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Karni Sena Ka Itihas: करनी सेना... स्वाभिमान की चिंगारी से जनआंदोलन तक का सफर
Karni Sena History Wiki in Hindi: श्री राजपूत करणी सेना की स्थापना 2006 में राजस्थान के राजसमंद जिले के एक छोटे से गांव सोकड़ा में हुई थी। इस संगठन की नींव लोकेंद्र सिंह कालवी ने रखी थी,
Karni Sena History Wiki in Hindi (Photo - Social Media)
Karni Sena Ka Itihas: भारतीय इतिहास स्वाभिमान, संस्कृति और अस्मिता की रक्षा में खड़े हुए आंदोलनों से भरा पड़ा है। जब भी किसी समुदाय की अस्मिता पर आंच आई है, तब उस आंच को बुझाने नहीं, बल्कि और भड़का देने के लिए कुछ चिंगारियां उठ खड़ी हुई हैं। ऐसी ही एक चिंगारी थी करणी सेना, जिसने राजपूत गौरव और संस्कृति की रक्षा के लिए एक जनआंदोलन का रूप ले लिया। यह न केवल एक संगठन है, बल्कि एक विचारधारा बन चुकी है, जो अपने इतिहास, परंपराओं और सम्मान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। आइए जानते हैं करणी सेना की स्थापना, उद्देश्य और इसके महत्व के बारे में विस्तार से -
करणी सेना क्या है?
करणी सेना एक सामाजिक संगठन है जो राजपूत समाज के अधिकारों, गौरव और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए कार्य करता है। इसका पूरा नाम श्री राजपूत करणी सेना है। यह संगठन राजस्थान में स्थापित हुआ और बाद में पूरे भारत में इसका प्रभाव फैलता गया। यह संगठन समाज के भीतर जातीय अस्मिता, सामाजिक न्याय और ऐतिहासिक तथ्यों की रक्षा के लिए जाना जाता है।

विशेषकर जब भी फिल्मों, किताबों या अन्य किसी भी माध्यम से राजपूत इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया, करनी सेना ने मुखर होकर विरोध किया।
करणी सेना की स्थापना कब और कैसे हुई?
श्री राजपूत करणी सेना की स्थापना 2006 में राजस्थान के राजसमंद जिले के एक छोटे से गांव सोकड़ा में हुई थी। इस संगठन की नींव लोकेंद्र सिंह कालवी ने रखी थी, जो एक प्रभावशाली राजपूत नेता हैं। वे राजस्थान के पूर्व कैबिनेट मंत्री कल्याण सिंह कालवी के पुत्र हैं।
स्थापना का मूल उद्देश्य
राजपूत समुदाय के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करना और युवा पीढ़ी में जागरूकता फैलाना करणी सेना की स्थापना का मूल उद्देश्य था।

नामकरण और प्रेरणा
'करणी सेना' नाम राजस्थान की एक प्रसिद्ध देवी माँ करणी के नाम पर रखा गया, जिन्हें राजपूतों की कुलदेवी माना जाता है। माँ करणी को शक्ति, साहस और रक्षा की देवी के रूप में पूजा जाता है। संगठन का नाम इस देवी के नाम पर रखने से उसमें धार्मिक और भावनात्मक जुड़ाव भी आ गया।
करणी सेना के गठन के पीछे कई उद्देश्य
राजपूत गौरव की रक्षा
किसी भी माध्यम से यदि राजपूत इतिहास को विकृत किया गया तो उसका विरोध करना और राजपूत समाज के लिए राजनीतिक हिस्सेदारी सुनिश्चित करना रहा है।

इसी के साथ इस सेना की स्थापना के पीछे का मुख्य उद्देश्य पूरे राजपूत समाज को एक मंच पर लाकर सबको संगठित करना रहा है। देश और समाज के उत्थान के प्रति सामाजिक सरोकारों को लेकर आगे बढ़ना, शिक्षा, रोजगार और संस्कृति के प्रति युवाओं को जागरूक बनाना इनके संगठन का मूल मंत्र माना जाता है। इसके अतिरिक्त आर्थिक रूप से पिछड़े राजपूतों के लिए आरक्षण की मांग आदि प्रमुख मुद्दे रहें हैं।
करणी सेना से जुड़ी प्रमुख घटनाएं और आंदोलन
करणी सेना द्वारा समय-समय पर ऐतिहासिक घटनाचक्रों के साथ छेड़ छाड़ को लेकर बड़े स्तर पर अब तक कई आंदोलन किए हैं -
1. फिल्म जोधा अकबर का विरोध (2008)
करणी सेना ने पहला बड़ा विरोध 2008 में फिल्म जोधा अकबर के खिलाफ किया था। उनका आरोप था कि इस फिल्म में जोधा बाई और अकबर के रिश्ते को ऐतिहासिक रूप से गलत तरीके से दर्शाया गया है।

इसके विरोध में राजस्थान में फिल्म के कई शो बंद करवा दिए गए और कुछ स्थानों पर हिंसक प्रदर्शन भी हुए।
2. फिल्म पद्मावत विवाद (2017-2018)
करणी सेना का सबसे बड़ा और चर्चित आंदोलन संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत (पूर्व में पद्मावती) के खिलाफ था। संगठन का दावा था कि फिल्म में रानी पद्मिनी का चरित्र गलत तरीके से दिखाया गया है और अलाउद्दीन खिलजी के साथ उनके संबंधों को तोड़-मरोड़ कर दिखाया गया है। इस विरोध में:
फिल्म के सेट को राजस्थान और महाराष्ट्र में नुकसान पहुंचाया गया। संजय लीला भंसाली पर हमला हुआ। करणी सेना ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किए।

