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Pad Woman of India: जानें मध्यप्रदेश की माया की कहानी, जो बचा रहीं महिलाओं का जीवन और बन गईं लोगों की प्रेरणा
Maya Vishwakarma Wiki: माया विश्वकर्मा, जिन्हें पैड-जीजी के नाम से जाना जाता है, उनका यह सफर व्यक्तिगत संघर्षों से प्रेरित होकर समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में अग्रसर है।
Pad woman of India (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Pad Woman Of India: माया विश्वकर्मा (Maya Vishwakarma), जिन्हें 'पैड वुमन ऑफ इंडिया' के नाम से जाना जाता है, मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की एक प्रेरणादायक महिला हैं। उन्होंने अपने जीवन को ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं में मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए समर्पित किया है। उनका यह सफर व्यक्तिगत संघर्षों से प्रेरित होकर समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में अग्रसर है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
माया का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनके पिता पेशे से लोहार थे, और परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। इसके बावजूद, माया ने शिक्षा के महत्व को समझा और अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने 26 साल की उम्र तक सैनिटरी पैड का नाम तक नहीं सुना था और ना ही उसका उपयोग किया था। उस समय वे दिल्ली में रिसर्च कर रही थीं और मासिक धर्म के दौरान कपड़े का उपयोग करती थीं।
इसकी वजह से उन्हें कई स्वास्थ्य समस्याओं और संक्रमणों का सामना करना पड़ा। इस अनुभव ने उन्हें झकझोर कर रख दिया और उन्होंने इस विषय पर गहराई से विचार करना शुरू किया।उन्होंने जबलपुर से बायो-केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और बाद में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में शोधकार्य किया। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें अमेरिका की कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में ल्यूकेमिया कैंसर पर शोध करने का अवसर प्रदान किया।
'पैड जीजी' से सरपंच तक का सफर
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
मध्य प्रदेश की बेटी माया विश्वकर्मा, जिन्हें 'पैड जीजी' के नाम से भी जाना जाता है, अब निर्विरोध सरपंच चुनी गई हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य और मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर जागरूकता फैलाने वाली माया ने अपने जीवन को सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया है।
मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूकता की शुरुआत
माया ने 26 वर्ष की उम्र तक स्वयं सेनेटरी पैड का उपयोग नहीं किया था। ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी माया को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता के महत्व के बारे में जानकारी नहीं थी, जिससे उन्हें कई बार संक्रमण का सामना करना पड़ा। इन व्यक्तिगत अनुभवों ने उन्हें इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने महसूस किया कि यदि उन्हें इस समस्या का सामना करना पड़ा है, तो अन्य ग्रामीण महिलाएं भी इससे अछूती नहीं होंगी।
अमेरिका से गाँव तक की यात्रा
माया ने अमेरिका में एक सफल करियर बनाया, लेकिन जब भी वे अपने गाँव वापस जातीं, तो उन्हें वहाँ की दुर्दशा देखकर दुःख होता था। गाँव में स्कूल, बिजली, पानी और महिलाओं के स्वास्थ्य की गंभीर समस्याएं बनी हुई थीं। उन्हें महसूस हुआ कि यदि वे अमेरिका में रहकर अच्छा जीवन व्यतीत कर सकती हैं, तो उनके गाँव और जिले की लड़कियां भी आगे बढ़ सकती हैं। यह सोच उनके मन में गहराई से बैठ गई और उन्होंने गाँव की स्थिति सुधारने का संकल्प लिया।
'पैडमैन' से प्रेरणा और सुकर्मा फाउंडेशन की स्थापना
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
2016 में, माया ने 'पैडमैन' के नाम से प्रसिद्ध अरुणाचलम मुरुगनाथम से मुलाकात की, जिन्होंने सस्ते सेनेटरी पैड बनाने की मशीन विकसित की थी। उनसे प्रेरित होकर, माया ने भी एक मशीन खरीदी और अपने गाँव में सस्ते पैड बनाने का कार्य शुरू किया। इसी वर्ष के अंत में, उन्होंने 'सुकर्मा फाउंडेशन' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाना और सस्ते सेनेटरी पैड उपलब्ध कराना था।
'नो टेंशन' पैड्स और महिलाओं की सहभागिता
सुकर्मा फाउंडेशन के तहत, माया ने 'नो टेंशन' नामक सेनेटरी पैड्स का उत्पादन शुरू किया। इन पैड्स को बनाने में स्थानीय महिलाओं की सहभागिता सुनिश्चित की गई, जिससे उन्हें रोजगार के अवसर भी मिले। वर्तमान में, फाउंडेशन प्रतिदिन लगभग 2,000 पैड्स का उत्पादन करता है, जो मुख्यतः आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को मुफ्त में वितरित किए जाते हैं। माया का मानना है कि लाभ कमाने से अधिक महत्वपूर्ण समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।
मासिक धर्म स्वच्छता पर काम की शुरुआत
माया ने एम्स में अपने शोधकार्य के दौरान महिलाओं की हाइजीन और मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं को समझा। दस साल पहले इस विषय पर कोई बात नहीं करता था, लेकिन उन्होंने इस दिशा में काम करने की ठानी। 'पैडमैन' के नाम से मशहूर अरुणाचलम मुरुगनाथम से मार्गदर्शन प्राप्त कर उन्होंने 2016 में 'सुकर्मा फाउंडेशन' (Sukarma Foundation) की स्थापना की। इस फाउंडेशन के तहत महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता से संबंधित जानकारी दी जाने लगी और सस्ते सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराए जाने लगे।
महिलाओं के आत्मनिर्भर बनने की पहल
सुकर्मा फाउंडेशन के माध्यम से माया ने एक सेंटर की स्थापना की, जहाँ महिलाओं और बच्चों को कंप्यूटर की बुनियादी शिक्षा दी जाती है। साथ ही, महिलाओं को सिलाई सिखाई जाती है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य और मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाना है।
चुनौतियाँ और समाज की प्रतिक्रिया
मासिक धर्म जैसे संवेदनशील विषय पर काम करना आसान नहीं था। माया को सामाजिक बाधाओं और पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी दृढ़ता और समर्पण ने धीरे-धीरे समाज की सोच में परिवर्तन लाया। आज, गाँव की महिलाएं उन्हें सम्मानपूर्वक 'पैड-जीजी' (Pad Jiji) कहकर पुकारती हैं। उनकी पहल ने न केवल महिलाओं को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया है।
माया विश्वकर्मा की कहानी समाज में परिवर्तन लाने की शक्ति का प्रतीक है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत संघर्षों को समाज की भलाई के लिए उपयोग किया और हजारों महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। उनका कार्य यह सिद्ध करता है कि एक व्यक्ति की पहल से बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन संभव है।
माया विश्वकर्मा का जीवन संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। अमेरिका में एक सफल करियर बनाने के बावजूद उन्होंने अपने गाँव की स्थिति सुधारने को प्राथमिकता दी।