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Indian Warrior Women: अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाली भारत की पहली वीरांगना 'रानी वेलु नचियार' की कहानी

Rani Velu Nachiyar Life History: रानी वेलु नचियार भारत की पहली रानी थीं, जिन्होंने 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ संघर्ष किया और अंग्रेजो को परास्त किया था ।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 15 Jan 2025 9:00 AM IST (Updated on: 15 Jan 2025 9:01 AM IST)
Indian Warrior Women: अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाली भारत की पहली वीरांगना रानी वेलु नचियार की कहानी
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Rani Velu Nachiyar Life History: रानी वेलु नचियार(Rani Velu Nachiyar) एक प्रसिद्ध भारतीय रानी और स्वतंत्रता सेनानी थी। वह भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई और अपने राज्य को बचाने के लिए एक मजबूत लड़ाई लड़ी। जब उनके राज्य पर अंग्रेजों ने आक्रमण किया और उनके पति राजा शिवगंगा को मार डाला, तो रानी ने न केवल अपनी रानी के कर्तव्यों को निभाया, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी उपस्थिति दर्ज की।उनकी वीरता और साहस को देखते हुए, आज भी उन्हें एक महान योद्धा के रूप में याद किया जाता है।

न्यूज ट्रैक के माध्यम से हम भारत की वीरांगना 'रानी वेलु नचियार' का विस्तार से वर्णन करेंगे-

'रानी वेलु नचियार' का प्रारंभिक जीवन

'रानी वेलु नचियार' का जन्म 3 जनवरी, 1730 तमिलनाडु के शिवगंगई क्षेत्र के रामनाथपुरम में हुआ था। 'वेलु नचियार' रामनाथपुरम राज्य की राजकुमारी और रामनाद साम्राज्य के राजा चेल्लामुतहू विजयाराघुनाथ सेतुपति और रानी सक्धिममुथल सेतुपति की एकमात्र पुत्री थीं। वह चोल वंश के कश्यप गोत्र से ताल्लुक रखती थीं और सूर्यवंशी थीं। उनका पालन-पोषण एक राजकुमारी की तरह किया गया था। इसीलिए रानी बचपन से ही युद्धकला, घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवारबाजी जैसे सभी युद्ध कलाओं में निपुण थी। इसके आलावा 'रानी वेलु नचियार' को अंग्रेजी, फ्रेंच एवं उर्दू जैसी कई भाषाओं की समझ थी।


'रानी वेलु नचियार' का मात्र 16 वर्ष की आयु में विवाह शिवगंगा(तमिलनाडु राज्य का एक जिला ) के राजा शशिवर्मा थेवर के पुत्र मुत्तु वेदुंगानाथ थेवर के साथ हुआ था।कुछ वर्षों बाद शिवगंगा के राजा शशिवर्मा का निधन हुआ जिसके बाद राज्य की कमान उनके पुत्र मुत्तु वेदुंगानाथ थेवर ने संभाली। इस कार्य में रानी ने भी सहकार्य किया। राजा, रानी के कार्यो से प्रभावित हुए और उन्हें अपना प्रमुख सलाहकार बना लिया। कुछ समय बाद इस जोड़े ने पुत्री को जन्म दिया जिसका नाम वेल्लाची नचियार रखा गया। इस दंपति ने करीब दो दशकों से अधिक समय तक यानी 1750 से 1772 तक शिवगंगा पर शासन किया।

अंग्रेजों द्वारा आक्रमण और पति का निधन

इस दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव दक्षिण भारत में तेजी से बढ़ रहा था। तमिलनाडु के बड़े हिस्से, विशेष रूप से आरकोट, पर उनका नियंत्रण स्थापित हो चुका था। आरकोट के नवाब मोहम्मद अली खान अंग्रेजों के अधीन हो गए थे। उनकी भूमिका अंग्रेजों के लिए आसपास के राज्यों से कर वसूलने तक सीमित हो गई थी।


अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति के तहत अब उनकी निगाहें शिवगंगा पर टिक गईं। वहीं, शिवगंगा सहित कई अन्य राज्यों के शासकों ने नवाब मोहम्मद अली को कर चुकाने से साफ इंकार कर दिया, जिससे अंग्रेज क्रोधित हो उठे। इस स्थिति को देखते हुए अंग्रेजों ने नवाब की सहायता से शिवगंगा पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजी सेनाओं ने पूरब और पश्चिम, दोनों दिशाओं से शिवगंगा की ओर कूच किया। राज्य की रक्षा के लिए राजा मुत्तु ने बहादुरी से दुश्मन का सामना किया।लेकिन इस संघर्ष में उन्हें वीरगति प्राप्त हुई।

