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Bhikaji Rustom Cama Biography: जानें स्वतंत्रता सेनानी भीखाजी कामा के बारे में, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे पहले फहराया था भारतीय ध्वज
Bhikaji Rustom Cama Ka Jivan Parichay: भीखाजी रूस्तम कामा, जिन्हें मैडम भीकाजी कामा के नाम से जाना जाता है, भारत की स्वतंत्रता संग्राम की महानायिका थी। उन्होंने सबसे पहले भारतीय ध्वज फहराकर देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल पेश की थी।
Bhikaji Rustom Cama Biography: भीखाजी रूस्तम कामा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख महिला नेता और समाज सुधारक थीं। वे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण और समाज सुधार के लिए भी प्रसिद्ध थीं।
भारत (India) के इतिहास में कई ऐसे अनगिनत लोग हुए हैं, जिन्होंने देश के विकास, स्वतंत्रता संग्राम, समाज सुधार और वैज्ञानिक प्रगति में अभूतपूर्व योगदान दिया, लेकिन उन्हें वह पहचान नहीं मिली जिसके वे अधिकारी थे। मैडम भीकाजी कामा (Madam Bhikaji Kama) उन्हीं गुमनाम सेनानियों में से एक हैं, जिन्हें अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की जननी के रूप में जाना जाता है।
भीखाजी रूस्तम कामा, जिन्हें मैडम भीकाजी कामा (Madam Cama) के नाम से जाना जाता है, भारत की स्वतंत्रता संग्राम की महानायिका थी। भीकाजी कामा ने सबसे पहले भारतीय ध्वज (Indian Flag) फहराकर देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल पेश की। उन्होंने अंग्रेजों की तानाशाही के खिलाफ मजबूती से आवाज उठाई और भारत की स्वतंत्रता की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके विचार, साहस और समर्पण ने स्वतंत्रता संग्राम में नए आयाम जोड़े।
आज भी, भीकाजी कामा जैसी शख्सियतें हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपने कर्तव्यों और देश के प्रति समर्पण के साथ कार्य करें। उनका जीवन संदेश देता है कि सच्चा देशभक्त वही है, जो बिना किसी स्वार्थ के देश की सेवा करता है। उनके योगदान को याद रखना और आने वाली पीढ़ियों को उनके बारे में बताना हमारा कर्तव्य है। “आज इस लेख के माध्यम से हम भारत के क्रांतिकारी भीकाजी कामा के जीवन यात्रा को समझने का प्रयास करेंगे”।
भीकाजी कामा का परिचय (Bhikhaiji Rustom Cama Ka Jivan Parichay)
भीकाजी कामा, का जन्म 24 सितंबर, 1861 को मुंबई (Mumabi) में (बॉम्बे) एक पारसी परिवार में हुआ था। भीकाजी कामा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे में प्राप्त की। अपने छात्र जीवन के दौरान, वह ऐसे वातावरण से प्रभावित हुईं, जहां भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन अपनी जड़ें जमा रहा था। इसी कारण वह कम उम्र में ही राजनीतिक मुद्दों की ओर आकर्षित हो गईं।
1885 में उनका विवाह प्रसिद्ध वकील रुस्तमजी कामा (Roostamji Kama) से हुआ, लेकिन सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों में उनकी गहरी रुचि के कारण दंपति के बीच मतभेद पैदा हो गए। इसी बिच 1896 में मुंबई में प्लेग फैलने पर भीकाजी कामा ने संक्रमित मरीजों की सेवा में खुद को समर्पित कर दिया। इस दौरान वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई, लेकिन चिकित्सकों ने उन्हें आराम करने और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी। 1902 में वह इसी उद्देश्य से लंदन गईं, जहां पहुंचने के बाद भी उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने प्रयासों को जारी रखा।
जर्मनी में फहराया तिरंगा
22 अगस्त 1907 को भीकाजी कामा ने जर्मनी (Germany) में आयोजित इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीय ध्वज फहराया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज बुलंद किया। इस सम्मेलन में उन्होंने भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त करने की जोरदार अपील की। उनके द्वारा तैयार किए गए झंडे के डिज़ाइन से काफी मिलता-जुलता डिज़ाइन बाद में भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। राणा जी और भीकाजी कामा द्वारा निर्मित यह प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज आज भी गुजरात के भावनगर में सरदारसिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजुभाई राणा (राजेंद्रसिंह राणा) के घर पर सुरक्षित रखा गया है।
