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History Of Samrat Ashok: भारत के महानतम शासकों में से एक सम्राट अशोक का जीवन परिचय
Samrat Ashok Ka Jivan Parichay: प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध और महान शासक रहे सम्राट अशोक का जीवन कलिंग युद्ध के बाद पूरी तरह से बदल गया। इसी युद्ध के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया।
The Great Emperor Samrat Ashok: सम्राट अशोक (Samrat Ashok), प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध और महान शासकों में से एक थे। उन्होंने मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire) पर 268 से 232 ईसा पूर्व तक शासन किया। प्रारंभ में अपने सैन्य विजय अभियानों के लिए प्रसिद्ध, अशोक का जीवन कलिंग युद्ध (Kalinga War) के बाद पूरी तरह से बदल गया। इस युद्ध की विनाशकारी विभीषिका ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाकर अहिंसा, नैतिक शासन और जनकल्याण का रास्ता चुना और अपने शासन का आधार बनाया।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म (Buddhism) का भारत के साथ-साथ एशिया के अन्य हिस्सों में प्रचार-प्रसार किया। उनका शासनकाल शांति, सांस्कृतिक प्रगति और सामाजिक समरसता का स्वर्णिम युग माना जाता हैं। हम उनके जीवन और कार्य का विस्तार से वर्णन करेंगे।
चक्रवर्ती अशोक सम्राट का प्रारंभिक जीवन (Chakravartin Ashoka Samrat Biography)
चक्रवर्ती अशोक सम्राट जन्म 304 ईसा पूर्व का माना जाता है। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक (Devanampriya Ashoka) था, जिसका अर्थ है ‘देवताओं का प्रिय’। उन्हें शिलालेखों और अभिलेखों में राजा प्रियदर्शी (Raja Priyadarshi) के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘प्रिय दृष्टि वाला राजा’ या ‘जिसे देखना प्रिय हो’। वह राजा बिंदुसार (Bindusara) और रानी धर्मा (Rani Dharma) के पुत्र थे। बिंदुसार मौर्य राजवंश के राजा और चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र थे। यानी सम्राट अशोक मौर्य राजवंश के राजकुमार और चंद्रगुप्त मौर्य के पोते थे।
लंका की परंपरा में, बिंदुसार की सोलह पटरानियों और 101 संतानें होने का उल्लेख मिलता है। जिनमें सुसीम,अशोक और तिष्य, केवल तीन पुत्रों के नामों का उल्लेख मिलता है। इनमें सुसीम सबसे बड़े पुत्र थे और तिष्य सम्राट अशोक के सहोदर भाई और सबसे छोटे थे। बौद्ध धर्म के ग्रंथ 'दिव्यदान' में सम्राट अशोक की पत्निया 'तिष्यरक्षिता' और 'करूणावकि' का उल्लेख मिलता है। इसी ग्रंथ में दो भाइयों सुसीम तथा विगताशोक के नामों का भी उल्लेख है। कहा जाता है, राजा बिंदुसार की 101 संतानों में अशोक की प्रतिभा सबसे अलग थी। एक दिन उनकी माता धर्मा को सपना आया कि अशोक एक महान सम्राट बने, जो बाद में सच भी हुआ।
अशोक के कई सौतेले भाई-बहन थे इस कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्ष और प्रतिस्पर्धा से भरा था। अपने सौतेले भाई-बहनों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद, उन्होंने अपनी योग्यता और पराक्रम से अपनी अलग पहचान बनाई। कहा जाता है कि वे बचपन से ही सैन्य कौशल में निपुण थे।
राजकुमार से राजा बनने का सफर
युवावस्था और गवर्नर का कार्यकाल:- सम्राट अशोक को युवावस्था में ही उनकी प्रशासनिक और सैन्य प्रतिभा के कारण अवंती (वर्तमान मध्य प्रदेश) का गवर्नर नियुक्त किया गया। इस भूमिका में उन्होंने अपने नेतृत्व और कुशल प्रशासन का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। अशोक ने अवंती में न्याय, व्यवस्था और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा दिया, जिससे उनकी क्षमता और दूरदर्शिता स्पष्ट रूप से उजागर हुई।
तक्षशिला में विद्रोह और सफलता:- अशोक के ज्येष्ठ भाई सुसीम, तक्षशिला (वर्तमान समय में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के रावलपिण्डी जिले की एक तहसील है) के प्रांतपाल थे। तक्षशिला के लोग भारतीय-यूनानी मूल के थे। इसीलिए यह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त था। वहा सुसीम के अकुशल प्रशासन के कारण विद्रोह पनप उठा। जिसके बाद बिंदुसार ने सम्राट अशोक को विद्रोह शांत करने के लिए तक्षशिला भेजा। अशोक के आने की खबर से ही विद्रोही शांत हो गए और बिना युद्ध के विद्रोह समाप्त हो गया।
