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Indian Army Operation: ऑपरेशन कैक्टस, भारतीय सेना की क्षमता और वीरता का अद्वितीय उदाहरण
Indian Army Operation Cactus History: ऑपरेशन कैक्टस के तहत भारतीय सेना ने मालदीव में तख्तापलट को विफल कर दिया था।
Indian Army Operation Cactus History
Indian Army Operation Cactus History: भारतीय सेना (Indian Army) ने हमेशा देश की रक्षा में अद्वितीय साहस और वीरता का प्रदर्शन किया है। यह सेना न केवल युद्धभूमि पर अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि आपातकालीन परिस्थितियों में भी उसने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। चाहे कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में दुश्मनों से संघर्ष हो या सीमा पर आतंकवादी हमलों का सामना करना हो, भारतीय सैनिकों ने हर चुनौती का साहसिक तरीके से सामना किया है। ऐसा ही एक विशेष उदाहरण 1988 में मालदीव में तख्तापलट के प्रयास के दौरान देखने को मिला, जब भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’(Operation Cactus )के तहत हस्तक्षेप किया और तख्तापलट को विफल कर दिया। भारतीय सेना की त्वरित और प्रभावी कार्रवाई ने न केवल मालदीव में स्थिरता बनाए रखी, बल्कि यह सैनिकों के समर्पण, अनुशासन और वीरता का प्रतीक बन गई।
आज इस लेख के माध्यम से हम ऑपरेशन कैक्टस की प्रस्तावना का विस्तृत वर्णन करेंगे।
मालदीव तख्तापलट प्रयास और भारतीय सेना का ऐतिहासिक हस्तक्षेप
1988 में, मालदीव(Maldives) में एक तख्तापलट का प्रयास हुआ, जिसे अब्दुल्ला लूथफी के नेतृत्व में एक समूह ने अंजाम दिया। इस समूह को श्रीलंका से पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के आतंकवादियों से समर्थन प्राप्त था। उनका उद्देश्य मालदीव सरकार को उखाड़ फेंकना था। हालांकि, मालदीव सैनिकों की बहादुरी और भारतीय सेना के हस्तक्षेप के कारण यह तख्तापलट विफल हो गया। भारतीय सशस्त्र बलों ने ऑपरेशन कैक्टस नामक सैन्य अभियान के तहत मालदीव में तख्तापलट की साजिश को नाकाम कर दिया और सरकार को सुरक्षित बचा लिया।
राष्ट्रपति गयूम का भारत दौरा-President Gayoom's visit to India
3 नवंबर को, राष्ट्रपति गयूम का भारत दौरा तय था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी(Rajiv Gandhi)के किसी महत्वपूर्ण कार्यक्रम के कारण इसे स्थगित कर दिया गया। विद्रोही इस मौके का इंतजार कर रहे थे कि गय्यूम भारत जाएं और वे तख्तापलट को अंजाम दें। उनके द्वारा किए गए सभी इंतजाम अब खत्म हो गए थे।
इस बीच, श्रीलंका से पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के सशस्त्र उग्रवादी मालदीव में दाखिल हो चुके थे। गय्यूम का भारत दौरा टलने के बावजूद, विद्रोहियों ने अपनी साजिश को पूरा करने का दृढ़ निश्चय किया और तय किया कि अब वे अपनी योजना को किसी भी हाल में अंजाम देंगे।
1988 से पहले भी दो बार हुए थे तख्तापलट के प्रयास
1980 और 1983 में भी आतंकवादियों द्वारा राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के खिलाफ हुए तख्तापलट के प्रयास किये गए थे। हालांकि यह दोनों प्रयास पूरी तरह विफल हो गए थे और इन प्रयासों को असफल मानते हुए सरकार ने इन्हें जल्दी दबा दिया था, और इनके परिणामस्वरूप कोई बड़ा बदलाव नहीं आया।
