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गिलोय से होता है लिवर को नुकसान? उपयोग करने वालों को रहना होगा सतर्क
सोशल मीडिया पर दावे किए जा रहे हैं की गिलोय आपके लीवर को खराब कर रहा है...
Covid-19: क्या लगभग हर घर में पाए जाने वाले गिलोय के इस्तेमाल में अब लोगों को रहना होगा सतर्क? क्या कोरोना वायरस महामारी के बीच गिलोय के इस्तेमाल में आई तेजी के नुकसान भी आ रहे हैं सामने? क्या गिलोय से आपके लिवर को पहुंच रहा है नुकसान? जानें सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस खबर का सच!
दुनियाभर में फैली कोरोना वायरस अभी खत्म नहीं हुई है। वैक्सीन आने के बावजूद भारत सरकार समय समय पर दिशा निर्देशों के पालन को लेकर ऐडवाइज़री जारी कर रही है। देश में फैली नई लहर तेज़ी से पैर पसार रही है, ऐसे में ये ज़रूरी है कि लोग दिशा निर्देशों के पालन को गंभीरता से लें और साथ ही फर्ज़ी खबरों और अफवाहों से भी दूर रहें और उन्हें शेयर करने से बचें।
गिलोय पहुंचा रहा लिवर नुकसान?
सोशल मीडिया पर एक खबर तेज़ी से वायरल हो रही है जिसमें गिलोय और इसके दुष्प्रभाव को लेकर कई दावे किए जा रहे हैं। खबर में लिखा है, "गिलोय से जुड़े लिवर को नुकसान को लेकर डॉक्टरों ने किया आगाह। अगर जड़ी-बूटियों की सही पहचान नहीं की गई, तो उसके हानिकारक नतीजे निकल सकते हैं। टिनोसपोरा कॉर्डीफोलिया (टीसी) जिसे आम भाषा में गिलोय या गुडुची कहा जाता है, उसके इस्तेमाल से मुम्बई में छह मरीजों का लीवर फेल हो गया।"
गलत है दावा
तेज़ी से वायरल हो रहे इस खबर पर संज्ञान लेते हुए इसको शेयर कर सरकार की पीआईबी फैक्ट चेक के ट्विटर हैंडल ने स्पष्टीकरण जारी किया है। हैंडल ने ट्वीट किया, "गिलोय को लिवर की खराबी से जोड़ना बिलकुल भ्रामक हैः आयुष मंत्रालय। गिलोय या टीसी को लिवर खराब होने से जोड़ना भी भ्रामक और भारत में पारंपरिक औषधि प्रणाली के लिये खतरनाक है, क्योंकि आयुर्वेद में गिलोय को लंबे समय से इस्तेमाल किया जा रहा है। तमाम तरह के विकारों को दूर करने में टीसी बहुत कारगर साबित हो चुकी है। गिलोय जैसी जड़ी पर जहरीला होने का ठप्पा लगाने से पहले लेखकों को मानक दिशा-निर्देशों के तहत उक्त पौधे की सही पहचान करनी चाहिये थी, जो उन्होंने नहीं की। इसके अलावा, अध्ययन में भी कई गलतियां हैं। यह बिलकुल स्पष्ट नहीं किया गया है कि मरीजों ने कितनी खुराक ली या उन लोगों ने यह जड़ी किसी और दवा के साथ ली थी क्या। अध्ययन में मरीजों के पुराने या मौजूदा मेडिकल रिकॉर्ड पर भी गौर नहीं किया गया है।अध्ययन का विश्लेषण करने के बाद, यह भी पता चला कि अध्ययन के लेखकों ने उस जड़ी के घटकों का विश्लेषण नहीं किया, जिसे मरीजों ने लिया था। यह जिम्मेदारी लेखकों की है कि वे यह सुनिश्चित करते कि मरीजों ने जो जड़ी खाई थी, वह टीसी ही थी या कोई और जड़ी। ठोस नतीजे पर पहुंचने के लिये लेखकों को वनस्पति वैज्ञानिक की राय लेनी चाहिये थी या कम से कम किसी आयुर्वेद विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिये था।
खुद करें जांच, तब करें विश्वास
आज के दौर में जहां जानकारियां जल्दी से जल्दी पहुंचने की ज़रूरत है वहीं इस बात पर भी ज़ोर देना होगा की गलत जानकारी ना साझा की जाए। सोशल मीडिया पर आए दिन कई ऐसी खबरें वायरल होती रहती हैं जिसमें कोरोना वायरस और ब्लैक फंगस को लेकर अलग अलग दावे किए जाते हैं। हमें उनकी प्रामाणिकता की जांच कर ही उनपर विश्वास करना होगा।