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Kedarnath Mandir: केदारनाथ मंदिर की एक अनसुलझी संहिता

Kedarnath Mandir: आज का विज्ञान बताता है कि, केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है।

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Newstrack Network
Published on: 12 March 2023 5:36 PM IST
Kedarnath Mandir
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Kedarnath Mandir (Pic: Social Media)

Kedarnath Mandir: केदारनाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया, इसके बारे में कई बातें कही जाती हैं। पांडवों से लेकर आदि शंकराचार्य तक, लेकिन हम इसमें नहीं जाना चाहते। आज का विज्ञान बताता है कि, केदारनाथ मंदिर शायद 8वीं शताब्दी में बना था। यदि आप ना भी कहते हैं, तो भी यह मंदिर कम से कम 1200 वर्षों से अस्तित्व में है। 21वीं सदी में भी केदारनाथ की भूमि भवन शिल्प के लिए सही नहीं है। एक ओर 22,000 फीट ऊँची केदारनाथ पहाड़ी, दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊँची कराचकुंड और तीसरी तरफ 22,700 फीट ऊँचा भरतकुंड है। इन तीन पर्वतों से होकर बहने वाली पाँच नदियाँ हैं मंदाकिनी, मधुगंगा, चिरगंगा, सरस्वती और स्वरंदारी।

इनमें से कुछ पुराण में लिखे गए हैं। यह क्षेत्र "मंदाकिनी नदी" का एकमात्र भूखंड है। भवन शिल्प कलाकृति कितनी गहरी रही होगी। ऐसे स्थान पर भवन कलाकृति बनाना, जहाँ ठंड के दिनों में भारी मात्रा में बर्फ हो और बरसात के मौसम में बहुत तेज गति से पानी बहता हो। आज भी आप वाहन से उस स्थान तक नहीं जा सकते जहाँ आज "केदारनाथ मंदिर" है। इसे ऐसे स्थान पर क्यों बनाया गया? इसके बिना 100-200 नहीं तो 1000 साल से अधिक समय तक ऐसी विकट, प्रतिकूल परिस्थितियों में मंदिर कैसे बनाया जा सकता है?

हम सभी को कम से कम एक बार यह सोचना चाहिए। वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि, यदि मंदिर 10वीं शताब्दी में पृथ्वी पर होता, तो यह "हिम युग" की एक छोटी अवधि में होता। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी, देहरादून ने केदारनाथ मंदिर की चट्टानों पर लिग्नोमैटिक डेटिंग का परीक्षण किया। यह "पत्थरों के जीवन" की पहचान करने के लिए किया जाता है। परीक्षण से पता चला कि मंदिर 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी के मध्य तक पूरी तरह से बर्फ में दब गया था। हालांकि, मंदिर के निर्माण में कोई हानि नहीं हुई।

2013 में केदारनाथ में आई विनाशकारी बाढ़ को सभी ने देखा होगा। इस अवधि के दौरान औसत से 375% अधिक वर्षा हुई थी। आगामी बाढ़ में "5748 लोग" (सरकारी आंकड़े) मारे गए और 4200 गाँवों को क्षति हुई। भारतीय वायुसेना ने 1 लाख 10 हजार से ज्यादा लोगों को एयरलिफ्ट किया। लेकिन इतने भीषण बाढ़ में भी केदारनाथ मंदिर का पूरा ढाँचा किंचित मात्र भी प्रभावित नहीं हुआ। भारतीय पुरातत्व सोसायटी के अनुसार, बाढ़ के उपरांत भी मंदिर के पूरे ढाँचे के ऑडिट में 99 फीसदी मंदिर पूरी तरह सुरक्षित है।

2013 की बाढ़ और इसकी वर्तमान स्थिति के दौरान निर्माण को कितनी क्षति हुई थी, इसका अध्ययन करने के लिए "आईआईटी मद्रास" ने मंदिर पर "एनडीटी परीक्षण" किया। उन्होंने यह भी कहा कि, मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित और सुदृढ़ है। यदि मंदिर दो अलग-अलग संस्थानों द्वारा आयोजित एक बहुत ही "वैज्ञानिक और तकनीकी परीक्षण" में उत्तीर्ण नहीं होता है, तो आपको सबसे अच्छा क्या समझ आता जो यह ब्लॉग कहता है?

