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Raja Ram Mohan Roy Biography: आधुनिक भारत के निर्माता "राजा राम मोहन राय"
Raja Ram Mohan Roy Biography In Hindi: राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में याद किया जाता है। जिन्होंने भारतीय समाज को अंधविश्वास, कुरीतियों और धर्मांधता से मुक्त करने के लिए संघर्ष किया ।
Raja Ram Mohan Roy Ke Bare Mein Jankari: राजा राम मोहन राय भारतीय पुनर्जागरण के जनक और एक महान समाज सुधारक थे। उन्होंने 1828 में ब्रह्मो सभा की स्थापना की, जो बाद में ब्रह्मो समाज बना, और समाज में सामाजिक एवं धार्मिक सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ संघर्ष के लिए जाना जाता है। राजा राम मोहन राय ने शिक्षा, धर्म, राजनीति और प्रशासन के क्षेत्र में अपने विचारों और कार्यों से गहरा प्रभाव छोड़ा। उन्हें मुगल सम्राट अकबर द्वितीय द्वारा "राजा" की उपाधि दी गई थी, और उन्होंने "गौड़ीय व्याकरण" लिखकर बंगाली भाषा के विकास में योगदान दिया। उनके प्रयासों ने भारत के सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण की नींव रखी। उन्हें "आधुनिक भारत के जनक" के रूप में जाना जाता है।
यह लेख उनके जीवन, संघर्ष, यात्रा और उपलब्धियों का विस्तार से वर्णन करता है।
"राजा राम मोहन राय का परिचय"
आधुनिक भारत के निर्माता,'राजा राम मोहन राय' का जन्म 22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल(West Bengal)के हुगली जिले के राधानगर में हुआ था।वह ब्राम्हण परिवार में जन्मे थे।
उनके पिता का नाम रमाकांत था जो वैष्णव थे,जबकि उनकी माता का नाम तारिणी देवी था जो शैव परिवार से थीं। राजा राम मोहन रॉय के दादाजी कृष्णकांत बंदोपाध्याय एक कुलीन रारही ब्राह्मण थे।
"राजा राम मोहन राय की शिक्षा "
राम मोहन राय की प्रारंभिक शिक्षा को लेकर अलग-अलग मत हैं। एक मान्यता के अनुसार, उनकी औपचारिक शिक्षा की शुरुआत गांव के पाठशाला से हुई, जहां उन्होंने बंगाली के साथ-साथ संस्कृत और फारसी का अध्ययन किया। इसके बाद वे पटना के एक मदरसे में गए, जहां उन्होंने फारसी और अरबी भाषाओं की शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्हें बनारस भेजा गया, जहां उन्होंने संस्कृत और हिंदू धर्मग्रंथों, जैसे वेद और उपनिषद, का गहन अध्ययन किया।
हालांकि, पटना और बनारस में उनकी शिक्षा के समय को लेकर कोई निश्चित तिथि उपलब्ध नहीं है। फिर भी, यह माना जाता है कि नौ वर्ष की आयु में उन्हें पटना(Patna) भेजा गया था और दो साल बाद वे बनारस(banaras)गए।
अद्वितीय बुद्धिमत्ता के धनी
राजा राममोहन राय अद्वितीय बुद्धिमत्ता के धनी थे। उन्होंने मात्र 15 वर्ष की आयु में ही बंगाली, संस्कृत, अंग्रेजी और फारसी भाषाओं पर गहरी पकड़ बना ली थी। इसके साथ ही, उन्होंने अरबी, लैटिन और ग्रीक भाषाओं का भी उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उनकी यह बहुभाषी क्षमता न केवल उनकी शिक्षा को समृद्ध बनाती थी, बल्कि उनके समाज सुधार और साहित्यिक कार्यों में भी अहम भूमिका निभाती थी।
राजा राम मोहन राय पारिवारिक जीवन
राजा राम मोहन राय, को निजी जीवन में भी संघर्ष का सामना करना पड़ा।उन्होंने तीन शादियां कीं थी।उनकी पहली पत्नी का जल्दी ही निधन हो गया।
दूसरी पत्नी से उन्हें राधाप्रसाद (जन्म 1800) और रामप्रसाद (जन्म 1812) नामक दो पुत्र हुए। जिसके बाद उनकी दूसरी पत्नी का 1824 में भी निधन हो गया। उनकी तीसरी शादी भी टिक नहीं पायी और दोनों अलग हो गए ।
प्रारंभिक जीवन और पेशा
1790 के दशक में उन्होंने बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म के सिद्धांतों का अध्ययन किया। 1795 में उन्होंने केवल 22 वर्ष की उम्र में तिब्बत यात्रा की और वहां बौद्ध धर्म का अध्ययन किया।1797 में वे कलकत्ता (अब कोलकाता) आए और एक साहूकार के रूप में काम करना शुरू किया, कंपनी के अंग्रेज अधिकारियों को ऋण प्रदान किया। उन्होंने पंडित के रूप में अंग्रेजी अदालतों में काम किया और साथ ही ग्रीक और लैटिन भाषाएँ सीखीं। 1803 से 1814 के बीच, वे ईस्ट इंडिया कंपनी की "राइटिंग सर्विस" में कार्यरत रहे और थॉमस वुड्रॉफ और जॉन डिग्बी जैसे अधिकारियों के साथ काम किया। वर्ष 1814 में राजा राम मोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह से धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक सुधारों के लिए समर्पित कर दिया।
