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Mughal Badshah Humayun History: गिर कर खड़े होने वाले मुगल बादशाह हुमायूं की दास्तान
History Of Mughal Badshah Humayun: बाबर की मृत्यु के बाद, हुमायूं ने 29 दिसंबर, 1530 को 22 वर्ष की आयु में मुगल साम्राज्य का शासन संभाला था। उनका स्वभाव शांत और दयालु था। आइए जानें मुगल मुगल साम्राज्य के इस बादशाह के बारे में।
Mughal Badshah Humayun History in Hindi: हुमायूं, मुगल साम्राज्य के इतिहास (Mughal Empire History) में एक ऐसा नाम है, जिसे उसके उतार-चढ़ाव, संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता के लिए जाना जाता है। नसीर-उद-दीन मुहम्मद हुमायूं, बाबर के पुत्र और अकबर के पिता, भारतीय उपमहाद्वीप में मुगल साम्राज्य की नींव को मजबूत करने और उसे एक सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत के रूप में स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं। उनका जीवन कहानी से भरपूर है, जहां विजय, हार, निर्वासन और पुनः विजय का अनूठा मिश्रण दिखाई देता है।
हुमायूं का जन्म 6 मार्च, 1508 को काबुल में हुआ था। वह बाबर (Babur) और उनकी पत्नी महम बेगम (Maham Begum) के सबसे बड़े पुत्र थे। बाबर, जो मुगल साम्राज्य के संस्थापक (Mugal Samrajya Ke Sansthapak) थे, ने हुमायूं को एक शासक के रूप में प्रशिक्षित करने के लिए गहन प्रयास किए। हुमायूं को उनके बचपन से ही फारसी, गणित, खगोल विज्ञान, युद्ध कौशल और प्रशासनिक ज्ञान की शिक्षा दी गई।
उनका स्वभाव शांत और दयालु था। वे कला, साहित्य और विज्ञान में गहरी रुचि रखते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा और अनुभव ने उन्हें एक संवेदनशील और समझदार शासक बनाया। लेकिन उनके निर्णय लेने की प्रक्रिया में कभी-कभी कमजोरी भी झलकती थी। कहा जाता है हुमायूं अपने राज्य की भलाई के लिए दुश्मनों को माफ कर देता था। वह विद्वान भी था। उसे एक साथ तुर्की, अरबी और हिंदी भाषा का ज्ञान था। वह दर्शन, इतिहास, भूगोल और नीतिशास्त्र का अध्येता था।
हुमायूं का सिंहासन पर आरंभिक काल
बाबर की मृत्यु के बाद, हुमायूं ने 29 दिसंबर, 1530 को 22 वर्ष की आयु में मुगल साम्राज्य का शासन संभाला। उस समय मुग़ल साम्राज्य का विस्तार दिल्ली, आगरा और कुछ सीमित क्षेत्रों तक था। उनके शासनकाल की शुरुआत से ही उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
प्रतिद्वंद्वियों से संघर्ष
हुमायूं के शासनकाल की सबसे बड़ी चुनौती उनके प्रतिद्वंद्वी शेर शाह सूरी से आई। शेर शाह सूरी एक कुशल और ताकतवर अफगान शासक थे, जिन्होंने अपने सैन्य कौशल और रणनीति के माध्यम से हुमायूं को कड़ी चुनौती दी। 1540 में कन्नौज की लड़ाई में शेर शाह ने हुमायूं को पराजित कर उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
इसके अलावा, गुजरात के बहादुर शाह और बंगाल के शासकों से भी हुमायूं को संघर्ष करना पड़ा। हालांकि, उनके व्यक्तिगत चरित्र में मौजूद उदारता और सहयोगी भावना ने उन्हें अपने साम्राज्य के भीतर कई क्षेत्रों में समर्थन हासिल करने में मदद की।
हुमायूं का कठिन समय
1540 से 1555 तक का समय हुमायूं के जीवन का निर्वासन काल था। इस अवधि में उन्होंने फारस में शाह तहमास्प के दरबार में शरण ली। शाह तहमास्प ने हुमायूं को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की। लेकिन इसके बदले उन्होंने हुमायूं से शिया इस्लाम को अपनाने की शर्त रखी। हुमायूं ने यह शर्त स्वीकार कर ली और अपनी सेना को पुनर्गठित किया।
फारस में अनुभव और शिक्षा
फारस में बिताए गए समय ने हुमायूं के जीवन में गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने वहां की कला, संस्कृति और वास्तुकला को करीब से देखा और समझा। फारस की सभ्यता का प्रभाव उनके शासनकाल में मुगल दरबार की शैली और स्थापत्य कला में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