सुसीम के षड्यंत्र और निर्वासन:- तक्षशिला में विद्रोह को कुशलता से दबाने के बाद अशोक की बढ़ती लोकप्रियता से सुसीम अस्वस्थ हुआ और अशोक को अपना प्रतिद्वंद्वी मान लिया। सुसीम को सिंहासन पर अपना दावा कमजोर होता दिखा। अब सुसीम ने षड़यंत्र किया और सम्राट बिंदुसार से कहकर अशोक को निर्वासन में भेज दिया। जिसके बाद सम्राट अशोक कलिंग (आधुनिक ओडिशा) चले गए । जहां उनकी मुलाकात मत्स्यकुमारी करुवकी से हुई। अशोक और करुवकी के बीच प्रेम हुआ और दोनों ने विवाह किया । वर्तमान में मिले साक्ष्यों के अनुसार, करुवकी बाद में अशोक की दूसरी या तीसरी रानी बनीं।
उज्जैन में विद्रोह:- इस दौरान उज्जैन में विद्रोह हुआ, तो सम्राट बिंदुसार ने अशोक को निर्वासन से बुलाकर विद्रोह शांत करने के लिए उज्जैन भेजा । सम्राट अशोक ने कुशलता से विद्रोह शांत किया, लेकिन सुसीम से जान के खतरे के कारण उनकी इस सफलता को गुप्त रखा गया। वहा अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं के साथ समय बिताया । इस दौरान उन्हें बौद्ध धर्म के विधि-विधानों और शिक्षाओं के बारे में जानकारी मिली। उज्जैन में अशोक की मुलाकात देवी नामक एक सुंदर महिला से हुई और दोनों में प्रेम हुआ । बीमारी से उबरने के बाद सम्राट ने देवी से विवाह कर लिया।
सिंहासन की ओर बढ़ता संघर्ष:- सम्राट बिंदुसार वृद्ध और अस्वस्थ हो गए थे। सुसीम से तंग प्रजा ने अशोक को सिंहासन हथियाने के लिए प्रोत्साहित किया। अशोक की मां को उनके सौतेले भाइयों ने मार डाला । क्रोधित अशोक ने राजमहल में जाकर सुसीम समेत अपने सारे सौतेले भाइयों को मार डाला । और इस तरह राजकुमार अशोक , सम्राट अशोक बने ।
राज्याभिषेक और साम्राज्य विस्तार (Samrat Ashok Rajyabhishek Aur Samarajya Vistar)
सिंहासन प्राप्त करते ही, 269 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक का राज्याभिषेक हुआ। वह अपने पिता बिंदुसार के बाद मौर्य वंश के तीसरे राजा बने। सिंहासन पर बैठते ही, अशोक ने अपनी सैन्य और प्रशासनिक कुशलता का उपयोग कर साम्राज्य का तेजी से विस्तार किया। सम्राट अशोक का शासनकाल ईसा पूर्व 269 से 232 तक था। जिसे प्राचीन भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम युग माना जाता है। केवल आठ वर्षों के शासनकाल में सम्राट अशोक ने आधुनिक असम से लेकर ईरान की सीमा तक मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया।
उत्तर में हिंदुकुश और तक्षशिला से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी और मैसूर तक और पूर्व में बांग्लादेश से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान तक चारों दिशाओं में सम्राट अशोक का राज़ था। आज के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार के अधिकांश हिस्से उनके साम्राज्य में शामिल थे। यह भारतीय इतिहास का का सबसे बड़ा साम्राज्य था। चक्रवर्ती सम्राट अशोक को विश्व के महानतम और शक्तिशाली शासकों में स्थान प्राप्त है। दो हजार वर्षों के बाद भी, सम्राट अशोक का प्रभाव पूरे एशिया, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
कलिंग का युद्ध और जीवन परिवर्तन (Kalinga War And Life Changes)
सम्राट अशोक ने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया। इस युद्ध में 1 लाख से अधिक लोगों की हत्या हुई, 1.5 लाख लोग घायल हुए और 1.5 लाख को निर्वासित किया गया। इस भयंकर नरसंहार ने सम्राट अशोक को गहरा मानसिक आघात पहुँचाया। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने युद्ध न करने का संकल्प लिया और अहिंसा, शांति और धर्म के मार्ग पर चल पड़े। उन्होंने बौद्ध भिक्षु उपगुप्त से मार्गदर्शन प्राप्त किया।
इस घटना के बाद उनका हृदय, गहरे परिवर्तन से गुजरा। अशोक ने धर्म, अहिंसा और शांति के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया और बौद्ध धर्म को अपनाया। सिंहली अनुश्रुतियों के अनुसार, उन्हें अपने शासन के चौदहवें वर्ष में भिक्षु निगोथ द्वारा बौद्ध धर्म में दीक्षित किया गया था। मोगाली पुत्र निस्स के प्रभाव से वे पूर्णतः बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। हालांकि, दिव्यादान के अनुसार, उन्हें बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है।
बौद्ध धर्म का किया प्रचार (Buddha Dharma Ka Prachar)
कलिंग युद्ध के दो वर्ष पहले ही उज्जैन में सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त की थी। लेकिन कलिंग युद्ध से आहत सम्राट अशोक बौद्ध अनुयायी हो गये और उन्होंने इस धर्म का प्रचार - प्रसार शुरू किया। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार की शुरुआत धर्मयात्राओं से की। उन्होंने अपने अभिषेक के दसवें वर्ष में बोधगया की यात्रा की, जो बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थल है। अभिषेक के बीसवें वर्ष में, अशोक ने लुम्बिनी (जो भगवान बुद्ध का जन्मस्थान है) की यात्रा की और उसे कर मुक्त घोषित किया। इसके अलावा, नेपाल तराई में स्थित निगलीवा में उन्होंने कनकमुनि के स्तूप की मरम्मत करवाई।
