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History Of Birsa Munda: बिरसा मुंडा, आदिवासी संघर्ष के प्रतीक और भगवान का दर्जा प्राप्त नेता

Birsa Munda Ka Jivan Parichay in Hindi: बिरसा मुंडा भारत के महान आदिवासी नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 25 वर्ष की अल्पायु में निधन के बावजूद, उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमर है। आइए जानें उनके बारे में।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 19 Jan 2025 9:30 AM IST (Updated on: 19 Jan 2025 9:31 AM IST)
Birsa Munda Biography in Hindi
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 Birsa Munda Biography in Hindi

Birsa Munda Biography In Hindi: बिरसा मुंडा भारत के महान आदिवासी (Tribal) नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। झारखंड के उलीहातू गांव में जन्में बिरसा ने ब्रिटिश शासन (British Government) के खिलाफ ‘उलगुलान’ विद्रोह का नेतृत्व किया और आदिवासी समाज को अपने अधिकारों और पहचान के लिए जागरूक किया। उन्होंने आदिवासियों को सामाजिक कुरीतियों से मुक्त होने और भूमि व वन अधिकारों की रक्षा के लिए प्रेरित किया। अपने साहसिक कार्यों के लिए उन्हें ‘भगवान बिरसा’ के रूप में पूजा जाता है। 25 वर्ष की अल्पायु में निधन के बावजूद, उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमर है। यह लेख उनके जीवन, संघर्ष और उपलब्धियों का विस्तार से वर्णन करता है।

बिरसा मुंडा का प्रारंभिक जीवन (Birsa Munda Biography In Hindi)

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखंड के एक छोटे से गांव उलिहातू में हुआ था। वे एक सामान्य परिवार से थे। उनके माता-पिता नागपुर पठार क्षेत्र की मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखते थे। इनके पिता का नाम सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता का नाम करमी पुर्ती (मुंडा) था। परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कठिन थी। उनके माता-पिता दूसरे गांवों में मजदूरी करते थे। इसलिए उनकी देखभाल के लिए उन्हें अपने मामा के पास भेजा गया। मामा के पास रहते हुए, बिरसा ने भेड़ें चराने के साथ-साथ गणित और अक्षर ज्ञान की बुनियादी शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय बाद, उनका दाखिला एक मिशनरी स्कूल में हुआ, जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी।

चाईबासा से की अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत (Angrejo Ke Khilaf Sangharsh)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

बिरसा मुंडा ने चाईबासा में 1886 से 1890 तक चार वर्ष बिताए, जहां से अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासी आंदोलन की शुरुआत हुई। उन्होंने एक नारा दिया- "अबूया राज एते जाना/ महारानी राज टुडू जाना", जिसका मतलब था मुंडा राज की शुरुआत और महारानी का शासन खत्म। बिरसा ने आदिवासियों को आदेश दिया कि वे अंग्रेज़ों को कोई टैक्स न दें, और उनका संघर्ष आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए था।

रोमन कैथोलिक धर्म को अपनाया (Roman Catholicism)

बिरसा मुंडा ने जर्मन मिशन छोड़कर रोमन कैथोलिक धर्म अपनाया, लेकिन बाद में उससे भी मोहभंग हो गया। 1891 में वे आनंद पांड़ के संपर्क में आए, जो रामायण और महाभारत के ज्ञाता थे। बिरसा ने अधिकांश समय उनके साथ बिताया। इसी दौरान पोड़ाहाट क्षेत्र में सरकार ने जंगलों को संरक्षित घोषित कर दिया, जिससे आदिवासी नाराज हो गए और विरोध में आंदोलन शुरू किया। बिरसा ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए इन घटनाओं से प्रेरणा लेकर आंदोलन को संगठित किया।

उलगुलान (विद्रोह) का किया नेतृत्व

19वीं शताब्दी के अंत का वो दौर था,जब अंग्रेजों ने आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने के लिए कुटिल नीतियाँ अपनाई। इसके कारण आदिवासी लगातार संघर्ष कर रहे थे। लेकिन उनकी संख्या कम होने और आधुनिक हथियारों की कमी के कारण उनके विद्रोह को दबा दिया जाता था। यह स्थिति देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए और परिणामस्वरूप उन्होंने आदिवासी अस्मिता और संस्कृति की रक्षा के लिए ‘उलगुलान’ आंदोलन शुरू किया और विद्रोह की आग में कूद पड़े ।

बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने 1899-1900 के बीच ‘उलगुलान’ या मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया, जो आदिवासियों के लिए एक ऐतिहासिक संघर्ष था। यह आंदोलन लगभग 6 वर्षों तक चला और इसमें हजारों आदिवासी शामिल हुए। इस आंदोलन में बिरसा ने आदिवासियों को संगठित किया और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जोरदार प्रतिरोध किया।