हुमायूं ने फारस में अपनी राजनीतिक और सैन्य स्थिति को मजबूत किया और काबुल तथा कंधार पर नियंत्रण स्थापित किया। यह उनके साम्राज्य की पुनः स्थापना की दिशा में पहला कदम था।
मुगल साम्राज्य की पुनः स्थापना
1555 में, हुमायूं ने अपनी सेना के साथ भारत लौटकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया। यह विजय उनके लिए और मुग़ल साम्राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। उन्होंने दिल्ली में अपनी सत्ता को फिर से स्थापित किया और प्रशासनिक सुधारों की शुरुआत की। हालांकि, उनकी यह विजय लंबे समय तक नहीं टिक सकी।
हुमायूं की मृत्यु (Humayun Ki Mrityu)
26 जनवरी, 1556 को हुमायूं दिल्ली में अपने पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर गए। इस दुर्घटना में उन्हें गंभीर चोटें आईं और तीन दिन बाद 27 जनवरी को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु उस समय हुई, जब उनका साम्राज्य स्थिर होने की कगार पर था। उनकी असामयिक मृत्यु ने उनके बेटे अकबर को एक युवा और अनुभवहीन शासक के रूप में एक विशाल साम्राज्य की जिम्मेदारी सौंपी।
हुमायूं का मकबरा: उनकी अमर विरासत
हुमायूं का मकबरा (Humayun Ka Maqbara), जो दिल्ली में स्थित है, उनकी पत्नी हमीदा बानो बेगम ने उनकी याद में बनवाया था। यह मकबरा भारतीय उपमहाद्वीप का पहला चारबाग शैली का स्मारक है, जिसमें फारसी और भारतीय वास्तुकला का अद्भुत मिश्रण देखा जा सकता है। हुमायूं का मकबरा यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह मकबरा न केवल हुमायूं की स्मृति को जीवित रखता है, बल्कि मुग़ल स्थापत्य कला के विकास में भी मील का पत्थर है। ताजमहल जैसे अन्य महान स्मारक इस शैली से प्रेरित हुए।
हुमायूं के प्रशासनिक और सांस्कृतिक योगदान
सांस्कृतिक योगदान: हुमायूं ने फारसी कला और साहित्य को मुग़ल दरबार में बढ़ावा दिया। उन्होंने फारसी कलाकारों और विद्वानों को अपने दरबार में स्थान दिया, जिससे भारतीय और फारसी संस्कृति का अद्भुत संगम हुआ।
प्रशासनिक सुधार: हुमायूं ने शासन व्यवस्था को अधिक संगठित और प्रभावी बनाने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने सैन्य संरचना में सुधार किया और राजस्व प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास किया।
धार्मिक सहिष्णुता: हुमायूं धार्मिक सहिष्णुता के पक्षधर थे। उन्होंने विभिन्न धर्मों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया और उनके शासनकाल में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग शांति से रहते थे।
रोचक तथ्य (Humayun Ke Bare Mein Rochak Jankari In Hindi)
हुमायूं का नाम ‘नसीर-उद-दीन मुहम्मद’ रखा गया था। लेकिन उन्हें उनके गुणों के कारण ‘हुमायूं’ कहा गया, जिसका अर्थ है ‘आश्रय देने वाला’।
निर्वासन के दौरान हुमायूं ने फारस में शाही ठाठ-बाट के साथ समय बिताया और अपनी सेना को पुनर्गठित किया।
उन्होंने भारत में खगोल विज्ञान और ज्योतिष को बढ़ावा दिया और उनके दरबार में कई विद्वानों ने खगोल विज्ञान पर काम किया।
हुमायूं के शासनकाल में मुग़ल साम्राज्य को सांस्कृतिक समृद्धि का एक नया दृष्टिकोण मिला।
ऐतिहासिक महत्व
हुमायूं का जीवन संघर्ष, हार, निर्वासन और पुनः विजय की गाथा है। उनकी कहानी केवल एक शासक की नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने कठिनाइयों के बावजूद अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। हुमायूं की प्रशासनिक और सांस्कृतिक विरासत ने उनके बेटे अकबर के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया।
हुमायूं के जीवन की कहानी भारतीय इतिहास में प्रेरणा का स्रोत है। उनका संघर्ष और उनकी विजय यह संदेश देती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और संकल्प के साथ विजय पाई जा सकती है।