राजा राम मोहन राय के सामाजिक योगदान
सती प्रथा का अंत: राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के खिलाफ मजबूत आवाज उठाई, जिसमें विधवाओं को उनके पति की चिता पर जिंदा जलाया जाता था।उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने 1829 में सती प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया।
बाल विवाह का विरोध:- बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाप्त करने के लिए उन्होंने जागरूकता अभियान चलाया। उन्होंने बालिकाओं को शिक्षा का अधिकार देने और उनके अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
महिला सशक्तिकरण:- राजा राम मोहन राय महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कार्य किया।
अंधविश्वास और कुरीतियों का विरोध :- उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने समाज को तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया।
पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा :- राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजी, विज्ञान और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा दिया। उन्होंने कलकत्ता में हिंदू कॉलेज (वर्तमान में प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी) की स्थापना में मदद की।
राजा राम मोहन राय के धार्मिक योगदान
उन्होंने "आत्मीय सभा" की स्थापना की, जो वैदांतिक एकेश्वरवाद के विचारों को बढ़ावा देने के लिए एक दार्शनिक चर्चा मंच था। उन्होंने 1828 में ब्राह्म समाज की स्थापना की, जो एक सुधारवादी संगठन था। ब्राह्म समाज का उद्देश्य समाज में सुधार लाना और धार्मिक अंधविश्वासों को समाप्त करना था। ब्रह्म समाज ने तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया और मूर्तिपूजा का विरोध किया।
राजा राम मोहन राय के राजनीतिक योगदान
राजा राम मोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों की आलोचना की और भारत से हो रहे आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाई।
उन्होंने भारतीय समाज में जागरूकता और आधुनिक दृष्टिकोण को विकसित करने का प्रयास किया।
शिक्षा क्षेत्र में योगदान
राजा राममोहन राय ने महसूस किया कि भारतीय समाज में प्रगति और जागरूकता लाने के लिए पश्चिमी शिक्षा और विज्ञान आधारित प्रणाली का विकास आवश्यक है। उनका मानना था कि तर्क, विज्ञान, और आधुनिक विचारों को अपनाने से समाज में सुधार होगा। उन्होंने 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो उस समय आधुनिक शिक्षा प्रदान करने वाले प्रमुख संस्थानों में से एक था। यह कॉलेज बाद में प्रेसीडेंसी कॉलेज (अब प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय) के रूप में विकसित हुआ। राजा राममोहन राय ने संस्कृत आधारित पारंपरिक शिक्षा के बजाय अंग्रेजी, गणित, विज्ञान और आधुनिक विषयों पर जोर दिया। उनका मानना था कि यह शिक्षा प्रणाली भारतीय युवाओं को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने और सामाजिक सुधारों में योगदान देने के लिए सक्षम बनाएगी। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को भी प्राथमिकता दी और इसे समाज के विकास का अनिवार्य हिस्सा माना।
राजा राम मोहन राय के साहित्यिक योगदान
राजा राम मोहन राय के साहित्यिक योगनदान में 1804 की तौहफ़त-उल-मुवाहिदीन नामक पुस्तक का समावेश है जो फारसी में लिखी गई और जिसकी भूमिका अरबी में थी। इसका अर्थ है "एकेश्वरवाउनकी धार्मिक सुधारवादी विचारधारा का प्रमुख ग्रंथ था। इसमें उन्होंने मूर्तिपूजा और पाखंडवाद का विरोध करते हुए वैदांतिक एकेश्वरवाद के सिद्धांतों का समर्थन किया।
1826 गौड़ीय व्याकरण पहली पूर्ण बंगाली व्याकरण पुस्तक मानी जाती है। इसने बंगाली भाषा के व्याकरण को संरचनात्मक रूप से व्यवस्थित किदियों को उपहार"। इस पुस्तक में उन्होंने बहुदेववाद और अंधविश्वासों की आलोचना की और एकेश्वरवाद (मोनोथिज्म) को बढ़ावा दिया।इसके अलावा ब्रह्म धर्म जो या।
