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Gamchha History: एक गमछा तो बनता है!
Gamchha History: गमछा को कहीं कहीं गमूचा या गमोसा नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल के साथ साथ दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों में भी जाना जाता है।
Gamchha Ka Itihas Kya Hai: गमछा तो गमछा ही है। एक बेजोड़ चीज, चाहे जो इस्तेमाल कर लो। गर्मी में सिर, मुंह ढंकने, सर्दियों में मफलर की तरह लपेटने, लुंगी की तरह लपेटने, तौलिए की तरह इस्तेमाल करने, चादर की तरह बिछा लेने से लेकर कोरोना काल में मास्क की तरह प्रयोग करने तक के इसके तमाम फायदे हैं। और तो और, बाजार में झोला ले जाना भूल गए हों तो गमछे में ही सब्जी भाजी बांधने के काम आ जाता है। यही नहीं, पूर्वोत्तर के राज्यों और खासकर असम में गमछा तो मेहमानों को भेंट स्वरूप देकर उनको सम्मानित करने की चीज है। पक्का तो नहीं कह सकते पर शायद सुदामा भी गमछे में चावल बांध कर ले गए थे। इतनी बढ़िया चीज होने के बावजूद शहरी सूटेड बूटेड लोग गमछे को देहाती चीज समझते हैं, लेकिन वह अलग विषय है।
चीज एक नाम अनेक
गमछा को कहीं कहीं गमूचा या गमोसा नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल के साथ साथ दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों में भी जाना जाता है। "गमूचा" शब्द बंगाली शब्द है जो दो बहुत ही सरल और सामान्य रूप से आता है। बंगाली शब्द, "गा" जिसका अर्थ है "शरीर", और "मुचा' जिसका अर्थ है "पोंछना"। शाब्दिक रूप से इसका अर्थ है 'शरीर को पोंछने वाला'' हालांकि, गमछा शब्द को तौलिया के रूप में व्याख्या करना भ्रामक है।
पहनने के तरीके
गमछा को अक्सर कंधे के एक तरफ पहना या धारण किया जाता है। लेकिन इसमें भी एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्नता होती है। ओडिशा में आदिवासी समुदायों के बच्चे अपनी किशोरावस्था तक गमूचा पहनते हैं जिसके बाद वे धोती पहनते हैं। इसका उपयोग पंजाब में पगड़ी और सूती तौलिया के रूप में भी किया जाता है। वे इसे परना कहते हैं।
असम में खास महत्व
असम में गमोसा या गमूसा का विशेष उपयोग होता है। इसे सम्मान के प्रतीक के रूप में दिया जाता है। बिहू नृत्य में पुरुष नर्तक इसे एक हेडस्कार्फ़ के रूप में पहनते हैं। पारंपरिक असमिया पोशाक तभी पूरी होती है जब कोई गामुसा पहनता है। अहोम राजा के समय में अहोम सैनिकों की पत्नी सुरक्षा और जीत सुनिश्चित करने के लिए एक रात के भीतर एक गामुसा बुनती थीं और अपने पति को भेंट करती थीं।
तरह तरह के गमछे
गमछे सफेद, लाल, नीले, ऑरेंज रंगों में ज्यादा आम हैं और जहां तक डिज़ाइन की बात है तो चेक, धारीदार या प्लेन गमछे ही दिखाई देते हैं।असम और बंगाल में कढ़ाई किये हुए और चमकदार बॉर्डर वाले गमछे होते हैं, लेकिन वह भी वैसे वाले जिनका उपयोग सम्मान करने, भेंट देने या औपचारिक पारंपरिक समारोह में धारण करने के लिए किया जाने वाला होता है।
असम का गमछा अमूमन लाल और सफ़ेद फूलों वाला होता है जबकि बंगाली गमछा लाल और सफ़ेद चेकदार पैटर्न वाला होता है। दोनों की अपनी अलग अलग सांस्कृतिक पहचान है।
कहाँ बनते हैं गमछे
जहां तक गमछे उत्पादन की बात है तो इनके ठिकाने ओडिशा, बंगाल, तमिलनाडु, यूपी, बिहार, असम में बहुत हैं जहां हथकरघा और पावरलूम, दोनों पर गमछे बनाये जाते हैं। गमछे कई साइज में आते हैं और बड़े साइज वाला गमछा 200 गुणे 100 सेंटीमीटर का होता है।
जर्मनी में गमछा
आपको जानकर हैरानी होगी कि गमछा खासकर जर्मनी और पश्चिमी यूरोप तक में पहुंचा हुआ है। दरअसल, ब्रुनेलो कुसिनेली नामक एक दार्शनिक-डिजाइनर ने "गमछा" नाम से एक संगठन की स्थापना 2014 में बिहार के भागलपुर और जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में की थी। इनकी वेबसाइट के अनुसार "गमछा" की स्थापना का उद्देश्य बुनकरों को सम्मान की जिंदगी देना, उनके हुनर को संरक्षित करना और सर्वोत्कृष्ट क्वालिटी के उत्पाद बनाना था। इनकी साइट पर जो गमछे बिक्री के लिए उपलब्ध हैं उनकी कीमत भी जान लीजिये - 200 यूरो यानी करीब 18 हजार रुपये। हां, चूंकि यूरोपियन लोग गमछा तो समझेंगे नहीं सो इन्हें स्कार्फ बताया गया है।