1200 साल बाद, आज अगर आप तीर्थाटन पर वहाँ जाते हैं तो जहाँ उस क्षेत्र में आप की आवश्यकता का सब कुछ ले जाया जाता है, वहाँ एक भी ढाँचा खड़ा नहीं होता है। यह मंदिर मन ही मन वहीं खड़ा है और खड़ा ही नहीं, बहुत सुदृढ़ है। इसके पीछे जिस विधि से इस मंदिर का निर्माण किया गया है, उसे माना जा रहा है। जिस स्थान का चयन किया गया है। आज विज्ञान कहता है कि, मंदिर के निर्माण में जिस पत्थर और संरचना का उपयोग किया गया है, उसी कारण यह मंदिर इस बाढ़ में बच पाया।

यह मंदिर "उत्तर-दक्षिण" की दिशा में बनाया गया है। ध्यान दीजिए केदारनाथ को "दक्षिण-उत्तर" बनाया गया है जबकि भारत में लगभग सभी मंदिर "पूर्व-पश्चिम" हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि मंदिर "पूर्व-पश्चिम" होता तो पहले ही नष्ट हो चुका होता। या कम से कम 2013 की बाढ़ में तबाह हो जाता। लेकिन, इस दिशा की वजह से केदारनाथ मंदिर बच गया है।

दूसरी बात यह है कि, इसमें उपयोग किया गया पत्थर बहुत कठोर और टिकाऊ होता है। विशेष बात यह है कि, इस मंदिर के निर्माण के लिए उपयोग किया गया पत्थर वहाँ उपलब्ध नहीं है, तो जरा सोचिए कि, उस पत्थर को वहाँ कैसे ले जाया जा सकता था। उस समय इतना बड़ा पत्थर ढोने के लिए इतने उपकरण भी उपलब्ध नहीं थे। इस पत्थर की विशेषता यह है कि, 400 साल तक बर्फ के नीचे रहने के बाद भी इसके "गुणों" में कोई अंतर नहीं है। इसलिए, मंदिर ने प्रकृति के विध्वंस चक्र में भी अपनी शक्ति बनाए रखी है।

मंदिर के बाहर से लाए गए इन सुदृढ़ पत्थरों को बिना किसी सीमेंट के "एशलर" तरीके से एक साथ चिपका दिया गया है। इसलिए पत्थर के जोड़ पर तापमान परिवर्तन के किसी भी प्रभाव के बिना मंदिर की ताकत अभेद्य है। 2013 में, वीटा घलाई के माध्यम से मंदिर के पिछले हिस्से में एक बड़ी चट्टान फँस गई और पानी की धार विभाजित हो गई और मंदिर के दोनों किनारों का पानी अपने साथ सब कुछ ले गया। लेकिन, मंदिर और मंदिर में शरण लेने वाले लोग सुरक्षित रहे। जिन्हें अगले दिन भारतीय वायुसेना ने एयरलिफ्ट किया था।

सवाल यह है कि, आस्था पर विश्वास किया जाए या नहीं। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि, मंदिर के निर्माण के लिए स्थल, उसकी दिशा, वही निर्माण सामग्री और यहाँ तक कि, प्रकृति को भी ध्यान से चुना गया था, जो 1200 वर्षों तक अपनी संस्कृति और सुदृढ़ता को बनाए रखेगा। टाइटैनिक के डूबने के बाद, पश्चिमी लोगों ने अनुभव किया कि, कैसे "एनडीटी परीक्षण" और "तापमान" विनाशकारी ज्वार को मोड़ सकते हैं।

किंतु, हमारे पास उन पाश्चात्य देशों के वैज्ञानिकों के विचार हैं, पर यह हमारे देश में 1200 साल पहले किया गया था। क्या केदारनाथ वही ज्वलंत उदाहरण नहीं है? कुछ महीने बारिश में, कुछ महीने बर्फ में, और कुछ साल बर्फ में भी, उन पर हमला हुवा और वर्षा निरंतर अभी भी समुद्र तल से 3969 फीट ऊपर उस को कवर करती है। हम वहाँ प्रयुक्त विज्ञान की भारी मात्रा के बारे में सोचकर दंग रह गए हैं, जिसका उपयोग 6 फुट ऊँचे मंच के निर्माण के लिए किया गया है।

आज समस्त बाढ़ों के बाद हम एक बार पुनः केदारनाथ के उन वैज्ञानिकों के निर्माण के आगे नतमस्तक हैं, जिन्हें उसी भव्यता के साथ 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊँचा होने का सम्मान मिलेगा। यह एक उदाहरण है कि, वैदिक हिंदू धर्म और संस्कृति कितनी उन्नत थी। उस समय हमारे ऋषि-मुनियों यानि वैज्ञानिकों ने वास्तुकला, मौसम विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, आयुर्वेद में बहुत अधिक उन्नति की थी। आपकी एक गौरवशाली विरासत। विश्व के हित के लिए इसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।

(jayuttarakhandi की वेबसाइट से साभार)



Durgesh Sharma

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