×

Jal Ka Mahatav : पानी रे पानी ! कम होती तेरी कहानी

Jal Ka Mahatav : रहीम बहुत पहले लिख गए थे - ‘बिन पानी सब सून।’ बात सौ फीसदी सच है। पानी के बगैर कुछ भी नहीं। मंगल ग्रह से लेकर चन्द्रमा तक अरबों डॉलर खर्च करके पानी ही ढूंढा जा रहा है

Network
Newstrack Network
Published on: 18 March 2024 6:19 AM GMT
Without water everything is desolate
X

Without water everything is desolate

Jal Ka Mahatav: रहीम बहुत पहले लिख गए थे - ‘बिन पानी सब सून।’ बात सौ फीसदी सच है। पानी के बगैर कुछ भी नहीं। मंगल ग्रह से लेकर चन्द्रमा तक अरबों डॉलर खर्च करके पानी ही ढूंढा जा रहा है क्योंकि जहां पानी वहां जीवन।लेकिन एक विडम्बना भी बहुत बड़ी है। एक तरफ हम दूसरे ग्रह पर पानी तलाश रहे हैं । वहीं अपने ग्रह यानी पृथ्वी पर पानी को पानी की तरह बहा रहे हैं । मानों पानी की अनलिमिटेड सप्लाई है। अब पानी की सप्लाई के बारे में कोई जरा बंगलोर वालों से पूछे। भारत की इस टेक सिटी में जहां लाखों - करोड़ों के पैकेज पर लोग काम कर रहे हैं, वहां सब कुछ है मगर पानी नहीं है। करोड़ों के फ्लैटों में रह रहे लोग पानी के टैंकरों की बाट जोहते रहते हैं। जिस शहर में पिछले साल बाढ़ सी आ गई थी। वहां का ग्राउंड वाटर मानो रसातल में चला गया है, जिसे कोई बोरवेल, कोई सबमर्सिबल, कोई हैंडपंप ढूंढ नहीं पा रहा। कावेरी नदी से पानी मिल सकता था । लेकिन वहां सूखा पड़ा है। शहर में पानी की राशनिंग है, टैंकरों के चार्ज दो गुने तीन गुने हो गए हैं,पीने के पानी के लिए लाइनें लगीं हैं, पानी की बर्बादी पर जुर्माने लग रहे हैं।

जान लीजिये कि अभी गर्मी के मौसम की शुरुआत भी नहीं हुई है, तब ये हाल है, जब आसमान से आग बरसेगी तब क्या होगा?

हम आप, जिनके घरों के नलों में हरहरा के पानी आ रहा है, उनके लिए बंगलोर भविष्य की तस्वीर है। यह तस्वीर साउथ अफ्रीका का केपटाउन शहर 2015 से 2018 तक दिखा चुका है । जब शहर में पानी जीरो लेवल पर पहुंच गया था। वो तो कुदरत को दया आ गई । 2018 के बाद अच्छी बारिशें हुईं , जिससे बला टल गई। लेकिन जिस तरह से क्लाइमेट चेंज हो रहा है उसमें कुदरत कब तक मेहरबानी करेगी कोई कुछ नहीं कह सकता।कुछ दिनों बाद यानी 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाएगा। पानी की बर्बादी को रोकने और लोगों को इसका महत्व समझाने के उद्देश्य‍ से यह दिन हर साल मनाया जाता है। बंगलोर में भी मनाया जाता होगा। इस साल भी मनेगा। शायद इस बार वहां के बाशिंदे पानी के सबक सीख चुके होंगे।

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक पानी पीना बुरी बात मानी जाती थी। अमरीकी फ़ूड न्यूट्रैशन बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक़ हर कैलोरी को पचाने के लिए एक मिलीलीटर पानी पियें। फलों सब्ज़ियों में 98 प्रतिशत पानी होता है। 1974 में आई मार्गरेट मैक्किलियम्स की किताब में रोज़ आठ गिलास पानी पीने की राय दी गई थी। हमारे शरीर के कुल वजन का दो तिहाई हिस्सा पानी होता है, शरीर में एक दो फ़ीसदी भी पानी कम हो जाये तो हम डी हाइड्रेसन के शिकार हो जाते हैं। रोज आठ गिलास पानी पीने का भ्रम पूरी दुनिया में है। कम पानी पीने वालों के मुक़ाबले ज़्यादा पानी पीने वालों का वजन तेज़ी से घटता है। वैज्ञानिक इसकी पुष्टि नहीं करते हैं कि ज़्यादा पानी पीने से त्वचा स्निग्ध होगी।हर दम पानी पीते रहने से शरीर में सोडियम की कमी हो सकती है। इससे दिमाग़ व फेफड़ों में सूजन आ जाती है। रोज 6-8 गिलास पानी पियें। साठ साल की उम्र के बाद प्यास महसूस होने की शक्ति ख़त्म हो जाती है। हर इंसान की पानी की ज़रूरत अलग अलग है।


