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Chipko Andolan Ke Pramukh Neta: चिपको आंदोलन के प्रणेता और पेड़ों के रक्षक सुंदरलाल बहुगुणा के बारे में जानते हैं

Chipko Andolan Ke Pramukh Neta Sunderlal Bahuguna: आज हम आपको चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा के बारे में बताने जा रहे हैं, जो भारत के एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और गांधीवादी विचारधारा के अनुयायी थे, आइये विस्तार से जानते हैं उनके बारे में।

AKshita Pidiha
Published on: 10 Jan 2025 4:28 PM IST
Chipko Andolan Ke Pramukh Neta Sunderlal Bahuguna
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Chipko Andolan Ke Pramukh Neta Sunderlal Bahuguna

Chipko Andolan Leader Sunderlal Bahuguna: सुंदरलाल बहुगुणा भारत के एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और गांधीवादी विचारधारा के अनुयायी थे। उनका नाम न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए उनके अमूल्य योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में वनों की रक्षा और पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए चिपको आंदोलन जैसे कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनकी सादगी, समर्पण और दृढ़ संकल्प ने उन्हें एक प्रेरणा का स्रोत बना दिया।

सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी,1927 को उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश) के टिहरी जिले के मरोड़ा गांव में हुआ था। उनके परिवार की पृष्ठभूमि साधारण थी। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए देहरादून गए। गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने समाज सेवा का मार्ग चुना।

Chipko Andolan ke Praneta Sundarlal Bahuguna (Image Credit-Social Media)

बहुगुणा जी का जीवन गांधीजी की विचारधारा ‘सरल जीवन और उच्च विचार’ का प्रतीक था। उन्होंने जीवन भर अहिंसा, सत्य और स्वच्छता के सिद्धांतों को अपनाया। उनके संघर्ष और आंदोलनों में गांधीवादी दर्शन की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

चिपको आंदोलन (Chipko Andolan Ka Itihas in Hindi)

चिपको आंदोलन की शुरुआत 1973 में उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) के चमोली जिले से हुई थी। यहां बड़ी संख्या में किसानों ने पेड़ कटाई का विरोध करना शुरू किया था। वो राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों के हाथों से कट रहे पेड़ों पर गुस्सा जाहिर कर रहे थे और उन प्रख्यात अपना दावा कर रहे थे। इसकी शुरुआत सुंदरलाल बहुगुणा ने की थी। वह इसका नेतृत्व कर रहे थे। धीरे-धीरे यह आंदोलन बहुत बड़ा हो गया। इसे चिपको आंदोलन इसलिए कहते हैं । क्योंकि इस आंदोलन के तहत लोग पेड़ों से चिपक जाते थे और उन्हें कटने से बचाते थे। इस अभियान में महिलाओं ने बढ़चढ़ कर अहम भूमिका निभाई थी। महिलाएं पेड़ से चिपक जाती थीं और कहती थीं कि अगर पेड़ काटना है तो पहले उन्हें काटा जाए। वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भूस्खलन, बाढ़ और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं बढ़ने लगीं। बहुगुणा जी ने समझा कि वनों का संरक्षण करना मानव और प्रकृति दोनों के लिए आवश्यक है। उन्होंने ग्रामीणों, खासकर महिलाओं, को संगठित किया और पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपकने का प्रतीकात्मक आंदोलन शुरू किया।

आंदोलन का विस्तार और सफलता- महिलाओं ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपककर अपनी जान की बाजी लगाई। यह आंदोलन धीरे-धीरे एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान बन गया।इस आंदोलन के दबाव में सरकार ने कई क्षेत्रों में वनों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया।

Chipko Andolan ke Praneta Sundarlal Bahuguna (Image Credit-Social Media)

पर्यावरण संरक्षण में अन्य योगदान (Paryavaran Sanrakshan)

टिहरी बांध विरोध आंदोलन (Tihri Bandh Virodh Andolan)

सुंदरलाल बहुगुणा ने उत्तराखंड में टिहरी बांध परियोजना का विरोध किया। उनका मानना था कि इस परियोजना से क्षेत्र की पारिस्थितिकी और स्थानीय लोगों के जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने इसके खिलाफ 84 दिनों का अनशन भी किया।

Chipko Andolan ke Praneta Sundarlal Bahuguna (Image Credit-Social Media)

गंगा बचाओ अभियान (Ganga Bachao Abhiyan)

गंगा नदी की स्वच्छता और संरक्षण के लिए उन्होंने ‘गंगा बचाओ अभियान’ चलाया। यह अभियान गंगा नदी को औद्योगिक प्रदूषण और अन्य मानवीय गतिविधियों से बचाने पर केंद्रित था।

वनों और जैव विविधता का संरक्षण

उन्होंने वनों की रक्षा के साथ-साथ जैव विविधता के महत्व को भी समझाया। बहुगुणा जी का मानना था कि वनों का संरक्षण न केवल पर्यावरणीय स्थिरता के लिए बल्कि सामाजिक और आर्थिक संतुलन के लिए भी जरूरी है।

Chipko Andolan ke Praneta Sundarlal Bahuguna (Image Credit-Social Media)

