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Rang Bhed Kya Hai: रंगभेद सिर्फ भारत मे ही नहीं, विश्व में भी होता रहा है , आइए जानते हैं इसके इतिहास की पूरी कहानी

Rang Bhed Kya Hai: क्या आप जानते हैं कि रंगभेद सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में इसकी जड़ें व्याप्त हैं क्या है इसका पूरा इतिहास और कहाँ से शुरू हुई थी इसकी आग।

Akshita Pidiha
Published on: 21 March 2025 8:33 AM IST (Updated on: 21 March 2025 1:41 PM IST)
International Day for the Elimination of Racial Discrimination
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International Day for the Elimination of Racial Discrimination (Image Credit-Social Media)

Rang Bhed Kya Hai: अंतरराष्ट्रीय रंगभेद उन्मूलन दिवस (International Day for the Elimination of Racial Discrimination) हर वर्ष 21 मार्च को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य रंगभेद जैसी अमानवीय और असंवेदनशील नीति के खिलाफ जागरूकता बढ़ाना और दुनिया भर में समानता और मानवाधिकारों की रक्षा को बढ़ावा देना है।

इस दिवस का इतिहास दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ हुए संघर्ष से जुड़ा हुआ है। 21 मार्च 1960 को दक्षिण अफ्रीका के शार्पविल नामक कस्बे में रंगभेद विरोधी प्रदर्शन कर रहे निर्दोष लोगों पर पुलिस ने गोलियाँ चला दीं, जिसमें 69 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। इस नरसंहार ने रंगभेद विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 21 मार्च को रंगभेद के उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया।

क्या है नस्लीय भेदभाव

किसी व्यक्ति या समुदाय से उसके जाति, रंग, नस्ल इत्यादि के आधार पर घृणा करना या उसे समान्य मानवीय अधिकारों से वंचित करना नस्लीय भेदभाव कहलाता है. भारत देश में किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकने के लिए संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 15 को बनाया है. अनुच्छेद 15 केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के ही आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है.

शार्पविल नरसंहार (Sharpeville Massacre) रंगभेद विरोधी आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी. 21 मार्च 1960 में रंगभेद नीति के तहत अश्वेत नागरिकों को विशेष पहचान पत्र रखने के लिए मजबूर किया जाता था इसी के विरोध में पैन अफ्रीकनिस्ट कांग्रेस (PAC) ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आयोजन किया।पुलिस ने इस प्रदर्शन को कुचलने के लिए निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चला दीं।इसमें 69 लोग मारे गए और 180 से अधिक घायल हो गए।इस घटना के बाद पूरे दक्षिण अफ्रीका में अशांति फैल गई और रंगभेद विरोधी आंदोलन और भी मजबूत हो गया।

शार्पविल नरसंहार के बाद 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 21 मार्च को अंतरराष्ट्रीय रंगभेद उन्मूलन दिवस घोषित किया। इसका मुख्य उद्देश्य रंगभेद जैसी अमानवीय नीति के खिलाफ वैश्विक स्तर पर जागरूकता फैलाना था।

नेल्सन मंडेला (Nelson Mandela): उन्होंने रंगभेद विरोधी संघर्ष का नेतृत्व किया और इसके लिए 27 साल तक जेल में रहे। 1994 में रंगभेद की समाप्ति के बाद वे दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने।

डेसमंड टूटू (Desmond Tutu): दक्षिण अफ्रीका के आर्चबिशप, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ अहिंसक संघर्ष किया। उन्हें 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला।

नस्लीय भेदभाव का वर्तमान स्वरूप

  • इंटरनेट और सोशल मीडिया की गुमनामी ने नस्लवादी रूढ़ियों और गलत सूचनाओं को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • महामारी के बाद एशियाई लोगों के विरुद्ध नफरत फैलाने वाली वेबसाइट्स पर जाने वालों की संख्या में 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • भारत और श्रीलंका में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल धार्मिक अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के लिए किया गया।
  • महामारी के दौरान सोशल मीडिया पर अल्पसंख्यकों पर वायरस फैलाने का झूठा आरोप लगाया गया।
  • टेक्नोलॉजी आधारित नस्लवाद (Tech-Racism) भी बढ़ा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के माध्यम से एक विशेष नस्लीय समुदाय को लक्षित करने की संभावना बढ़ गई है।

नस्लवाद के विरुद्ध अन्य अंतरराष्ट्रीय पहलें

  • यूनेस्को (UNESCO) शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से नस्लवाद के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है।
  • यूनेस्को ने 'समावेशी एवं सतत् शहरों का अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन' बनाया है, जो शहरी स्तर पर नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने का प्रयास करता है।
  • वर्ष 2021 में यूनेस्को ने कोरिया गणराज्य के सहयोग से 'ग्लोबल फोरम अगेंस्ट रेसिज्म एंड डिस्क्रिमिनेशन' की मेजबानी की थी।
  • जनवरी 2021 में विश्व आर्थिक मंच ने कार्यस्थलों में नस्लीय और जातीय न्याय को सुधारने के लिए प्रतिबद्ध संगठनों का एक गठबंधन शुरू किया था।
  • 'ब्लैक लाइव्स मैटर' आंदोलन ने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ पूरी दुनिया में आवाज़ उठाई। यह आंदोलन अमेरिका के अलावा वैश्विक स्तर पर भी एकजुटता का प्रतीक बना।