पत्रकारिता और प्रकाशन में योगदान
राजा राम मोहन राय ने पत्रकारिता और प्रकाशन को सामाजिक सुधार और विचारों के प्रसार का एक प्रभावी माध्यम बनाया। 1821 में उन्होंने सम्बाद कौमुदी’ नामक बंगाली साप्ताहिक पत्रिका की स्थापना की।इसके माध्यम से सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई तथाआधुनिक विचारों के महत्व को भी इस पत्रिका के माध्यम से प्रचारित किया। यह पत्रिका बंगाली भाषा में जनता तक उनके सुधारवादी विचारों को पहुँचाने का महत्वपूर्ण साधन बनी। 1822 में फ़ारसी भाषा में मिरात-उल-अखबार’ शुरू किया।इसके माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज में स्वतंत्रता, न्याय और धर्मनिरपेक्षता के विचारों को बढ़ावा दिया।
इसमें सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर उनके लेख और टिप्पणियाँ प्रकाशित होती थीं। इसके अलावा उन्होंने स्वतंत्र प्रेस का समर्थन करते हुए ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई।जब ब्रिटिश सरकार ने प्रेस पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया, तो राजा राम मोहन राय ने इसका विरोध किया।
मृत्यु और विरासत
राजा राम मोहन राय का निधन 27 सितंबर 1833 को इंग्लैंड के ब्रिस्टल में हुआ। वह अपने स्वास्थ्य की जांच कराने और अपने सुधारवादी विचारों को समर्थन देने के उद्देश्य से इंग्लैंड गए थे। ब्रिस्टल में रहने के दौरान, वह मस्तिष्क ज्वर (मेनिन्जाइटिस) से ग्रस्त हो गए, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
उनका अंतिम संस्कार ब्रिस्टल के आर्लटन कब्रिस्तान में किया गया, जहाँ उनकी स्मृति में एक समाधि बनाई गई है। उनकी मृत्यु ने भारत और इंग्लैंड में उनके समर्थकों और अनुयायियों को गहरे शोक में डाल दिया। हालांकि, उनके विचारों और सुधारवादी दृष्टिकोण ने भारतीय समाज पर स्थायी छाप छोड़ी। राजा राम मोहन राय की सोच और उनके सुधार आज भी भारतीय समाज को प्रगति और बदलाव की दिशा में प्रेरित करते हैं।
राजा राम मोहन राय का योगदान भारत तक सीमित नहीं था। उनके विचार और कार्य इंग्लैंड और अन्य देशों में भी प्रशंसा का कारण बने।उनकी मृत्यु के बाद भी , उनके सुधारवादी दृष्टिकोण ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया। राजा राम मोहन राय ने अपने जीवन को भारतीय समाज के सुधार और प्रगति के लिए समर्पित किया। उनके द्वारा शुरू किए गए सामाजिक, धार्मिक, और शैक्षिक सुधारों ने भारत में एक नई जागरूकता और परिवर्तन की लहर पैदा की। उनकी विरासत भारतीय समाज में बदलाव और प्रगति के प्रतीक के रूप में हमेशा जीवित रहेगी।
राजा राम मोहन राय के प्रेरणादायी कथन
कथनों के माध्यम से राजा राम मोहन राय ने समाज में जागरूकता, तर्क, धर्म और शिक्षा के द्वारा बदलाव लाने का आह्वान किया।
- “ईश्वर केवल एक है। उसका कोई अंत नहीं, सभी जीवित वस्तुओं में परमात्मा का अस्तित्व है”।
- “बुद्धिमान और अच्छे लोग हमेशा उन लोगों को चोट पहुँचाने में अनिच्छुक महसूस करते हैं, जो उनसे बहुत कम ताकत वाले होते हैं”।
- “तर्क से प्राप्त सत्य का ही पालन करना चाहिए, उसकी अवहेलना कोई नहीं कर सकता”।
- “अंधविश्वास के अंधकार से बाहर निकलो, आत्मा की शुद्धता में ही सच्चा धर्म है”।
- “पाप कर्म का त्याग करना तथा उसके लिए प्रायश्चित करना मोक्ष का साधन है”।
- “शिक्षा ही समाजिक बदलाव का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है”।
राजा राम मोहन राय के सम्मान में...
राजा राम मोहन राय राष्ट्रीय पुरस्कार भारत के महान समाज सुधारक और भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत राजा राम मोहन राय के नाम पर स्थापित एक प्रतिष्ठित सम्मान है। राजा राम मोहन राय के जीवन और उनके सुधारवादी कार्यों के सम्मान में भारत सरकार ने इस पुरस्कार की स्थापना की थी।जिसका उद्देश्य सामाजिक, सांस्कृतिक या शिक्षा क्षेत्र में असाधारण योगदान देने वाले व्यक्तियों या संगठनों को सम्मानित करना है।यह पुरस्कार भारत सरकार या एक प्रासंगिक निकाय द्वारा प्रदान किया जाता है। इसे देश के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में गिना जाता है।