सुंदरलाल बहुगुणा के अनकहे किस्से

पेड़ों से संवाद

बहुगुणा जी ने एक बार कहा था, "जब भी मैं जंगल में जाता हूं, मुझे ऐसा लगता है जैसे पेड़ मुझसे बातें कर रहे हों।" उन्होंने पेड़ों को न केवल प्रकृति का हिस्सा माना, बल्कि उन्हें इंसानों का सच्चा मित्र कहा।

महिलाओं के साथ गठबंधन

उन्होंने पहाड़ी महिलाओं को संगठित किया और उन्हें आंदोलन का हिस्सा बनाया। उनका मानना था कि महिलाएं प्रकृति से गहराई से जुड़ी होती हैं और पर्यावरण संरक्षण में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है।

Chipko Andolan ke Praneta Sundarlal Bahuguna (Image Credit-Social Media)

सरल जीवन, उच्च विचार

उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी और तपस्या में बिताया। वे हमेशा खादी के कपड़े पहनते थे और गांव-गांव जाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते थे।

पत्नी ने बदल दी रूप रेखा

वे जिस तरह की शख्सियत थे, उस दौर की राजनीति में भी वे तेज़ी से जगह बनाते। लेकिन 1956 में उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव तब आया जब सामाजिक कार्यकर्ताओं के परिवार से आने वाली विमला नौटियाल से उनकी शादी हुई।

Chipko Andolan ke Praneta Sundarlal Bahuguna (Image Credit-Social Media)

विमला नौटियाल (Vimla Nautiyal) उस वक़्त गांधी जी की सहयोगी सरला बहन के साथ काम करती थीं, उन्होंने शादी से पहले ही शर्त रख दी थी कि, "मेरे साथी को राजनीतिक वर्कर के तौर पर काम छोड़कर ख़ुद को पूरी तरह से सामाजिक क्षेत्र के काम में जुटना होगा।”

सुंदर लाल बहुगुणा ने वही किया, जो विमला चाहती थीं।दोनों ने मिलकर टिहरी के भिलंगना ब्लॉक में पर्वतीय नवजीवन मंडल से एक आश्रम की स्थापना की.

शराबबंदी और दलितों का उत्थान (Sharabbandi aur Daliton ka Utthan)

  1. 1956 में उन्होंने इस टिहरी शहर में ठक्कर बप्पा हॉस्टल भी बनाया जिसमें युवाओं के पढ़ने की सुविधाएं जुटाई गयीं।इस आश्रम से महिलाओं के उत्थान, शिक्षा, दलितों के अधिकार, शराबबंदी के अलावा कई तरह के सर्वोदयी आंदोलन सुंदर लाल बहुगुणा और विमला चलाते रहे।
  2. 1969 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, तब सरला बहन के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मिलकर उत्तराखंड के कई ज़िलों में शराबबंदी लागू करवाई थी।
  3. यह शराबबंदी अगले 20 साल तक बहुगुणा दंपति की वजह से उत्तराखंड में लागू रहा। हालांकि इसकी आलोचना करने वाले आर्थिक पक्ष की बात करते हुए आलोचना करते हैं । लेकिन 20 साल तक कोई भी सरकार बहुगुणा दंपति के नैतिक आभामंडल के सामने इसमें बदलाव लाने की हिम्मत नहीं कर सकी।
  4. सुंदर लाल बहुगुणा ने भूदान आंदोलन को भी उत्तराखंड के ज़िलों में प्रचारित किया। हालांकि ज़मीन दान देने के चलन ने ज़ोर नहीं पकड़ा ।लेकिन इस आंदोलन के चलते सुंदर लाल बहुगुणा ने उत्तराखंड के कई इलाक़ों की यात्राएं की। वे पहाड़ी समाज के मुद्दे को अच्छी तरह से पहचानने लगे थे और उन्हीं मुद्दों को उन्होंने प्राथमिकता देने का काम शुरू किया। उत्तराखंड के ज़िलों में दलितों के मंदिर प्रवेश से लेकर उन्हें पढ़ाई के मौक़े दिलाने तक का काम उन्होंने बख़ूबी किया।
  5. सुंदरलाल बहुगुणा का जो सबसे अहम काम था, वह लोगों को मुद्दे से जोड़ना और उस मुद्दे पर उन्हें जागरूक करना था।
  6. सुंदरलाल बहुगुणा का निधन 21 मई, 2021 को ऋषिकेश, उत्तराखंड में हुआ। वे 94 वर्ष के थे। उनकी मृत्यु से भारत ने एक महान पर्यावरणविद् और समाज सुधारक को खो दिया।
  7. 2009 में पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण नागरिक सम्मान से नवाजा।1981 में चिपको आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए पद्म श्री सम्मान दिया गया।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उनके कार्यों के लिए जमैका पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  8. सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा आज भी लाखों पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवाओं को प्रेरित करती है। उन्होंने यह सिखाया कि प्रकृति की रक्षा करना मानवता की रक्षा करना है।सुंदरलाल बहुगुणा ने अपने जीवन के हर क्षण को पर्यावरण और समाज की सेवा में समर्पित किया। उन्होंने अपने कार्यों से यह दिखा दिया कि एक व्यक्ति की दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण से बड़े से बड़ा परिवर्तन संभव है। आज जब पर्यावरणीय संकट बढ़ रहा है, तब बहुगुणा जी के विचार और कार्य हमें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनका जीवन एक संदेश है कि प्रकृति और मानवता के बीच संतुलन बनाए रखना ही सच्ची प्रगति है।


Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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