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HEALTH: रोग नहीं, रोगी का इलाज करती है होम्योपैथी
पत्रकारिता के माध्यम से जनमानस को स्वास्थ्य के संबंध में एक छोटा सा संदेश देना चाहता हूं। विश्व में स्वास्थ्य ठीक करने के लिए तथा बीमार आदमी का इलाज करने के लिए बहुत से साधन एवं चिकित्सा प्रणालियां हैं और सभी लोग उससे चिकित्सा के क्षेत्र में एलोपैथी, होम्यापैथी एवं आयुर्वेद के बीच विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठते रहते हैं।
डॉ. विक्रम प्रसाद
लखनऊ : पत्रकारिता के माध्यम से जनमानस को स्वास्थ्य के संबंध में एक छोटा सा संदेश देना चाहता हूं। विश्व में स्वास्थ्य ठीक करने के लिए तथा बीमार आदमी का इलाज करने के लिए बहुत से साधन एवं चिकित्सा प्रणालियां हैं और सभी लोग उससे चिकित्सा के क्षेत्र में एलोपैथी, होम्यापैथी एवं आयुर्वेद के बीच विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठते रहते हैं। सबको खारिज करने और खुद को सर्वोच्च बताने के लिए अपने-अपने तर्क हैं। हर वस्तु एवं हर पद्धति की अपनी कुछ विशेषताएं होती हैं। आवश्यकतानुसार, समयानुसार चुनाव करना ही महत्वपूर्ण होता है। यही फार्मूला चिकित्सा क्षेत्र में भी लागू होता है। चूंकि मैं एक होम्योपैथिक चिकित्सक हूं तो उसी के विषय में बात की।
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होम्योपैथिक जर्मनी के एक छोटे गांव से शुरू होकर दुनिया में एक छोर से दूसरी छोर तक फैल गई है। भारत वर्ष में लगभग 200 महाविद्यालय तथा लगभग ४ लाख होम्योपैथिक चिकित्सक अपना योगदान दे रहे हैं। इसकी बढ़ती हुई लोकप्रियता से भारत सरकार द्वारा अलग से आयुष विभाग में शामिल करते हुए स्वास्थ्य को मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि हमें होम्योपैथिक इलाज क्यों कराना चाहिए? अर्थात इसमें ऐसी कौन सी विशेषता एवं खूबी है, जो दूसरे इलाज में नहीं हैं।
इस चिकित्सा प्रणाली के विशेष फायदे या विशेष लाभ क्या हैं? और किस तरह के रोगों के लिये हमें होम्योपैथिक चिकित्सा का सहारा लेना चाहिए? कौन सी बीमारियों के लिए हमें दूसरी तरह की चिकित्सा प्रणालियों के शरण में जाना चाहिए? यह भी बहुत महत्वपूर्ण बात है कि हमें किस तरह के होम्योपैथिक डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए। इलाज कराने के दौरान किस तरह का भोजन करना चाहिए तथा कैसा परहेज करना चाहिए? हमारे दिमाग में तीन मुख्य बातें आ रही हैं।
01. होम्यापैथिक क्यों?
02. होम्योपैथिक कब और कब नहीं?
03. होम्योपैथी किससे?
होम्यापैथी क्यों?
यह प्रमाणित सत्य है कि रोगों के इलाज की जितनी प्रणालियां हैं, जितने भी वैज्ञानिक रास्ते हैं, उन सभी में होम्यापैथी का कार्यक्षेत्र सबसे विस्तृत और कार्य क्षमता सबसे अधिक है, होम्यापैथिक रोग का इलाज नहीं बल्कि रोगी का इलाज करती है। इस तरह जितने प्रकार के रोगों की चिकित्सा होम्यापैथिक दवाओं के व्यवहार से हो सकती है, उतनी किसी और चिकित्सा विज्ञान से नहीं।
01. होम्यापैथिक दवा के व्यवहार से शरीर को किसी तरह की हानि नहीं होती। जबकि इन दवाओं के कारण सैकड़ों प्रकार की बीमारियां हो
रही है।
02. इस दवा के सेवन से रोगी या होने वाले बच्चे का कोई नुकसान नहीं होता न ही किसी अंग पर कुप्रभाव पड़ता है। बहुत दिनों तक ऐलोपैथी या ऐसी कोई दवा का प्रयोग करते रहें तो हम उस दवा के आदी हो जाते हैं। उसके बिना हमारा काम नहीं चलता। जैसे नींद की दवा, दर्द की दवा, पेट साफ करने की दवा इत्यादि। होम्यापैथिक दवा के व्यवहार से ऐसी अवस्थाएं नहीं होती।
03. होम्योपैथिक दवा से सिर्फ रोग के लक्षणों और कष्ट की चिकित्सा नहीं होती। बल्कि शरीर में बीमारी प्रवेश करने के झुकाव प्रवणता एवं बीमारी होने की संभावना को खत्म करने की क्षमता रखती है। यही होम्यापैथिक की मूल्य विशेषता है। जैसे बार-बार ठंड लगना, सर्दी खांसी, बुखार या टोंसीटिलिन हो जाना यह सब होम्योपैथिक दवा से जड़ से साफ हो जाती है। बीमार होने की प्रवृत्ति जड़ से समाप्त हो जाती है।
