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Immune System बताता है आपकी असली उम्र, वैज्ञानिकों ने दिया ये तर्क

Immune System: आपके इम्यून सिस्टम की अवस्था ही आपकी असली उम्र है। इम्यून सिस्टम बता देता है कि आप कब और किस बीमारी से ग्रसित होंगे और कब मौत होने की संभावना है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 16 July 2021 3:02 PM IST
Immune System बताता है आपकी असली उम्र, वैज्ञानिकों ने दिया ये तर्क
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(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Immune System: आपकी असली उम्र (Age) वो नहीं है जो कैलेंडर के पन्नों से गिनी जाती है बल्कि आपकी असली उम्र वो है जो आपका इम्यून सिस्टम (Immune System) बताता है। यानी आपके इम्यून सिस्टम की अवस्था ही आपकी असली उम्र है। यही नहीं, इम्यून सिस्टम बता देता है कि आप कब और किस बीमारी से ग्रसित होंगे और कब मौत होने की संभावना है।

अमेरिका की स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी (Stanford University) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा सिस्टम डेवलप किया है जो आपकी उम्र का एकदम सटीक कैलकुलेशन कर देता है। ये बता देता है कि आपका इम्यून सिस्टम कितना मजबूत है, आप कितनी जल्दी कमजोर और अशक्त होने वाले हैं, आगे कौन से रोग होने वाले हैं और उनका क्या अंजाम होगा। ये किसी ज्योतिषीय अनुमान और आंकलन की तरह है लेकिन इसका वैज्ञानिक आधार है।
स्टेनफोर्ड की स्टडी के वरिष्ठ लेखक डेविड फुरमन कहते हैं कि- हर साल कैलेण्डर बताता है कि आप एक साल बूढ़े हो गए हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि हर इनसान की उम्र जैविक रूप से समान दर से नहीं बढ़ती है। कोई बूढ़ा व्यक्ति बहुत कमजोर और शक्त हो जाता है लेकिन कोई व्यक्ति उसी उम्र में पूरी तरह तंदरुस्त रहता है। डेविड फुरमन के अनुसार ये फर्क लोगों के इम्यून सिस्टम की अवस्था के कारण होता है। इम्यून सिस्टम जितनी तेजी से घटेगा उसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है।
इम्यून सिस्टम दरअसल शरीर की कोशिकाओं, रसायनों और अन्य चीजों का बहुत सावधानी से बनाया गया एक नेटवर्क है। ये इस तरह इंसानों में डेवलप हुआ है ताकि वे चोट या विषाणुओं के हमले से निपट सकें। इम्यून सिस्टम किसी भी हमले के खिलाफ एक बेहद तेज, सटीक, लघुकालीन प्रतिरोध और रिपेयर का रिस्पांस शुरू कर देता है जिसे 'एक्यूट इन्फ्लेमेशन' कहते हैं। इन्फ्लेमेशन यानी सूजन जो अपना काम करके चंद दिनों में स्वतः खत्म हो जाती है। मिसाल के तौर पर कोई हलकी चोट लगने पर सूजन होती है लेकिन चोट ठीक होने के साथ साथ ख़त्म हो जाती है।
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन
जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, पूरे शरीर में एक हल्की क्षमता 'खराब इन्फ्लेमेशन' होने लगता है। ये क्रॉनिक यानी लगातार बना रहने वाला इन्फ्लेमेशन अन्दर ही अन्दर शरीर के अवयवों को नुकसान पहुंचाता रहता है और हर अंग में किस्म किस्म की बीमारियों के प्रति दरवाजे खोल देता है। इन बीमारियों में कैंसर, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, न्यूरोडीजेनेरेशन और ऑटोइम्यूनिटी जैसी अवस्थाएं शामिल हैं। अभी तक ऐसा कोई पैमाना नहीं बना है जो किसी व्यक्ति के भीतर इन्फ्लेमेशन के स्टेटस को ऐसे सटीक रूप से बता सके जिससे कि बीमारियों की भविष्यवाणी की जा सके या उनसे बचने का तरीका बताया जा सके। लेकिन अब स्टेनफोर्ड की स्टडी ने एक सटीक पैमाना बनाने में सफलता हासिल की है।
डेविड फुरमन स्टेनफोर्ड में '1000 इम्यूनोमेस प्रोजेक्ट' संचालित कर रहे हैं जिसके तहत 2009 से 2016 के बीच 8 से 96 वर्ष के 1001 स्वस्थ लोगों के ब्लड सैंपल लिए गये। सभी सैंपल में साईटोकाईन्स नामक इम्यून सिग्नलिंग प्रोटीन के लेवल नापे गए, सेल्स में मौजूद हजारों जीन की एक्टिविटी का लेवल देखा गया और कई अन्य प्रभावों का आंकलन किया गया। शोधकर्ताओं ने समस्त डेटा का विश्लेषण आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के जरिये किया गया। सभी डेटा और जिनके सैंपल लिए गए थे उनकी मॉनिटरिंग के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इम्यून सिस्टम की मौजाओद्द स्थिति ही किसी इनसान की वास्तविक अवस्था होती है।
(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)
क्या होता है इम्यून सिस्टम?
इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर की आंतरिक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है जो शरीर की बाहरी खतरों से सुरक्षा करती है। जैसे ही कोई वायरस, बैक्टीरिया या रोगजनक शरीर पर आक्रमण करते हैं तो अपने आप ही यह प्रणाली सक्रिय हो जाती है और इनसे बचाव की प्रक्रिया शुरू कर देती है। यह बहुत ही जटिल प्रणाली होती है, जो पूरे शरीर में फैली होती है। इसमें अनेक रसायन और भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाएं होती हैं, जो शरीर की रक्षा के लिए अलग-अलग तरीके से काम करती हैं। ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ इंसानों में ही होती है यह अन्य जीवों में भी होती हैं जो संक्रमण से शरीर की रक्षा करती हैं।
इम्यून सिस्टम के मुख्य घटकों में ल्यूकोसाइट्स यानी सफ़ेद ब्लड सेल्स, बोन मैरो (अस्थिमज्जा) के कुछ कोष, लसिका ग्रंथियां (लिंफ़ोइड ऑर्गन और ऐंटीबॉडी जैसे घुलनशील अणु) और प्लीहा का समावेश होता है। ल्यूकोसाइट्स शरीर पर हमला करनेवाले बाहरी पैथोजेंस, बैक्टीरिया आदि को खा जाती हैं। लिंफ़ोइड अंगों में टी-लिंफ़ोसाइट और बी-लिंफ़ोसाइट कोशिकाएं रहती हैं और एंटीजन से निपटने की ट्रेनिंग प्राप्त करती हैं। बोन मैरो मुख्य लिंफ़ोइड अंग है जहां लिंफ़ोसाइट, ख़ासकर बी-लिंफ़ोसाइट का विकास होता है। इसी तरह प्लीहा यानी लीवर में भी पर्याप्त मात्रा में लिंफ़ोसाइट और लिंफ़ नोड्स पाए जाते हैं। इसी के चलते लीवर खून को फ़िल्टर करता है।
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