‘कलैयार कोली’ नाम से जाना जाता है युद्ध

इस युद्ध को ‘कलैयार कोली’ के नाम से जाना जाता है।,इसे तमिलनाडु के इतिहास के सबसे विनाशकारी युद्धों में से एक माना जाता है।


राजा की वीरगति के बाद, अंग्रेजों ने निर्दयता की सारी सीमाएँ पार कर दीं। उन्होंने भयानक नरसंहार किया ।बस्तियों को पूरी तरह उजाड़ते हुए उनमें आग लगा दी, जिससे शिवगंगा का बड़ा हिस्सा तबाह हो गया।

शिवगंगा पुनः प्राप्त करने का रानी का दृढ़ निश्चय

युद्ध में पति की वीरगति को प्राप्त होने की खबर मिलते ही, रानी ने पुत्री को लेकर पलायन किया । इसके बाद, आरकोट के नवाब ने किले पर कब्जा कर लिया और किले का नाम बदलकर हुसैननगर रख दिया।


दूसरी ओर, रानी वेलु ने डिंडिगुल के राजा गोपाल नायक्कर के पास शरण ली। लेकिन रानी ने हार नहीं मानी। शिवगंगा को पुनः प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय किया । वहीं रहते हुए उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध की योजना बनाई।

हैदर अली से मुलाकात और महिला सेना का निर्माण

रानी वेलु ने राजा गोपाल नायक्कर की सहायता से आसपास के राजाओं और मैसूर के राजा हैदर अली से संपर्क साधा। उनके साहस और दृढ़ संकल्प से प्रभावित होकर हैदर अली ने उनकी मदद के लिए धनराशि, पाँच हजार सैनिक और हथियार उपलब्ध कराए। इस सहयोग से रानी ने एक सशक्त सेना का निर्माण किया। इसके साथ ही, उन्होंने महिलाओं की एक विशेष सेना का गठन किया, जिसे ‘उदायल नारी सेना’ नाम दिया गया। रानी ने इस सेना की कमान अपनी सबसे विश्वसनीय और वीर महिला सिपाही कुयिली को सौंपी।

भारत की पहली आत्मबलिदानी वीरांगना कुयिली

सन् 1780 में, रानी वेलु नचियार और अंग्रेजों के बीच एक बार फिर युद्ध छिड़ गया। रानी ने अपने गुप्तचरों की मदद से अंग्रेजों के गोला-बारूद के भंडार का पता लगाया और उसे नष्ट करने की योजना बनाई। इस साहसिक कार्य को अंजाम देने की जिम्मेदारी कुयिली ने अपने कंधों पर ली। कुयिली ने अपने कपड़ों पर घी का लेप किया और स्वयं को आग के हवाले कर अंग्रेजों के शस्त्रागार में प्रवेश कर गईं। उनके इस बलिदान से अंग्रेजों की पूरी युद्ध सामग्री नष्ट हो गई। अपने प्राणों की आहुति देकर कुयिली भारतीय इतिहास में पहली आत्मबलिदानी वीरांगना के रूप में अमर हो गईं।

अंग्रजों पर आक्रमण और शिवगंगा पर नियंत्रण

इसके बाद, रानी वेलु ने अपनी सेना के साथ शिवगंगा के किले पर आक्रमण किया। अंग्रेज, जो अब शस्त्रविहीन थे, जल्दी ही भाग गए। और इस तह अत्यंत कुशलता से और निडर होकर रानी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करते हुए शिवगंगा पर पुनः नियंत्रण हासिल किया।


अंग्रेजों को पराजित करने के बाद, रानी वेलु ने लगभग एक दशक तक शिवगंगा पर शासक के रूप में शासन किया।

मृत्यु और विरासत

25 दिसंबर, 1796 को रानी वेलु नचियार का निधन हो गया। लेकिन उनकी वीरता और साहस को तमिलनाडु के लोग कभी नहीं भूल पाए। 31 दिसंबर, 2008 को भारत सरकार ने रानी वेलु नचियार के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। 3 जनवरी, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रानी की जयंती के मौके पर यह कहा कि रानी वेलु नचियार का अद्वितीय साहस आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।



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