बिरसा से ‘धरती आबा’ तक का सफर

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

बिरसा मुंडा ने मुंडा समुदाय की गरीबी को देखा और मिशनरियों द्वारा आदिवासियों को बरगलाने का विरोध किया। उन्होंने आदिवासियों को महामारी से बचने के उपाय सिखाए और उन्हें अपने धर्म और संस्कृति से जुड़ने की प्रेरणा दी। धीरे-धीरे, लोग बिरसा के विचारों को मानने लगे और मिशनरियों से बचने लगे। अब उन्हें 'धरती आबा' कहा जाने लगा।

पहली गिरफ़्तारी

24 अगस्त,1895 को बिरसा मुंडा को पहली बार गिरफ्तार किया गया था और उन्हें दो साल की सजा हुई थी। जब उन्हें दो साल बाद रिहा किया गया, तो उन्होंने भूमिगत होकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया और अपने अनुयायियों के साथ गुप्त बैठकें करने लगे।

"जंगलों में सुलगती क्रांति: बिरसा मुंडा का साहसिक संघर्ष"

बिरसा मुंडा ने ईसाई पादरियों की आलोचना करते हुए आदिवासियों में फैलाए जा रहे अंधविश्वास पर प्रहार किया। उनके भाषणों से उनके समुदाय में जागरूकता आई और लोग एकजुट होने लगे। 1898 का साल इन्हीं प्रयासों में बीता। जंगलों में विद्रोह की आग धीरे-धीरे भड़क रही थी, और पुलिस बिरसा और उनके अनुयायियों पर लगातार नजर रख रही थी। गुप्तचर और चौकीदार हर हरकत की जानकारी जुटाने में लगे थे, लेकिन बिरसा उनकी निगरानी को चकमा देकर गुप्त स्थानों पर बैठकें करते और अपनी योजना तैयार करते।

‘अबुआ दिशुम अबुआ राज' का दिया नारा

बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के बीच अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 'अबुआ दिशुम अबुआ राज' का नारा दिया, जिसका अर्थ है "हमारा देश, हमारा राज"। यह नारा आदिवासियों में आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की भावना को प्रेरित करने के लिए था।

बिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों ने चर्च, मिशनरी, और जमींदारों को सबसे बड़ा दुश्मन माना, क्योंकि जमींदारों को अंग्रेज़ सरकार ने बढ़ावा दिया था। अंतिम संघर्ष की शुरुआत 24 दिसंबर, 1899 को क्रिसमस की पूर्व संध्या पर की गई। खूंटी, चक्रधरपुर, और अन्य क्षेत्रों में चर्चों पर हमले हुए। तीरों से हमला किया गया, गोदामों को जलाया गया, और फादर हाफमैन को निशाना बनाया गया। हालांकि वे बच गए, लेकिन उनका एक साथी घायल हो गया। इस विद्रोह से ब्रिटिश सरकार चौंक गई और बड़े पैमाने पर धर-पकड़ शुरू हो गई।

आखिरी संघर्ष: बिरसा की गिरफ्तारी की दास्तान

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पुलिस को सूचना मिली कि 9 जनवरी को सइल रकब में मुंडाओं की बड़ी बैठक होगी। पुलिस वहां पहुंची, लेकिन पहाड़ी की ऊंचाई और प्रतिरोध के बावजूद बिरसा मुंडा नहीं मिले, क्योंकि वे पहले ही अयूबहातू जा चुके थे। वहां भी पुलिस को चकमा देकर वे बच निकले। बौखलाई पुलिस ने बिरसा की जानकारी देने वालों को इनाम की घोषणा की।

और बिसरा मुंडा अमर हो गए

बिरसा मुंडा को 3 मार्च, 1900 को गिरफ्तार किया गया, और उनके साथ 400 से अधिक लोगों को पकड़ा गया। मई तक उन पर आरोप तय नहीं हुए थे। 9 जून, 1900 को बिरसा मुंडा की जेल में उल्टियाँ हुईं और उनकी नाड़ी रुक गई। डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित किया, और उनका बलिदान आदिवासी संघर्ष के एक युग का अंत साबित हुआ।

बिरसा मुंडा की विरासत आदिवासी समाज के अधिकारों और स्वतंत्रता के संघर्ष के प्रतीक के रूप में जीवित है। उन्होंने अंग्रेजों और मिशनरियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, आदिवासी संस्कृति की रक्षा की और समाज में जागरूकता फैलायी। उनका जीवन आदिवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना और उन्हें 'धरती आबा' के रूप में पूजा जाता है। बिरसा मुंडा की वीरता और संघर्ष की गूंज आज भी भारतीय समाज में सुनाई देती है।



Shreya

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