बंगलोर टेक्नोलॉजी सेक्टर की कंपनियों का गढ़ है। आज तो टेक्नोलॉजी के मायने ही डेटा हैं। सो इस शहर और अन्य टेक शहरों की आईटी कंपनियों के बाशिंदे डेटा में ही जागते सोते हैं। वैसे, डेटा से मोहब्बत ही नहीं बल्कि बाकायदा विवाह आज हम सभी ने कर रखा है। मोबाइल, लैपटॉप, टेबलेट या पीसी हमारे नए जमाने के जीवन साथी हैं। डेटा के बगैर जिंदगी अधूरी है। डेटा की प्यास बुझाने का नाम नहीं ले रही है।लेकिन हममें से ज्यादातर नहीं जानते कि डेटा की अपनी भी प्यास है। डेटा को पानी चाहिए। वह भी बहुत ज्यादा। कई कई नदियों के बराबर। सो अगर पानी बचाने को अगर आप सिर्फ नल बन्द कर देना समझते हैं, तो आप गलत हैं। ये जान लीजिए कि अभी आप अपने मोबाइल, डेस्कटॉप या लैपटॉप पर जो व्हाट्सएप, फेसबुक या गूगल कर रहे हैं उसमें भी पानी खर्च हो रहा है।जी हां, डेटा भी पानी पीता है। गूगल ने अपनी 2023 पर्यावरण रिपोर्ट में बताया है कि उसने 2022 में 5.6 बिलियन गैलन पानी की खपत की। उसमें से अधिकांश यानी 5.2 बिलियन गैलन का उपयोग कंपनी के डेटा सेंटरों के लिए किया गया था। गूगल द्वारा पानी की खपत 2021 की तुलना में 20 फीसदी ज्यादा है। यह भी बता दें कि एक गैलन साढ़े चार लीटर के बराबर होता है।

दरअसल डेटा सेंटरों में हजारों - लाखों पीसी जैसी मशीनें होती हैं जिसमें डेटा स्टोर होता है। इन मशीनों को ठंडा करने के लिए पानी की जरूरत होती है। जितना ज्यादा डेटा प्रोसेस किया जाएगा, कंप्यूटर उतना ज्यादा गर्म होगा। उसे ठंडा रखने के लिए उतना ही ज्यादा पानी चाहिए होगा। जैसे-जैसे गूगल और आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस की होड़ में लगी अन्य टेक कंपनियां नए डेटा सेंटर बनाने की दौड़ में तेजी ला रही हैं, उनके द्वारा खर्च किए जाने वाले पानी की मात्रा और भी बढ़ेगी। गूगल अभी जिस पानी का उपभोग कर रहा है उसका अधिकांश हिस्सा ‘पीने योग्य’ है, यानी मशीनों को कूल रखने वाला पानी पीने योग्य होता है।।वैसे सिर्फ अकेला गूगल नहीं है जो इतना प्यासा है। फेसबुक की कम्पनी मेटा ने 2022 में 2.6 मिलियन क्यूबिक मीटर (लगभग 697 मिलियन गैलन) से अधिक पानी का उपयोग किया। चैटजीपीटी जैसे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस टूल लगते तो बहुत मज़ेदार हैं। इनकी होड़ भी लगी हुई है। आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस डेवलपमेंट में और भी ज्यादा कंप्यूटर और डेटा चाहिए। यानी और भी ज्यादा पानी। सो, अब डेटा खर्च करते वक्त पानी की याद जरूर कर लीजिएगा।



सिर्फ डेटा को ही क्यों कहें, बोतलबंद पानी बेचने वाली कंपनियों का भी वही हाल है। संयुक्तराष्ट्र की ही एक रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक बोतलबंद पानी की सालाना बिक्री 500 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी। यह सब पानी जमीन के अंदर से निकाला जाता है। अपने देश में ही पानी के बिजनेस वाली कंपनियां हर साल 1.33 करोड़ क्यूबिक मीटर भूजल जमीन से निकाल रही हैं। बोतल और पाउच बन्द पानी का बिजनेस को 11 हजार करोड़ रुपये के ऊपर का है।अब जरा पानी फ़िल्टर करने के बिजनेस पर नजर डालिए। अब तो आर ओ का ज़माना है, सामान्य फ़िल्टर तो शायद ही कहीं दिखाई दें। यही आर ओ मशीनें एक लीटर साफ पानी देने में पांच लीटर नाली में बहा देती हैं। ये सब हमेशा यूं हीं चलने वाला नहीं। एक दिन जब नल सूखेंगे तब क्या होगा?कहने को इस धरा का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी से भरा हुआ है ।लेकिन इसमें से सिर्फ तीन फीसदी हिस्सा ही पीने के काबिल है । इस तीन प्रतिशत में से भी दो प्रतिशत बर्फ और ग्लेशियर के रूप में है। इन स्थितियों के बाद भी लोग पानी की वकत को नहीं समझ पा रहे हैं। नदियां तो वैसे ही विषाक्त हो चुकी हैं। तालाब तो पट चुके हैं। पानी है कहाँ?

Shalini Rai

Shalini Rai

Next Story