यूमिडिटी में वृद्धि के चलते अनियमित दिल की धड़कन का अनुभव भी कर सकते हैं। बुजुर्ग और कमजोर लोगों में बेहोशी के दौरे और हीट स्ट्रोक हो सकते हैं।


- कुछ लोगों को उल्टी और गैस्ट्रोएंटेराइटिस हो सकता है जो आगे चलकर डिहाइड्रेशन और वजन घटने का कारण बनता है।

- नमी वाले वातावरण में रहने से त्वचा पर चकत्ते और फुंसियाँ होने की संभावना अधिक हो सकती है।

- नमी शरीर की कई बुनियादी प्रक्रियाओं को गड़बड़ा सकती है जैसे कि नींद न आना या प्यास न लगना। ये स्थिति दिमाग और मूड पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। उच्च आर्द्रता लोगों में चिड़चिड़ापन, चिंता भी पैदा करती है, जिसके परिणामस्वरूप मूड में बदलाव हो सकता है।

नमी कब मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो जाती है?

वैज्ञानिक गर्मी और नमी को एक साथ मापने के लिए "वेट-बल्ब तापमान" का उपयोग करते हैं। यह रीडिंग तब ली जाती है जब थर्मामीटर के बल्ब को गीले कपड़े में लपेटा जाता है। जैसे-जैसे पानी वाष्पित होता है, यह बल्ब को ठंडा करता है, ठीक वैसे ही जैसे शरीर पसीने से खुद को ठंडा करता है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि 35 डिग्री सेल्सियस अधिकतम वेट-बल्ब तापमान है जिसे मानव शरीर संभाल सकता है और छह घंटे तक इस तापमान के संपर्क में रहना एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी घातक हो सकता है।


जर्नल ऑफ़ एप्लाइड फिजियोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, खतरनाक वेट-बल्ब तापमान की सीमा 35 डिग्री सेल्सियस से कम भी हो सकती है। एक अन्य शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि एक तापमान सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती क्योंकि कई अलग-अलग कारक प्रभावित कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति कब प्रभावी रूप से ठंडा नहीं हो सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि लोगों को किसी भी स्थापित वेट-बल्ब तापमान सीमा से काफी नीचे गर्मी से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है। अपने नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि वास्तविक अधिकतम वेट-बल्ब तापमान कम है - लगभग 31 डिग्री सेल्सियस वेट-बल्ब या 100% आर्द्रता पर 87 डिग्री फ़ारेनहाइट जो युवा, स्वस्थ विषयों के लिए भी खतरनाक है। वृद्ध आबादी के लिए ये तो और भी कम है। जब गर्मी और नमी मिलकर वेट-बल्ब तापमान को 32 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ले जाती है, तो शारीरिक परिश्रम खतरनाक हो जाता है।

कब हो जाती है इमरजेंसी स्थिति?

लगातार हाई वेट-बल्ब तापमान 35 डिग्री सेल्सियस और उससे अधिक-के संपर्क में रहना घातक हो सकता है। इस बिंदु पर शरीर से पसीना निकलने का सिस्टम शट डाउन हो जाता है, जिससे छह घंटे में मृत्यु हो जाती है। शोधकर्ता कहते हैं कि शरीर को उस अत्यधिक गर्मी से छुटकारा दिलाने के सिस्टम के बिना कई शारीरिक परिवर्तन बहुत जल्दी जल्दी होने लगते हैं और इंसान को सँभालने का मौक़ा नहीं मिलता। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब शरीर हमारे मूल तापमान को बहाल करने की पूरी कोशिश करता है तो अन्य सभी प्रक्रियाएं धीरे-धीरे रुक जाती हैं। रक्त वाहिकाएँ फैल जाती हैं और ब्लड सर्कुलेशन धीमा हो जाता है, खास तौर पर हाथ-पैरों में। मस्तिष्क में पर्याप्त रक्त प्रवाह नहीं होगा, जिससे इसकी कार्यप्रणाली प्रभावित होगी। इंसान सतर्कता खो देते हैं, नींद में डूब जाते हैं और प्यास नहीं लगती। जल्द ही अंग एक-एक करके काम करना बंद कर देते हैं। जब मस्तिष्क हृदय को संदेश देना बंद कर देता है, तो नाड़ी धीमी हो जाती है और व्यक्ति कोमा में चला जाता है।


जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में गर्मी बढ़ने के साथ ऐसी घटनाएँ आम होती जा रही हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, इरविन में पृथ्वी प्रणाली विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर जेन बाल्डविन कहती हैं कि समस्या यह है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, वैसे-वैसे वातावरण में नमी भी बढ़ती है। थर्मोडायनामिक्स के क्लॉसियस-क्लैपेरॉन संबंध के रूप में जाने जाने वाले इस संबंध के कारण, तापमान में हर 1 डिग्री की वृद्धि के साथ, नमी में 7 प्रतिशत की वृद्धि देखते हैं। इसका मतलब है कि भारत जैसे देशों के लिए जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बहुत अधिक है। इसका प्रभाव दुनिया के महासागरों और विशेष रूप से हिंद महासागर पर सबसे अधिक है, जिसका तेजी से गर्म होना दक्षिण एशिया के उच्च वेट-बल्ब तापमान का एक बड़ा कारण है।

Shalini Rai

Shalini Rai

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