3 नवंबर 1988 को तीसरी बार मालदीव की राजनीती में तख्तापलट के प्रयास किया गया। इस बार, लगभग 80 सशस्त्र भाड़े के सैनिक मालवाहक जहाज से स्पीडबोट्स में सवार होकर मालदीव राजधानी माले पहुंचे। ये सैनिक आगंतुकों के रूप में छिपकर पहले से ही माले में दाखिल हो चुके थे। जैसे ही उन्होंने अपनी स्थिति मजबूत की, उन्होंने महत्वपूर्ण सरकारी भवनों, हवाई अड्डे, बंदरगाह, और टेलीविजन तथा रेडियो स्टेशनों सहित कई प्रमुख स्थानों पर कब्जा कर लिया। हालांकि, वे राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम(President Maumoon Abdul Gayoom) को पकड़ने में विफल रहे, क्योंकि राष्ट्रपति लगातार छिपते हुए भारत, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम से सैन्य हस्तक्षेप की मांग कर रहे थे।
भारत से मदद की अपील
3 नवंबर 1988, का वो दिन था। सुबह होते ही भारत में विदेश मंत्रालय का फोन बजा और मालदीव में विद्रोह की खबर मिली। लड़ाके हर ओर बंदूकें लेकर घूम रहे हैं। इस खतरनाक स्थिति से बचने के लिए, राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम कहीं गहरे छिप गए थे। मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ने भारत से मदद की अपील की। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सैन्य सहायता मांगी। राजीव गांधी ने भी तत्काल आपातकालीन बैठक बुलाई और सेना को मालदीव जाने का आदेश दिया। भारतीय सेना ने ऑपरेशन कैक्टस की योजना बनाई, जिसमें भारतीय वायुसेना और नौसेना की सहायता से मालदीव के द्वीपों पर त्वरित सैन्य कार्रवाई की गई।
और आगाज़ हुआ ऑपरेशन कैक्टस का - And Began Of Operation Cactus
ऑपरेशन कैक्टस 3 नवंबर की रात को शुरू हुआ और भारतीय वायुसेना और थलसेना ने ब्रिगेड कमांडर फारूक बुलसारा में ऑपरेशन कैक्टस का आगाज हुआ । भारतीय वायुसेना के इल्यूशिन IL-76 विमान ने पैराशूट रेजिमेंट की 6वीं बटालियन और 17वीं पैराशूट फील्ड रेजिमेंट के साथ-साथ 50वीं इंडिपेंडेंट पैराशूट ब्रिगेड की टुकड़ियों को लेकर आगरा वायुसेना स्टेशन से मालदीव के लिए उड़ान भरी। इन सैनिकों को 2,000 किलोमीटर (1,240 मील) से अधिक की दूरी तय करनी थी, और उन्हें बिना रुके हुलहुले आंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरना था। लगातार नौ घंटे की हवाई यात्रा के बाद करीब तीनसौ सैनिक हुलहुले हवाई अड्डे(Hulhule International Airport) पर दाखिल हुए ।
हुलहुले हवाई अड्डे पर उतरने के बाद सैनिकों को दो अलग - अलग तुकडियो में विभाजित किया गया जिसमे एक टुकड़ी को हुलहुले एयरपोर्ट को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौपी गई तो दूसरी टुकड़ी को माले भेजा गया ।जिसका उद्देश्य माले(Male)को आतंकियों से आज़ाद करना था ।
लोकल बोट्स के माध्यम से सैनिकों की तुकडी माले पहुँचती है। जहा इस तुकडी को और दो टीमों में विभाजित किया जाता है।एक टीम तत्कालीन राष्ट्रपति की तलाश में निकलती है तो वही दूसरी टीम माले को आज़ाद करने के उद्देश्य से आतंकियों की तलाश में।आधी रात तक माले के लगभग सभी क्षेत्र सुरक्षित हो चुके थे तो वही रात को करीब 2 बजकर 10 मिनिट को सेना की एक तुकडी उस जगह पहुँचती है जहा राष्ट्रपति गयूम को छुपाया गया था।और इस तरह सफलतापूर्वक राष्ट्रपति गयूम को बचा लिया जाता है।