एक मुलाकात ने बदल दी जीवन की दिशा
भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रख्यात सेनानी, मैडम भीकाजी कामा, अपने साहसिक कदमों और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष के लिए जानी जाती हैं। इंग्लैंड में प्रवास के दौरान उनकी मुलाकात दादाभाई नौरोजी से हुई, जो ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के प्रमुख आलोचक थे। इस मुलाकात ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी, और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़कर काम करने लगीं। इसके साथ ही, उन्होंने वीर सावरकर, लाला हर दयाल और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे राष्ट्रवादियों के साथ भी सहयोग किया। लंदन के हाइड पार्क में उन्होंने कई सभाओं को संबोधित कर स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत किया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वैश्विक पहचान
मैडम भीकाजी कामा द्वारा स्टटगार्ट में 1907 को सम्मेलन का दौर शुरू हुआ, जो फिर कई वर्षों तक चला। वे व्याख्यानों की यात्रा के जरिये भारतीयों के बीच भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जन जागरूकता फैलाना चाहती थी, विशेषरूप से प्रवासी भारतीयों के बिच। इस दौरान, उन्होंने महिलाओं के हक़ के लिए भी अपनी आवाज उठाई। जब इंग्लैंड से उन्हें निष्कासित किए जाने की अफवाहें फैलने लगीं, तो 1909 में वह पेरिस चली गईं। पेरिस में उनका घर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों का केंद्र बन गया। यहां उन्होंने हर दयाल को उनके क्रांतिकारी समाचार पत्र ‘वंदे मातरम्’ की शुरुआत करने में मदद की, जिसकी प्रतियां लंदन से तस्करी करके भारत भेजी जाती थीं।
अंग्रेज कुख्यात महिला, खतरनाक क्रांतिकारी कहकर करते थे संबोधित
वंदेमातरम्’ और ‘तलवार’ जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से भीकाजी कामा अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करती थीं। उनकी लड़ाई केवल भारत की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे विश्व से साम्राज्यवाद के अंत का उनका सपना था। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्व को भली-भांति समझती थीं और इसे वैश्विक साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष का हिस्सा मानती थीं। उनके सहयोगी उन्हें ‘भारतीय क्रांति की माता’ के रूप में सम्मानित करते थे, जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी और ब्रिटिश विरोधी कहकर बदनाम करते थे।
भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन
यूरोप के समाजवादी समुदाय में भीकाजी कामा का गहरा प्रभाव था। यह तब स्पष्ट हुआ जब उन्होंने यूरोपीय पत्रकारों को भारतीय देशभक्तों के समर्थन में आगे आने का आह्वान किया। उन्हें ‘भारतीय राष्ट्रीयता की महान पुजारिन’ के रूप में भी जाना जाता था। उनकी तुलना फ्रांस की जोन ऑफ आर्क से की गई, और फ्रांसीसी अखबारों में उनके चित्र के साथ यह तुलना प्रकाशित हुई। यह दर्शाता है कि यूरोप के राष्ट्रीय और लोकतांत्रिक समाज में भीकाजी कामा को एक विशिष्ट और प्रभावशाली स्थान प्राप्त था।
नजरबंदी में भी संघर्ष की जोश
वो दौर था विश्व युद्ध का जब ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस एक साथ आए, तब फ्रांसीसी अधिकारियों ने मैडम भीकाजी कामा को उनकी ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के कारण तीन साल के लिए नजरबंद कर दिया। बावजूद इसके उन्होंने भारतीय, आयरिश और मिस्र के क्रांतिकारियों से संपर्क बनाए रखा और फ्रांसीसी समाजवादियों तथा रूसी नेतृत्व के साथ सहयोग किया। 1935 में, जब वे 75 वर्ष की थीं, उन्हें भारत लौटने की अनुमति मिली। लेकिन अगले ही वर्ष 13 अगस्त 1936 को 75 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
भीखाजी रूस्तम कामा द्वारा निर्मित झंडा
1907 में पेरिस में भीखाजी रूस्तम कामा द्वारा लहराया गया झंडा देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति से परिपूर्ण था। इसमें इस्लाम का हरा, हिंदू का पीला रंग और भारतीय संघर्ष और बलिदान का प्रतीक के लिए लाल रंग दर्शाया गया था। साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में वंदे मातरम लिखा हुआ था।