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देह दान से जीवन रक्षा में मदद, लखनऊ में भी बढ़ा है इस महादान का चलन

suman
Published on: 21 July 2017 8:48 AM GMT
देह दान से जीवन रक्षा में मदद, लखनऊ में भी बढ़ा है इस महादान का चलन
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अमित यादव

लखनऊ: वेदों में दान का अहम स्थान है। मेडिकल साइंस के छात्र दान में मिली देह से चिकित्सा विज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। अकेले केजीएमयू में 320 छात्र इसी को आधार बनाकर जीवन रक्षा के गुण सीख रहे हैं। बदलते समय के साथ धीरे-धीरे देह दान एक अभियान का रूप लेता जा रहा है। हाल के वर्षों में देह दान करने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। बढ़ते आंकड़े बता रहे हैं कि देह दान को लेकर लोग अब जागरुक हो रहे हैं। इस अभियान में एनजीओ से लेकर वृद्धाश्रम तक लगे हैं, लेकिन समाज का एक बड़ा तबका अभी भी इससे दूर है। केजीएमयू का एनॉटॉमी विभाग इसके लिए लगातार प्रयास कर रहा है।

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पहले कराना होता है पंजीकरण

देह दान का संकल्प व्यक्ति मरने से पहले करता है। इसके लिए इच्छुक लोगों को केजीएमयू के एनॉटॉमी विभाग में संपर्क करना होता है। एक रजिस्ट्रेशन फार्म भरने के साथ परिवार के दो सदस्यों की गवाही आवश्यक है। घर का पता, मोबाइल नंबर आदि आवश्यक जानकारियां उपलब्ध करानी होती हैं। पंजीकरण में मात्र 10 मिनट का समय लगता है। देह दान इंचार्ज सुरेश कुमार पांडेय से संपर्क करना होता है जिनका मोबाइल नंबर 9452238388 है।

मरणोपरांत परिवार के सदस्यों को एक से दो घंटे के अंदर देहदान प्रभारी को सूचित करना होता है। इसके बाद टीम तैयार होती है और बॉडी को लेकर आती है। फिर शरीर को जांच के लिए भेजा जाता है। परिवार के सदस्य उनके शरीर से बाल, नाखून का छोटा टुकड़ा आदि ले लेते हैं। मौके पर आई टीम के सामने ही यह कार्य होता है। शरीर के इन्हीं हिस्सों को लेकर वे दाह संस्कार करते हैं।

नेत्र दान के लिए अलग रजिस्ट्रेशन

देह दान के साथ अगर नेत्र दान करना हो तो उसके लिए एक अलग फार्म भरना होता है। इसके लिए अलग से रजिस्टर कराना आवश्यक है। यह जरुरी नहीं है कि नेत्र दान करने वाला व्यक्ति देहदान करे। यह उसका खुद का संकल्प है। नेत्र दान करने वाले व्यक्ति के परिवार वालों को मरणोपरांत तुरंत केजीएमयू के देह इंचार्ज सुरेश कुमार पांडेय को सूचना देनी होती है। अगर केवल नेत्र दान का संकल्प है तो टीम घर आकर आंख के पास छोटा सा चीरा लगाकर रेटीना ले जाती है।

कर देते हैं बॉडी को दफन

अध्ययन कार्य खत्म होने के बाद बॉडी को सम्मान के साथ हाईयर मेडिकल डिपार्टमेंट भेज दिया जाता है। फिर वहंा उनको दफन कर दिया जाता है, लेकिन इसकी जानकारी परिवार के सदस्यों को नहीं मिलती है। देह दान रजिस्टर कराई बॉडी के केजीएमयू में आने के बाद परिवार वालों को उसे देखने की अनुमति नहीं है। दरअसल छात्र इस बॉडी पर अध्ययन कार्य चालू कर देते हैं और इसके बाद परिवार का कोई भी सदस्य चाहे तो भी बॉडी को नहीं देख सकता है।

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मिलता है सम्मान

देह दान इंचार्ज सुरेश कुमार पांडेय ने बताया कि हर साल देह दान करने वाले परिवार वालों को सम्मानित किया जाता है। कार्यालय में एक बोर्ड पर उनकी फोटो लगाई जाती है। देह दान में एक्सीडेंटल और सुसाइड करने वालों को शामिल नहीं किया जाता है।