04. वर्तमान तकलीफ के इलाज के साथ-साथ होने वाले भविष्य के रोग की प्रवणता भी समाप्त हो जाती है। जैसे फेफड़े में पानी जमा होने से टी.वी. होने की संभावना रहती है। गठिया या वात की बीमारी होने से हृदय रोग होने की बड़ी प्रवृत्ति रहती है। लेकिन इन मर्जों का इलाज होम्यापैथिक से किए जाने से वर्तमान कष्ट निवारण के साथ-साथ भविष्य के सुरक्षा की व्यवस्था भी हो सकती है।
05. किसी अन्य पद्धति द्वारा गलत इलाज कराए जाने या अत्यधिक दवा की वजह से रोग दबने (सप्रेशन) के चलते दूसरी बीमारियां पैदा हो गई हों तो होम्यापैथिक उनका भी निराकरण करती है। जैसे दाद, दिनाप, खुजली या अन्य चर्म रोग तथा सुजाक या गर्मी जिसे मलहम से तथा दवा एवं सुई से दबा दिया जाता है। यही बाद में दमा, सांस की दूसरी बीमारी, हाई बीपी, बेहोशी (मिर्गी) लकवा तथा पागलपन इत्यादि जैसे बड़े रोग हो जाते हैं।
यही नहीं, होने वाले बच्चों के स्वास्थ्य पर इनका भयानक प्रभाव पड़ता है। आंत एवं शरीर में रोग को दबा कर रखना सूद पर पैसे लेकर खर्च करने जैसी बात है। जिसका पूरा ब्याज और मूल एक दिन भरना ही पड़ता है। सभी बुद्धिमान चिकित्सक एवं शिक्षित व्यक्ति यह जानते हैं कि इस घटनाक्रम को केवल होम्यापैथिक द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।
06. अगर किसी बच्चे की बचपन में ही होम्योपैथिक चिकित्सा हो तो मां-बाप के कारण या वंशानुगत दोषों के कारण अथवा परिस्थितियों के कारण उसके अन्दर जो रोग प्रवृत्तियां (शारीरिक या मानसिक) होने की संभावना है, वह समाप्त हो जाती है। इससे न केवल शरीर एवं दिमाग के रोग बल्कि चरित्र दोष सामाजिक गुणों की कमी एवं स्वभाव की उग्रता इत्यादि को भी ठीक किया जा सकता है। यही कारण है कि लोगों को यह कहते हुए सुना जाता है कि होम्योपैथिक चिकित्सा बच्चों के लिए अधिक लाभदायक और जरूरी है।
07. संतान का नहीं होना, पुरुषों के वीर्य में शुक्राणु का नहीं होना, महिलाओं की बच्चेदानी छोटी होना इत्यादि बीमारियों के लिए बचपन में ही किसी अच्छे होम्योपैथिक चिकित्सक द्वारा इलाज हो तो ऐसी तमाम समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। क्योंकि होम्योपैथिक चिकित्सा से मनुष्य को सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ बनाना संभव है।
08. होम्योपैथिक इलाज पैथोलॉजी रिपोर्ट का इंतजार नहीं करती। जैसे खून की जांच, बलगम की जांच तथा एक्सरे, यूएसजी इत्यादि। बल्कि होम्योपैथिक चिकित्सक लक्षणों को देखकर, समझकर चिकित्सा आरम्भ कर देते हैं। जबकि एलोपैथिक चिकित्सा में इन सभी रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ता है। जबकि रिपोर्ट आने में काफी समय लगता है। तब तक मरीज का मर्ज बढ़ता रहता है।
ईमानदार ऐलोपैथिक डॉक्टर रिपोर्ट का इंतजार करता है। अन्य डाक्टर जिसे पैसे से प्रेम हो वह टॉनिक, विटामिन या अन्य अनावश्यक दवाएं देकर रोगी को समझाता रहता है। तब तक शायद मूल रोग फैलता रहता है। भंयकर रूप भी ले सकता है।
09. चूंकि होम्योपैथिक प्रकृति के आरोग्यकारी नियमों पर आधारित है। इसलिए स्वस्थ होने के बाद मनुष्य दोबारा उस रोग के पंजे में नहीं पड़ता। बल्कि उससे मुक्त हो जाता है।
10. होम्योपैथिक चिकित्सा से मनुष्य के अंदर रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है। उसे रोग से लडऩे की क्षमता प्राप्त हो जाती है।
11. दवाओं के बनाने के तौर तरीके बड़े सरल हैं। रोगी को दवा बहुत कम मात्रा में दी जाती है। बार-बार दवा खिलाने की जरूरत नहीं पड़ती। गरीब एवं निर्धनों की यह अपनी चिकित्सा प्रणाली है क्योंकि कम पैसे में भी इलाज संभव हो सकता है।
12. अंत में यह दवाइयां समाज सुधारक का भी कार्य करती हैं। जैसे अधिक क्रोध, अधिक भय, चोरी करने की प्रवृत्ति, उग्र तथा मारपीट करने की प्रवृत्ति निष्ठïुर स्वभाव इत्यादि को नियोजन कर सकती हैं।
13. बुरी आदतें जैस सिगरेट पीना, शराब पीना इत्यादि होम्यापैथिक दवा से नशे की अरूचि पैदा कर सकती है।
(लेखक उ.प्र.सरकार में होम्योपैथिक निदेशक रहे हैं)