भारत में रंगभेद विरोध:

महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद का विरोध किया।1893 में ट्रेन यात्रा के दौरान गांधी को गोरे लोगों के विरोध के कारण प्रथम श्रेणी से बाहर फेंक दिया गयाइसके बाद गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की, जिसने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष को मजबूती दी।

भारत में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध प्रावधान

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 29 नस्ल, धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A भी नस्लीय भेदभाव को संदर्भित करती है।
  • भारत ने वर्ष 1968 में 'नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन' (ICERD) की पुष्टि की थी।

नस्लीय भेदभाव के प्रभाव

  • नस्लीय भेदभाव समाज में असमानता, हिंसा और तनाव को बढ़ावा देता है।
  • इससे विभिन्न समुदायों में नफरत की भावना पनपती है और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान होता है।
  • नस्लीय भेदभाव पीड़ितों को शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य सेवाओं और राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर देता है।
  • यह समाज में अलगाव और कटुता को जन्म देता है, जिससे शांति और एकता को खतरा होता है।

रंगभेद के उन्मूलन में शिक्षा और जागरूकता की भूमिका

रंगभेद जैसी सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए शिक्षा और जागरूकता अत्यंत आवश्यक हैं:

शिक्षा: स्कूलों और कॉलेजों में नस्लीय समानता और मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में रंगभेद के खिलाफ पाठ शामिल किए जाते हैं।

मीडिया का योगदान: फिल्म, टीवी और सोशल मीडिया के माध्यम से नस्लीय भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाए जाते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम: रंगभेद विरोधी नाटक, फिल्में और कला प्रदर्शनियाँ आयोजित की जाती हैं, ताकि लोगों को इसकी विभीषिका के बारे में जागरूक किया जा सके।

समाधान

अंतर-सांस्कृतिक संवाद: विभिन्न जातियों, नस्लों और समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देकर सहिष्णुता को बढ़ाया जा सकता है।

शिक्षा के माध्यम से जागरूकता: नस्लीय भेदभाव के खिलाफ स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।

कानूनी सख्ती: नस्लीय भेदभाव के मामलों में कठोर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।

तकनीक के उपयोग पर निगरानी: सोशल मीडिया और इंटरनेट पर फैलाए जा रहे नस्लवादी प्रचार को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए।

वैश्विक सहयोग: नस्लीय भेदभाव से निपटने के लिए देशों को आपसी सहयोग बढ़ाना चाहिए।

महत्वपूर्ण तथ्य

साल 2016 के अंतरराष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस का विषय था:

"डरबन घोषणापत्र एवं कार्य योजना की उपलब्धियां एवं चुनौतियां"।

सितंबर 2016 में संयुक्त राष्ट्र ने 'टूगेदर' नामक कार्यक्रम आरंभ किया, जिसका उद्देश्य दुनिया में सम्मान, प्रेम, सुरक्षा और आदर की भावना को बढ़ावा देना था।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने 2016 में 'स्टैंड अप फॉर समवन्स राइट्स टुडे' अभियान भी आरंभ किया। इसका उद्देश्य उन लोगों की सहायता करना था, जिन्हें उनके अधिकार नहीं मिल रहे या जिनके अधिकारों का हनन हो रहा था।

साल 2001 में डरबन में आयोजित नस्लवाद के खिलाफ विश्व सम्मेलन में नस्लीय भेदभाव, विद्वेष और असहिष्णुता पर कार्ययोजना तैयार की गई थी।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1966 में नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रयास तेज़ करने का आह्वान किया था।

27 अप्रैल 1994 को दक्षिण अफ्रीका में पहली बार सभी नस्लों को मतदान का अधिकार मिला।

नेल्सन मंडेला राष्ट्रपति चुने गए और रंगभेद का अंत हुआ।

नस्लीय भेदभाव एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जो समाज की जड़ों को कमजोर करता है। इससे न केवल व्यक्ति बल्कि पूरे समुदाय प्रभावित होते हैं। नस्लीय भेदभाव के खिलाफ वैश्विक स्तर पर सतत प्रयासों की आवश्यकता है। शिक्षा, जागरूकता और कानूनी सख्ती के माध्यम से नस्लीय भेदभाव को जड़ से मिटाया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय रंगभेद उन्मूलन दिवस हमें यह याद दिलाता है कि नस्लीय भेदभाव किसी भी समाज में स्वीकार्य नहीं है। यह दिन सिर्फ एक घटना का स्मरण नहीं, बल्कि समानता, न्याय और मानवीय मूल्यों को बनाए रखने का प्रतीक है। 21 मार्च का दिन हमें नस्लीय समानता और मानवाधिकारों के लिए सतत संघर्ष करने की प्रेरणा देता है।

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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