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Jamnalal Bajaj Wiki: जमनालाल बजाज, जिनकी बनाई गई विरासत आज भी भारतीयों घरों में दिखती है

Bajaj Group Founder Kon The: जमनालाल बजाज का जन्म काशी का बास गांव में एक साधारण मारवाड़ी परिवार में हुआ था। बाद में उन्हें एक धनी व्यापारी सेठ बच्चराज के द्वारा गोद लिया गया और इस तरह वे बजाज परिवार के वारिस बने।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 12 Feb 2025 4:28 PM IST
Jamnalal Bajaj Wiki: जमनालाल बजाज, जिनकी बनाई गई विरासत आज भी भारतीयों घरों में दिखती है
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Jamnalal Bajaj (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Jamnalal Bajaj Kon The: भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधारों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले जमनालाल बजाज (Jamnalal Bajaj) का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। वे न केवल एक सफल उद्योगपति थे, बल्कि एक निस्वार्थ समाजसेवी और महात्मा गांधी के घनिष्ठ सहयोगी भी थे। उन्होंने अपने जीवन को देश, समाज और गरीबों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। 11 नवंबर 1889 को जन्मे जमनालाल बजाज ने 11 फरवरी 1942 को इस संसार को अलविदा कह दिया। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके जीवन के हर पहलू को विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे।

जमनालाल बजाज का जन्म राजस्थान (Rajasthan) के सीकर जिले के काशी का बास गांव में एक साधारण मारवाड़ी परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे अपने परिश्रम, लगन और उद्यमशीलता के लिए जाने जाते थे। उन्हें एक धनी व्यापारी सेठ बच्चराज के द्वारा गोद लिया गया और इस तरह वे बजाज परिवार के वारिस बने।

बचपन से ही वे समाज सेवा की ओर आकर्षित थे और उन्होंने गरीबों की सहायता करने, शिक्षा को बढ़ावा देने और सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कार्य करना शुरू किया।

संपत्ति का त्याग

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

एक बार की बात है, सेठ बच्छराज के परिवार को किसी शादी में जाना था। उन्होंने जमनालाल से कहा कि वो भी हीरे-पन्नों से जड़ा एक हार पहनकर आएं। जमनालाल ने मना कर दिया और इस बात पर दोनों में अनबन हो गई। अनबन के बाद जमनालाल घर छोड़कर चले गए। उस वक्त उनकी उम्र 17 साल थी।

बाद में उन्होंने एक स्टाम्प पेपर पर पिता को यह लिखकर भेजा कि उन्हें उनकी संपत्ति में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने लिखा, 'मैं कुछ लेकर नहीं जा रहा हूं। तन पर जो कपड़े थे, बस वही पहने जा रहा हूं। आप निश्चिंत रहें। मैं जीवन में कभी आपका एक पैसा भी लेने के लिए अदालत नहीं जाऊंगा, इसलिए यह कानूनी दस्तावेज बनाकर भेज रहा हूं।'

बाद में किसी तरह जमनालाल को ढूंढ़ा गया और घर आने के लिए मनाया गया। जमनालाल घर आ गए, लेकिन वे संपत्ति का त्याग कर चुके थे। लिहाजा जब विरासत में उन्हें संपत्ति मिली, तो उन्होंने उसका दान करना शुरू कर दिया। जमनालाल जीवनभर खुद को ट्रस्टी की तरह ही मानते रहे।

व्यवसायिक जीवन और उद्योगों का विकास

जमनालाल बजाज को व्यापारिक क्षेत्र में अपार सफलता मिली। उन्होंने कपड़ा, चीनी, सीमेंट और वित्तीय क्षेत्रों में निवेश किया और बजाज समूह को एक प्रतिष्ठित व्यावसायिक घराने के रूप में स्थापित किया। उनका व्यापार केवल धन कमाने तक सीमित नहीं था, बल्कि वे इसे समाज सेवा का एक माध्यम मानते थे। उन्होंने अपने कर्मचारियों की भलाई और उनके अधिकारों के लिए भी कार्य किया।

1920 के दशक में जमनालाल बजाज ने शुगर मिल के जरिए बजाज ग्रुप की शुरुआत की। हालांकि, इसकी पूरी कमान उनके बड़े बेटे कमलनयन बजाज ने संभाली। जमनालाल आजादी की लड़ाई में लगे रहे। आज के समय में बजाज ग्रुप में 25 से ज्यादा कंपनियां हैं, जिनका सालाना टर्नओवर 280 अरब रुपए से ज्यादा है।

महात्मा गांधी के साथ संबंध

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जमनालाल गांधीजी से बहुत प्रभावित थे। 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधीजी ने जब साबरमती में आश्रम बनाया, तो जमनालाल उनके साथ आश्रम में ही रहे। 1920 में नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। उसमें जमनालाल ने गांधी जी के सामने अजीब सा प्रस्ताव रख दिया। उन्होंने कहा कि वे उनका 5वां बेटा बनना चाहते हैं और गांधीजी को अपने पिता के रूप में गोद लेना चाहते हैं।