भारतीय कमांडोज की बहादुरी से अगवा जहाज मुक्त
भारतीय सेना के माले पहुंचते ही उग्रवादियों को खदेड़ने की कार्रवाई शुरू हो गई। स्थिति बिगड़ती देख, श्रीलंका से आए ये उग्रवादी जान बचाने के लिए भागने लगे। उन्होंने भागने के प्रयास में एक जहाज को अगवा कर लिया। इस घटना की जानकारी अमेरिकी नौसेना को मिली, जिसने तुरंत भारतीय नौसेना को इसकी सूचना दी।
भारतीय युद्धपोत गोदावरी से एक हेलिकॉप्टर रवाना हुआ और उसने अगवा जहाज पर भारत के मरीन कमांडो को तैनात कर दिया। कमांडोज ने तेजी से कार्रवाई करते हुए जहाज पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इस ऑपरेशन में 19 उग्रवादी मारे गए, जबकि संघर्ष के दौरान दो बंधकों की भी जान चली गई।
संकट में देश नहीं छोड़ाना चाहते थे राष्ट्रपति गयूम
रेस्क्यू के बाद राष्ट्रपति गयूम को भारत भेजने का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन उन्होंने अपने देश को इस संकट की घड़ी में छोड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें राष्ट्रीय सेवा मुख्यालय में सुरक्षित स्थान पर भेजा गया।
भारतीय सेना ने केवल 9 घंटे के भीतर दिया ऑपरेशन कैक्टस को अंजाम
वायुसेना के जवान बिना किसी रुकावट के 2,000 किमी से अधिक की दूरी तय करते हुए, मालदीव की इमरजेंसी कॉल के केवल 9 घंटे के भीतर माले हुलहुले हवाई अड्डे पर उतरे। उस समय तक इस एयरपोर्ट पर विद्रोहियों का कब्जा नहीं था, और यह एयरपोर्ट माले की सेना के नियंत्रण में था।
लगातार दो दिनों तक चला ऑपरेशन कैक्टस
ऑपरेशन कैक्टस पूरे दो दिनों तक चला, जिसके दौरान भारतीय सेना ने निर्णायक कार्रवाई की। इस अभियान में कुल 68 श्रीलंकाई लड़ाकों और 7 मालदीवियों को गिरफ्तार किया गया। सभी संदिग्धों से गहन पूछताछ की गई और फिर मालदीव में उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया। तख्तापलट के मास्टरमाइंड अब्दुल्ला लूथुफी सहित चार लोगों को मौत की सजा सुनाई गई, हालांकि बाद में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हस्तक्षेप के बाद इस सजा को बदल दिया गया।
इस पूरे ऑपरेशन का नेतृत्व ब्रिगेडियर फारुख बुलसारा ने किया, जिन्होंने भारतीय पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाली। शानदार रणनीति और तेजी से की गई कार्रवाई के कारण भारतीय सेना ने केवल दो दिनों में इस अभियान को सफलतापूर्वक समाप्त कर दिया।
मालदीव संकट पर आंतरराष्ट्रीय सहायता की सीमाएं और निष्क्रियता
मालदीव में तख्तापलट की साजिश के दौरान, मालदीव ने पाकिस्तान, श्रीलंका, सिंगापुर के साथ-साथ अमेरिका और यूके से भी मदद की गुहार लगाई थी। हालांकि, पाकिस्तान, श्रीलंका, और सिंगापुर ने सैन्य बल की कमी का हवाला देते हुए मदद करने से इनकार कर दिया। वहीं, अमेरिका और यूके ने तात्कालिक समय में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया, क्योंकि उनके लिए इतने कम समय में सहायता पहुंचाना संभव नहीं था।