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Baba Neem Karoli Mahasamadhi: क्या हुआ था जब महासमाधि में गए थे बाबा नीम करोली?
Baba Neem Karoli Mahasamadhi Ki Kahani: बाबा ने 11 सितंबर 1973 को अनंत चतुर्दशी के दिन महासमाधि ली थी। उस वक्त दुनिया के कोने-कोने में उनके भक्तों में शोक की लहर दौड़ पड़ी थी।
Baba Neem Karoli Mahasamadhi: उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित कैंची धाम मंदिर (Kainchi Dham) देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में बहुत प्रसिद्ध है। दूर-दूर से लोग यहां नीम करोली बाबा (Baba Neem Karauri) के दर्शन करने आते हैं। नीम करोली बाबा की ख्याति विश्वभर में फैली हुई है। बड़े-बड़े सेलिब्रिटी, बिजनेसमैन, विदेशी लोग उनके भक्त हैं। बाबा नीम करोली 20वीं सदी के महान संतों में से एक हैं। वह हनुमान जी के परम भक्त थे, जो आज भी अपने चमत्कारों के लिए जाने जाते हैं। अनुयायी तो उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते हैं।
बाबा ने 11 सितंबर 1973 को अनंत चतुर्दशी (Ananta Chaturdashi) के दिन महासमाधि ली थी। उस वक्त दुनिया के कोने-कोने में उनके भक्तों में शोक की लहर दौड़ पड़ी थी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिस दिन नीम करोली बाबा ने समाधि ली, उस दिन क्या हुआ था।
कौन थे बाबा नीम करोली (Baba Neem Karoli Ki Kahani)
सबसे पहले तो जान लीजिए नीम करोली बाबा के बारे में कुछ जरूरी बातें। बाबा का जन्म (Baba Neem Karoli Birth Place) उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में 1900 के करीब एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम लक्ष्मण नारायण शर्मा था। वह बजरंगबली के परमभक्त थे। उन्हें कलयुग में हनुमान जी का अवतार भी कहा जाता है। भक्त उनको भक्त लक्ष्मण दास, नीम करोली बाबा, तिकोनिया वाले बाबा और तलईया बाबा जैसे नामों से जानते हैं।
बाबा के माता-पिता ने मात्र 11 साल की ही उम्र में उनकी शादी कर दी थी, लेकिन साधु बनने की वजह से उन्होंने घर त्याग दिया था। हालांकि उनके पिता इस फैसले के खिलाफ थे। इसके बाद वह पिता के अनुरोध पर वैवाहिक जीवन जीने घर वापस लौट आए। वह दो बेटे और एक बेटी के पिता बनें।
कब हुई नीम करोली आश्रम की स्थापना
बाबा नीम करोली ने साल 1964 में कैंची धाम की स्थापना की थी। वह 1961 में पहली बार यहां आए थे और अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर यहां आश्रम बनाने का विचार किया था। आज भी इस धाम में देश-विदेश से लोग आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां श्रद्धापूर्वक की गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती है। इस मंदिर में मांगी हर मुराद बाबा पूरी करते हैं।
कब ली थी महासमाधि
11 सितंबर 1973, वो दिन था जब बाबा नीम करोली ने महासमाधि ली थी। जैसे ही देश-विदेश में स्थित बाबा के भक्तों को ये खबर हुई वह उनके अंतिम दर्शन के लिए जुट गए। अपनी मृत्यु से पहले बाबा ने भक्तों को कुछ संकेत भी दिए थे। कैंची धाम के भक्तों के अनुसार, जब महाराज जी अंतिम बार वृंदावन के लिए रवाना हो रहे थे तो उन्होंने धाम के सभी मंदिरों में जाकर प्रणाम किया। बाद में उन्होंने मां दुर्गा और हनुमान जी के मंदिर के सामने अपना कंबल फेंक दिया, जिसे बाद में भक्तों ने उन्हें वापस ओढ़ाया। यह कुछ आगामी शरीर त्याग के संकेत थे।
9 सितंबर 1973 को नीम करोली बाबा ने कैंची धाम से वृंदावन जाने का निर्णय लिया। लेकिन इस बार उन्होंने यात्रा के लिए जीप की जगह रेलगाड़ी से जाने का फैसला किया। जो आज भी उनके भक्तों के लिए एक रहस्य बना रहा। 11 सितंबर 1973 की रात वह वृंदावन स्थित आश्रम में थे। तभी उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई और इसके बाद उन्हें तुरंत रामकृष्ण मिशन अस्पताल में अस्पताल ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगाया लेकिन बाबा ने इसे खींचकर फेंक दिया और कहा, 'यह सब बेकार है।'
तुलसी और गंगाजल ग्रहण करके त्याग दिया शरीर
इसके बाद नीम करोली बाबा ने अपने भक्तों से कहा कि अब मेरे जाने का समय आ गया है। उन्होंने भक्तों से तुलसी और गंगाजल मंगवाकर इसे ग्रहण किया। तीन बार जगदीश का नाम लेकर रात करीब 01:15 पर अपने भौतिक शरीर को त्याग दिया। जिस दिन बाबा ने अपने शरीर का त्याग किया, उस दिन अनंत चतुर्दशी थी। इसलिए हर साल 11 सितंबर को बाबा नीम करोली की पुण्यतिथि मनाई जाती है।
शरीर त्याग करने के बाद बारी आई नीम करोली बाबा के अंतिम संस्कार की। इसे लेकर भक्तों में मतभेद था, क्योंकि कुछ का कहना था कि बाबा के शरीर को जल में विसर्जित किया जाए तो कुछ समाधि के पक्ष में थे। लेकिन बाद में फैसला हुआ कि बाबा के शरीर का अग्नि संस्कार होगा। लेकिन जैसे ही अंतिम संस्कार के लिए नीम करोली बाबा का शरीर आश्रम में लाया गया, वैसे ही अचानक तेज तूफान और बारिश ने दस्तक दी। बारिश और तूफान इतना तेज था कि भक्तों को कुछ नजर नहीं आ रहा था। लेकिन श्री सिद्ध मां (Shri Siddhi Maa) के कदम आश्रम में पड़ते ही तूफान शांत हो गया। श्री सिद्धि मां उनकी शिष्या थी।
अतिम संस्कार के दौरान हुए दिव्य दर्शन
इसके बाद चंदन की लकड़ी पर बाबा के शरीर को रखकर अंतिम यात्रा निकाली गई और सभी भक्तों ने उनके अंतिम दर्शन किए। ऐसा कहा जाता है कि जब बाबा के शरीर को अग्नि दी गई तो कुछ भक्तों ने देखा कि नीम करोली बाबा राम-लक्ष्मण के बीच खड़े थे और हनुमान जी उनकी परिक्रमा कर रहे थे। अंतिम संस्कार होने के बाद उनके अवशेषों को कई तीर्थ स्थलों में विसर्जित किया गया। जबकि कुछ अवशेषों को उनके अलग-अलग आश्रमों में भेजा गया, जहां पर बाद में उनकी मूर्तियां स्थापित की गईं।