फिल्म रिलीज को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया।
इस आंदोलन ने करनी सेना को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, लेकिन इसके साथ हिंसा, जातीय कट्टरता और असहिष्णुता के आरोप भी लगे।
आरक्षण आंदोलन
करणी सेना ने समय-समय पर राजपूत समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की भी मांग उठाई है। इन आंदोलनों का उद्देश्य सरकारी नौकरियों और शिक्षा में हिस्सेदारी सुनिश्चित करना था।
राजनीतिक विरोध और समर्थन
कई बार करणी सेना ने चुनावों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के खिलाफ या पक्ष में समर्थन जताया है।

हालांकि, संगठन का कहना है कि वह किसी दल विशेष से नहीं जुड़ा है, बल्कि केवल राजपूत समाज के हितों की बात करता है।
आलोचनाएं और विवाद
करणी सेना जितना प्रसिद्ध हुई, उतनी ही विवादों में भी रही। कुछ प्रमुख आलोचनाएं इस प्रकार हैं:-
हिंसा का सहारा लेना
फिल्म विरोधों के दौरान हुई हिंसा के कारण करनी सेना पर कट्टरता और अराजकता के आरोप लगे।
इतिहास का राजनीतिकरण:
कुछ इतिहासकारों ने इस संगठन पर इतिहास को अपनी सुविधा अनुसार प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। करणी सेना के भीतर समय-समय पर गुटबाजी और नेतृत्व को लेकर मतभेद सामने आए। इसके अलावा आलोचकों का मानना है कि कुछ आंदोलनों का उद्देश्य केवल मीडिया में प्रसिद्धि पाना था।

हालांकि करणी सेना की शुरुआत राजस्थान से हुई थी, लेकिन पद्मावत विवाद के बाद यह संगठन मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा जैसे राज्यों में भी सक्रिय हो गया। आज कई राज्यों में करणी सेना की शाखाएं हैं जो स्थानीय स्तर पर समाज के मुद्दों को उठाती हैं।
करणी सेना को लेकर समाज में भूमिका
करणी सेना को लेकर समाज में मिला-जुला दृष्टिकोण है। एक ओर लोग इसे राजपूत अस्मिता का रक्षक मानते हैं, तो दूसरी ओर इसे हिंसक और उग्र संगठन के रूप में भी देखा जाता है। फिर भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि करनी सेना ने समाज में कुछ गंभीर विमर्श खड़े किए हैं कि, इतिहास की सत्यता और उसकी प्रस्तुति का अधिकार किसे है? क्या समाज के भावनात्मक मुद्दों पर फिल्मों को संवेदनशील होना चाहिए?
क्या जातीय संगठनों का स्थान लोकतांत्रिक व्यवस्था में होना चाहिए?
करणी सेना का नेतृत्व और संरचना
लोकेंद्र सिंह कालवी इस संगठन के सबसे प्रमुख और चेहरा रहे नेता थे। हालांकि, समय के साथ कई अन्य नेता भी उभरे और नेतृत्व में परिवर्तन हुआ। अब अलग-अलग राज्यों में इसकी अलग-अलग इकाइयां सक्रियता से काम कर रहीं हैं।
वर्तमान में करणी सेना उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रही है, विशेषकर राणा सांगा पर समाजवादी पार्टी (सपा) सांसद रामजीलाल सुमन के विवादास्पद बयान के बाद। 12 अप्रैल 2025 को आगरा में आयोजित 'रक्त स्वाभिमान सम्मेलन' में करणी सेना ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया, जिसमें तलवारें और लाठियां लहराई गईं, जिससे कानून-व्यवस्था पर सवाल उठे।

इस घटनाक्रम के बीच, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने करणी सेना को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जोड़ते हुए आरोप लगाया कि भाजपा करणी सेना का उपयोग अपनी राजनीतिक रणनीतियों के लिए कर रही है। इसके अतिरिक्त, करणी सेना ने बिहार विधानसभा चुनावों में भाग लेने की घोषणा की है, जिससे क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरणों में बदलाव की संभावना है।
करणी सेना एक भावनाओं से बंधा जनआंदोलन
करणी सेना केवल एक संगठन नहीं है, यह उन भावनाओं का प्रतीक है जो अपने इतिहास और अस्मिता को किसी भी कीमत पर मिटने नहीं देना चाहतीं। जहां एक ओर इसने कई बार उग्रता दिखाई, वहीं दूसरी ओर समाज को यह भी दिखाया कि अपने गौरव और पहचान के लिए संघर्ष करना कोई अपराध नहीं है।
हालांकि किसी भी आंदोलन की सफलता उसकी संवेदनशीलता, संवैधानिकता और संयम में होती है। अगर करनी सेना आने वाले समय में अपनी ऊर्जा को शिक्षा, रोजगार, सामाजिक उत्थान जैसे मुद्दों पर सकारात्मक दिशा में लगाती है तो यह वास्तव में राजपूत समाज ही नहीं, पूरे भारत के लिए एक प्रेरणा बन सकती है।