राजधानी के आसपास के जिले हैं सक्रिय

देह दान को लेकर लखनऊ के आसपास कानपुर, बाराबंकी आदि स्थानों के लोग तत्पर हैं। विभाग की ओर से 100 से 150 किमी दूरी वालों के शव लाने की व्यवस्था है। अगर देह दान संकल्प लेने वाला व्यक्ति का मरणोपरांत शरीर कहीं दूर होता है तो उसके परिजनों पर शव लाने का जिम्मा होता है। सक्रिय परिवार खुद बॉडी को लेकर जल्दी से जल्दी आते हैं। अगर किसी कारणवश शव नहीं ला पाते हैं तो देहदान विभाग को जानकारी देनी होती है। इसके बाद जाकर दाह संस्कार कर सकते हैं।

पांच महीने तक चलता है अध्ययन

देह दान में मिली बॉडी से एमबीबीएस और बीडीएस कोर्स के प्रथम वर्ष के छात्र पढ़ते हैं। शरीर के हर पार्ट का अध्ययन देह दान से ही संभव हो सका है। पढऩे वाले छात्र इस पर रिसर्च करते हैं। एक बॉडी से करीब पांच महीनों तक अध्ययन कार्य चलता है। देहदान करने वालों में 70 प्रतिशत पुरुष जबकि 30 फीसदी महिलाएं शामिल हैं। समाज के हर तबके के लोग इसमें शामिल हो रहे हैं।

महानगर के एनजीओ भी शामिल

देह दान में वरदान और दृष्टि जैसे एनजीओ शामिल हैं। इनके सदस्य समय-समय पर लोगों को जागरुक करते हैं। इसके अलावा तकरोई के वृद्धाश्रम से कई लोगों ने देह दान किया है।

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केजीएमयू में 1993 में हुई देहदान की शुरुआत

केजीएमयू के एनॉटॉमी विभाग में वर्ष 1993 से देह दान का कार्य प्रारंभ हुआ। पहला पंजीकरण डॉ रामलखन चौधरी ने कराया था। इसके बाद 1994 में दो और 96 में एक व्यक्ति ने देह दान का पंजीकरण कराया था। 1993 से 2004 तक केवल 13 लोगों ने देह दान के लिए रजिस्टर कराया था। वर्ष 2005 तक देहदान प्रक्रिया रफ्तार नहीं पकड़ पाई। देह दान इंचार्ज सुरेश कुमार पांडेय ने बताया कि 2006 में पहली बॉडी स्वर्गीय शिवशंकर की थी जो तकरोई के वृद्ध आश्रम से आई थी।

समय के साथ बढ़ी लोगों की संख्या

2006 में 5, 2007 में 6, 2009 में 4, 2010 में 10, 2011 में 20, 2012 में 37, 2013 में 33, 2014 में 31, 2015 में 27, 2016 में 39, 2017 में अब तक 17 लोगों ने देहदान का संकल्प लिया है।

राजधानी की शशी बनीं मिसाल

पिछले हफ्ते केजीएमयू में शहर के इंदिरा नगर में रहने वाली महिला स्वर्गीय शशीप्रभा श्रीवास्तव की बॉडी पहुंची है। उन्होंने देह व नेत्र दान करने के लिए पंजीकरण कराया था। उनकी उम्र 86 साल थी। उन्होंने 3 जून 2017 को पंजीकरण कराया था। केजीएमयू को 11 जुलाई को उनकी बॉडी मिली है। उनके बेटे अरविंद भारती ने केजीएमयू को बॉडी सौंपी। उनके बेटे ने बताया कि मेरी मां एक अद्भुत साहस वाली महिला थी। वे शुरू से लोगों की मदद करती थीं। उनका ऐसा सोचना था कि मरने के बाद उनका शरीर किसी अच्छे काम में आए।

महादान बढ़ा

देह दान में मिली बॉडी पर छात्र करीब पांच महीने अध्ययन करते हैं। बॉडी के तापमान पर विशेष ध्यान देना होता है। देह दान से ही शरीर के सभी हिस्सों का अध्ययन प्रैक्टिकल तौर पर होना संभव हो सका है। इसलिए देह दान को महादान भी कह सकते हैं। महादान करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। हम सबका प्रयास है कि देहदान करने वालों की संख्या और बढ़े।

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