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Holi 2022 Gujiya Recipe: पश्चिम से आया गुझिया होली पर बन गया भारत की जान और पहचान

Holi 2022 क्या आप जानते हैं होली के त्यौहार पर मिठास बढ़ाने वाली गुझिया बनाने की विधि (recipe of gujiya) और परंपरा, जानिए इस मध्यकालीन डिश के बारे में पूरी जानकारी।

Preeti Mishra
Written By Preeti MishraPublished By Bishwajeet Kumar
Published on: 6 March 2022 11:12 AM GMT
Gujiya
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गुझिया (तस्वीर साभार : सोशल मीडिया)

Recipe Gujiya : होली (Holi) और गुझिया (Gujiya) दोनों मिलकर ही एक दूसरे को पूर्ण बनाते हैं। जी हां, होली का त्यौहार गुझिया के बिना अधूरा है। या कहें रंगों के साथ-साथ गुझिया भी होली की एक पहचान है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े सभी गुझिया के दीवाने हैं। मैदे की हल्की परत के बीच मावे और मेवे की भरपूर भरावन (फिलिंग) के साथ बनी गुझिया के नाम से ही मुँह में पानी आ जाता है।

गुझिया का इतिहास

लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में होली की पहचान बन चुका गुझिया की उत्पत्ति हमारे देश में नहीं बल्कि पश्चिम (वेस्ट) में हुई थी। चौकिये मत ये सच है समोसा और गुझिया दोनों ही मध्यकालीन डिश है। सबकान्टिनेंटल (उपमहाद्वीप) शेफ ने नई तकनीक और सामग्री के साथ प्रयोग करके इसे बनाने में सफलता हासिल की थी। इतना ही नहीं गुझिया का सबसे पहला उल्लेख 13वीं शताब्दी में मिलता है। जब गुड़-शहद के मिश्रण को गेहूं के आटे से ढककर धूप में सुखाया जाता था और यह पकवान बनाई जाती थी।

समोसा और गुझिया दोनों ही वेस्ट एशिया से सफर करते हुए, भारत के भूमध्य भाग तक आ पहुंचे थे। चूँकि समोसा और गुझिया दोनों ही एक परिवार के अंग हैं, यानि सिर्फ भरावन की सामग्री अलग-अलग करके इन्हें बनाया जा सकता है। वेस्ट में मैदे के आटे में मीट और मसलों को भरकर तैयार की जाने वाली डिश भारत आते-आते गुझिया और समोसे की शक्ल में बदल गयी। चूँकि इनके बनाने की विधि एक जैसी ही है सिर्फ भरावन की सामग्री अलग-अलग हो गयी। मुगलकाल में खाने के व्यंजनों के साथ किये गए तमाम खोज की ही देंन है समोसा और गुझिया।

मध्यकाल में गुझिया बनाने ले लिये महिलाएं होली से कुछ दिनों पहले से ही नाख़ून काटना बंद कर देती थी। गुझिया को गोठने के लिये महिलाएं अपने नाखूनों का प्रयोग करती थी। लम्बे नाख़ून से गुजिया गोठने में ज्यादा सहूलियत होती थी इसलिये महिलाएं गुझिया बनाने के कुछ दिन पहले से ही नाख़ून काटना बंद कर देती थी।

ज़रा सोचिये क्या आप जानते थे, होली में घर-घर बनने वाले इस पकवान का इतिहास इतना पुराना है। 13वीं शताब्दी से सफर करते हुए इसके रूप में कई तरह के बदलाव किये गए। रूप में बदलाव का असर इसके स्वाद को और उम्दा करता गया। इसलिए यह धीरे-धीरे स्वाद के रस्ते दिल में घर कर गया। और आज 21वीं शताब्दी में भी अपने बदले स्वरुप के साथ, बेहतरीन स्वाद के कारण हमारे त्योहार की एक मुख्य पहचान बन चुका है। देश के हर एक कोने में इसे अलग-अलग मौके पर बनाते हैं। उत्तर भारत में गुजिया होली का मुख्य पकवान है। लेकिन देश के अलग-अलग क्षेत्रों में इसे अलग-अलग समय पर भी बनाते हैं। जैसे बिहार और झारखण्ड में तीज के मौके पर मुख्य प्रसाद के रूप में गुझिया को ही चढ़ाते हैं।