उन्होंने शिकार और पशु-हत्या करना छोड़ दिया और संप्रदायों के संन्यासियों को दान देना भी आरंभ किया। जनकल्याण के लिए, अशोक ने चिकित्सालयों, पाठशालाओं और सड़कों का निर्माण करवाया, जिससे उनके शासन में जनहित और सामाजिक सुधारों को प्राथमिकता दी गई।
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने साम्राज्य के उच्च पदाधिकारियों को नियुक्त किया। स्तम्भ लेख तीन और सात के अनुसार, उन्होंने व्युष्ट, रज्जुक, प्रादेशिक और युक्त जैसे पदाधिकारियों को नियुक्त किया। उन्हें जनता के बीच जाकर धर्म प्रचार करने और उपदेश देने का आदेश दिया।
अभिषेक के तेरहवें वर्ष के बाद, अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए एक नया पदाधिकारियों का वर्ग बनाया, जिसे 'धर्म महापात्र' कहा गया। इस वर्ग का मुख्य कार्य विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच द्वेषभाव को मिटाना और धर्म की एकता स्थापित करना था।
अशोक ने दिव्य रूपों और धार्मिक चित्रण का प्रदर्शन किया, जिससे जनता को बौद्ध धर्म के प्रतीकों और शिक्षाओं से परिचित कराया जा सके। उन्होंने स्तूपों, मूर्ति और धार्मिक चिन्हों (जैसे अशोक चक्र, अशोक स्तंभ) का निर्माण कराया ताकि बौद्ध धर्म के प्रतीक जन-जन तक पहुंचे।
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्म प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र और यूनान जैसे विभिन्न देशों में भेजा। उन्होंने विशेष रूप से श्रीलंका, बर्मा (म्यांमार) और ग्रीस जैसे देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उन्होंने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को भी यात्राओं पर भेजा था। अशोक के धर्म प्रचारकों में सबसे अधिक सफलता उनके पुत्र महेंद्र को मिली। महेंद्र ने वहाँ के राजा देववम्पिया तिस्सा को बौद्ध धर्म से अवगत कराया राजा तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपना राजधर्म बना लिया।
अशोक ने अपने साम्राज्य भर में धर्मलिपियों (शिलालेख और स्तंभ लेख) खुदवाए। इन शिलालेखों में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और अहिंसा, धर्म और सभी धर्मों के प्रति सम्मान के बारे में लिखा गया था। यह शिलालेख आज भी बौद्ध धर्म के प्रचार का महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
मृत्यु और विरासत (Samrat Ashoka Death)
सम्राट अशोक ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया, और उनकी मृत्यु 232 ईसा पूर्व के आसपास हुई। उनकी मृत्यु के बाद, मौर्य राजवंश लगभग 50 वर्षों तक अस्तित्व में रहा। लेकिन अंत में यह धीरे-धीरे कमजोर हो गया। अशोक के शासनकाल का प्रभाव भारतीय इतिहास में अत्यधिक गहरा था। उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी याद किए जाते हैं।
अशोक के शिलालेख और स्तंभ उनके शासनकाल का सबसे महत्वपूर्ण धरोहर हैं। सम्राट अशोक ने कुल 33 अभिलेख प्रवर्तित किए, जिन्हें उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान 269 ईसा पूर्व से 231 ईसा पूर्व तक विभिन्न स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों पर खुदवाया। ये शिलालेख बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से माने जाते हैं। आधुनिक बांग्लादेश, भारत, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में विभिन्न स्थानों पर पाए जाते हैं। इन अभिलेखों के माध्यम से अशोक ने धर्म, अहिंसा, शांति और सामाजिक सुधार के संदेशों का प्रसार किया।
आज दो हजार वर्षों के बाद भी, सम्राट अशोक का प्रभाव पूरे एशिया, विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अशोक के शासनकाल में उकेरे गए प्रतीकात्मक चिह्न, जिन्हें 'अशोक चिह्न' के नाम से जाना जाता है, आज भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है और यह उनकी महानता और विरासत का प्रतीक बन चुका है। बौद्ध धर्म के इतिहास में, गौतम बुद्ध के बाद सम्राट अशोक को सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। और अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारने वाले इस बुद्ध अनुयायी का नाम आज एक महान परोपकारी सम्राट के रूप में दर्ज हैं।