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Holi Date 2023: इस बार होली पर क्या है ख़ास
Holi Date 2023: भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया। होलिका के पास एक चादर थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था।
Holi Date 2023: 19 वर्षों के बाद श्रावण मास में अधिकमास आने के कारण महाशिवरात्रि और होली 10 से 11 दिन पहले आएगी । जबकि रक्षा बंधन, गणेश चतुर्थी, दशहरा और दीवाली में करीब 19 दिन की देरी होगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका दहन होता है। दूसरे दिन धुलैंडी मनाई जाती है। अष्टमी से यह त्योहार प्रारंभ हो जाता है।
आइए पहले जानते हैं होली के महत्व के बारे में आखिर हम लोग क्यों इसे धूम धाम से मनाते हैं
भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया। होलिका के पास एक चादर थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था। इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर मर गई। इस वजह से हर साल होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है। होली बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में दिवाली के बाद होली का त्योहार सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है। उसके अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है। रंगों के त्योहार होली में लोग एक दूसरे को रंग, अबीर, गुलाल लगाते हैं और बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए हैं सब समाज में प्रेम और सौहार्द का संदेश देते हैं।
पर्यावरण संरक्षण के चलते एक मुहल्ले में जलाओ एक ही होली अभियान
छोटे-बड़े, गरीब और अमीर सभी इस त्योहार पर भेदभाव मिटाकर रंग जाते हैं पर यहां ही लोगों में प्रतिस्पर्धा और अहम की लड़ाई जोर पकड़ने लगी। जिसके चलते प्रेम, आस्था और विश्वास का यह महापर्व ऐसे प्रतिस्पर्धा का सबब भी बन गया है। इस महापर्व की अहमियत और सौहार्द खत्म होता जा रहा है, बल्कि पेड़ों की बेहिसाब कटाई के चलते पर्यावरण को भी खासा नुकसान पहुंच रहा है। सराबोर होने के इस महापर्व होली पर अब लोग जागरूक होकर एक मत होकर 'एक मुहल्ले में एक ही होली' जलाने के अभियान से भी जुड़ रहे हैं। जिससे न सिर्फ आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ेगा, बल्कि पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा।
आंकड़ों से दुगनी जलती है होली
पुलिस और प्रशासन के आंकड़ों पर गौर करें तो शहर में महज 925 जगहों पर ही होलिका दहन होता है। जो हर साल तकरीबन दस फीसद बढ़ जाती हैं, जबकि हकीकत यह है कि गली-गली जलने वाली होलियों की संख्या 1825 से भी ज्यादा है। यानि हर थाना क्षेत्र में पुलिस के आंकड़ों से सौ होलिकाओं से ज्यादा दहन होता है। इस मर्तबा स्मार्ट सिटी के स्मार्ट सिटीजन की पहल होगी कि कम से कम पूरे एक मुहल्ले के लोग एक जगह पर एक साथ मिलकर होली जलाएंगे। जिससे लोगों के आपसी रिश्ते तो मजबूत होंगे ही, निस्वार्थ भाव से प्राण वायु ऑक्सीजन देने वाले ईश्वर के खास दूत वृक्षों का जीवन भी बचाया जा सकेगा।
पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होकर उपलों का होलिका दहन में बढ़ रहा प्रयोग
होलिका दहन देश के हर कोने में मनाया जाता है। ऐसे में कुंटलों लकड़ियां जल कर खाक हो जाती है । साथ ही न जाने कितने पेड़ों को खत्म कर दिया जाता है जो की पर्यावरण के लिहाज से बिलकुल भी उचित नहीं है। आपको बता दें कि पर्यावरण को बचाने के लिए प्राचीन काल से ही लोग जागरूक थे। अर्जेंटीना में पिछले 85 सालों से कंडों की होली जलाई जा रही है। कंडों की होली से एक ओर जहां पर्यावरण सुरक्षित रहता है । साथ ही पशुपालकों को भी आर्थिक लाभ मिलता है, जिससे वह गोवंशों का बेहतर तरीके से पालन करते हैं।
आगरा शहर में 35 साल से सबसे बड़ी होली सर्राफा बाजार में होलिका दहन में एक बार में 10 हजार से अधिक कंडों का उपयोग होता है। इससे प्रेरित हो जल्द ही पूरे सराफा बाजार के कारोबारी भी जुड़े। इसी प्रकार दौलतगंज में भी लगभग 85 से कंडों की होली जलाई जाती है। इसी प्रकार एक सदी से स्थापित अचलेश्वर महादेव पर भी कंडों की होली जलाई जा रही है। इस तरह अब देखा जा रहा है कि देश भर में लोग धीरे धीरे जागरूक होकर होलिका दहन पर कंडो का प्रयोग करने लग गया हैं।
गाय के गोबर के कंडे से शुभता के साथ शुद्धता और संरक्षण भी
पर्यावरण संरक्षण के लिए चल रही मुहिम में वृक्षों की रक्षा करना हम सब का परम धर्म हो चुका है। इसी के चलते अब होलिका दहन में लकड़ियों का प्रयोग न करके गोबर से बने उपलों का प्रयोग लोग बढ़ चढ़ कर रहे हैं । ऐसे में यदि उपले गाय के गोबर से बने हों तो कहना ही क्या। जिससे पर्यावरण संरक्षण के साथ ही साथ गोवंश की भी रक्षा करने में मदद मिलेगी। और उससे होने वाली आय से उनकी मदद की जा सकेगी। गोसंरक्षण से जुड़ी एक संस्था के अनुसार गाय के एक कंडे की कीमत 10 रुपये है। इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिलेंगे। यदि शहर में होली पर 20 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 2 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं। औसतन एक गौशाला के हिस्से में किसी अनुदान के लिए 13 लाख रुपए तक की आमदनी की जा सकती है । लकड़ी की तुलना में लोगों को खरीदने में भी ज्यादा फायदा होगा। यह अभियान अभी कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर शुरू हुआ है, लेकिन जल्द ही व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है।
ऑक्सीजन से भरपूर है गाय का गोबर
गौसंरक्षण से जुड़ी संस्था के अनुसार आपको केवल 2 किलो सूखा गोबर 300 ग्राम ऑक्सीजन देता है। एक गाय रोज 10 किलो गोबर देती है। इसकी राख से 60 प्रतिशत यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन बनती है। कंडे की होलिका दहन के साथ ही गोबर खाद खरीदकर समाज में गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है।