कुछ समय पहले जब संयुक्त परिवार का दौर था, तो घरों में गुझिया बनाना भी पुरे घर के सभी सदस्यों के लिए बड़ा टास्क होने के साथ-साथ त्यौहार से पहले की मस्ती हुआ करती थी। चूँकि गुझिया बनाने में थोड़ी ज्यादा मेहनत और समय लगता है इसलिए घर के पुरुष भी गुझिया के सांचे के साथ इसे बनाने में महिलाओं के साथ बढ़-चढ़ के हिस्सा लिया करते थे। ढेर सारी मस्ती के बीच बनने वाली उन गुझिया का स्वाद भी लाजवाब हुआ करता था। मगर आज अधिकतर लोग छोटे परिवार (nuclear family) में रहते हैं। लेकिन फिर गुझिया खाने और बनाने दोनों का जज्बा अभी भी वहीं है। वैसे त्योहार का भरपूर मज़ा तो ढेर सरे लोगों के बीच बड़े परिवार में ही आता है। खैर, चाहे कुछ हो होली के त्यौहार में गुझिया हर घर की शान रहता है। तो आइये जानते है इसे बनाने की विधि :

सामग्री :

- मैदा

-रिफाइन तेल या घी

- चीनी

-मावा

- मेवे (काजू , किशमिस , नारियल बुरादा , चिरोंजी आदि )

विधि :

भरावन

सबसे पहले हम भरावन तैयार कर लेंगे। उसके लिए हम दूध से तैयार खोये को कड़ाही में हलके आंच में थोड़ा भून लेंगें। फिर उसे किसी बर्तन में खाली कर लेंगे। खोवा ठंडा होने के बाद उसमें दरदरी पीसी हुई चीनी और कटे हुए सारे मेवे डाल देंगे। फिर इस मिश्रण को अच्छे से मिला कर एक तरफ रख देंगें। उसके बाद हम मैदे का डो तैयार कर लेंगे।

आटा

उसके लिए सबसे पहले मैदे में तेल डाल कर मोईन तैयार करेंगे। फिर उसमें थोड़ा -थोड़ा पानी डाल कर आटा लगा लेंगे। याद रहे आटा न बहुत सख्त हो और न बहुत मुलायम। फिर उसे आधे घंटे के लिए मलमल का कपडा ढककर छोड़ देंगे।

आधे घंटे बाद आटे की छोटी -छोटी लोई काटकर उसे बेल लेंगे। फिर उसमें तैयार मावे का भरावन भर कर आटे के चोरों कोने को हलके हाथो से पानी लगाकर चिपका देंगे। उसके बाद अपने उँगलियों या सांचे की मदद से उसे गुझिया का रूप दे देंगे। इसी प्रकार सारी गुझिया को बना लेंगे।

तलने के लिए

एक बड़ी सी कढ़ाई में तेल डाल कर उसे हल्का गर्म करेंगें। याद रखिये तेल को बहुत ज्यादा गर्म नहीं करना है। तेल गर्म हो जाने के बाद गैस के फ्लेम को लौ कर देंगें। फिर उसमे धीरे-धीरे गुझिया डाल कर तल लेंगे। तेल से निकल कर सभी गुझिया को टिश्यू पेपर में रख देंगे ताकि एक्स्ट्रा तेल निकल जाये। गुझिया को गरम या ठंडा दोनों रूप में खाना बहुत मज़ेदार होता है। बहुत से लोग इन तैयार गुझिया को चीनी की चाशनी में भी डाल देते है। कुछ लोग मावे में भुनी हुई सूजी मिलाकर या फिर सिर्फ भुनी हुई सूजी का भी गुझिया बनाते हैं। खास बात यह है कि हर कोई अपनी और अपनों की पसंद के हिसाब से होली में गुझिया बनाता जरूर है।

13 वीं शताब्दी से लेकर 21 वीं शताब्दी तक भले ही इस डिश में बदलाव आते गए हो मगर लोगों के ज़ुबान से लेकर दिल तक उतरने में इसने हमेशा सफलता हासिल की है। तभी तो यह आज हमारे त्योहार का पर्यायवाची बन गया है। तो इस होली आप भी अपनों के साथ रंग खेलते हुए घर के बने हुए गुझिये का भरपूर आनंद लें।

Bishwajeet Kumar

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