शुरुआत में तो यह प्रस्ताव सुनकर गांधीजी को बहुत आश्चर्य हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने जमनालाल को अपना 5वां बेटा मान ही लिया। 16 मार्च 1922 को साबरमती जेल से गांधीजी ने जमनालाल को भेजी एक चिट्ठी में लिखा, 'तुम 5वें पुत्र तो बने ही हो, लेकिन मैं योग्य पिता बनने की कोशिश कर रहा हूं।'

गांधीजी के आंदोलन में भागीदारी

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

गांधीजी के असहयोग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन और नमक सत्याग्रह में जमनालाल बजाज ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन में अपनी पूरी शक्ति झोंक दी और कई बार जेल भी गए। वे गांधीजी के साथ साबरमती आश्रम में रहे और उनके आदर्शों को अपनाने का प्रयास किया।

वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना

महात्मा गांधी की प्रेरणा से उन्होंने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की, जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना। गांधीजी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष इसी आश्रम में बिताए।

सामाजिक सुधार और योगदान

जमनालाल बजाज केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अनेक सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में सुधार लाने का प्रयास किया।

अस्पृश्यता उन्मूलन

भारत में जाति व्यवस्था और छुआछूत जैसी कुरीतियों के खिलाफ जमनालाल बजाज ने पुरजोर संघर्ष किया। उन्होंने मंदिरों के द्वार सभी के लिए खुलवाने के प्रयास किए और हरिजनों को समान अधिकार दिलाने के लिए कार्य किया। उनके द्वारा स्थापित कई मंदिरों में सभी जातियों के लोगों को प्रवेश की अनुमति थी।

शिक्षा का प्रसार

जमनालाल बजाज ने शिक्षा को समाज सुधार का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम माना। उन्होंने कई विद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की, ताकि गरीब और वंचित वर्गों को भी शिक्षा का अवसर मिले। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा को भी बढ़ावा दिया और लड़कियों के लिए विशेष विद्यालय खुलवाए।

स्वदेशी और खादी आंदोलन

महात्मा गांधी के स्वदेशी और खादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में जमनालाल बजाज ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने स्वयं खादी धारण की और अपने उद्योगों में भी खादी और स्वदेशी वस्त्रों का उत्पादन बढ़ाया। उन्होंने लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया।

ग्राम सुधार और पंचायती राज

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जमनालाल बजाज ने ग्रामीण विकास और स्वशासन को बढ़ावा दिया। उन्होंने कई गांवों में स्वच्छता अभियान, शिक्षा अभियान और स्वास्थ्य सेवाओं की शुरुआत की। उन्होंने पंचायत प्रणाली को मजबूत करने के लिए भी काम किया।

राजनीतिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

स्वतंत्रता संग्राम में जमनालाल बजाज की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। वे कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे और उन्होंने कई आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सविनय अवज्ञा आंदोलन

1930 में जब महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह की शुरुआत की, तब जमनालाल बजाज ने इसमें सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने स्वयं नमक कानून तोड़ा और कई बार जेल गए।

कांग्रेस में योगदान

एक उद्योगपति होने के बावजूद, जमनालाल बजाज का झुकाव सामाजिक सेवा और स्वतंत्रता संग्राम की ओर अधिक था। 1921 में ऑल इंडिया तिलक मेमोरियल फंड इकट्ठा करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने देश में खादी को लोकप्रिय बनाने के लिए 1 करोड़ रुपये खर्च किए और स्वयं 25 लाख रुपये दान दिए। इसके अलावा, वे दो दशकों तक कांग्रेस के नियमित वित्तीय समर्थक और बैंकर बने रहे।

व्यक्तिगत जीवन और मूल्यों का पालन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

जमनालाल बजाज ने अपने व्यक्तिगत जीवन में भी उच्च नैतिक मूल्यों का पालन किया। उन्होंने सादगी, अहिंसा और त्याग को अपनाया और समाज के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया।उनका परिवार भी सामाजिक कार्यों में संलग्न रहा और उनके पुत्रों ने भी उनके आदर्शों को अपनाया।

ब्रिटिश अधिकारियों की अवहेलना

जमनालाल बजाज ने ब्रिटिश अधिकारियों के निर्देशों का पालन करने से इनकार कर दिया। वे एक समाज सुधारक थे जिन्होंने अपने विचारों को केवल कहने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन पर अमल भी किया। उन्होंने अपने घर में पर्दा प्रथा को समाप्त किया और अपने परिवार द्वारा स्वामित्व वाले मंदिर के द्वार हरिजनों (अछूतों) के लिए खोल दिए। यह भारत का पहला मंदिर था जिसने ऐसा किया।

स्वतंत्रता संग्राम और जेल यात्रा

एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, जमनालाल बजाज ने 'सी' श्रेणी के कैदी का दर्जा पाने के लिए लंबी जेल की सजा भुगती। वे एक 'व्यापारी राजकुमार' थे जिन्होंने सादगी भरा जीवन जिया और निम्न मध्यम वर्ग की तरह अपना जीवनयापन किया।

11 फरवरी 1942 को जमनालाल बजाज का निधन हो गया। उनके जाने के बाद, उनकी पत्नी जानकी देवी ने स्वयं को पूरी तरह देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया। वे संत विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रहीं और समाज सेवा के कार्यों में योगदान देती रहीं।



Shreya

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