Mehndipur Balaji Maharaj: पवित्र और चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजीमहराज की कथा

Mehndipur Balaji Maharaj: मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे "श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर" के नाम से जाना जाता है। भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का ताँता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं।

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Published on: 18 March 2023 4:28 PM GMT
Mehndipur Balaji Maharaj: पवित्र और चमत्कारिक मेहंदीपुर बालाजीमहराज की कथा
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File Photo of Mehndipur Balaji Maharaj (Pic: Social Media)

Mehndipur Balaji Maharaj: राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर कस्बे में बालाजी का एक अतिप्रसिद्ध तथा प्रख्यात मन्दिर है जिसे "श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर" के नाम से जाना जाता है। भूत प्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का ताँता लगा रहता है। तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं। सम्पूर्ण भारत से आने वाले लगभग एक हजार रोगी और उनके स्वजन यहाँ नित्य ही डेरा डाले रहते हैं।

बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें "घाटे वाले बाबा जी" भी कहा जाता है। इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है। यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मन्दिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है। इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है। इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है जिससे पवित्र जल की धारा निरंतर बह रही है।

यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है जिसे भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं। यह मूर्ति लगभग 1000 वर्ष प्राचीन है। किन्तु मन्दिर का निर्माण इसी सदी में कराया गया है। मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की। लेकिन वे असफ़ल रहे।

वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई। थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा। ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया। भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुँचे, जहां से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था।

ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका वजन करने लगा। लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता। कभी दो मन कम हो जाता। असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा। उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया।

इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया। यज्ञ हवन और ब्राह्मण भोज एवं धर्म ग्रन्थों का पाठ किया गया। एक बार फ़िर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई। यह ज्योति सारे विश्व का अंधकार दूर करने में सक्षम है। बालाजी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान ( भैरव ) की मूर्तियां भी हैं।

प्रेतराज सरकार जहां द्ण्डाधिकारी के पद पर आसीन हैं। वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर। यहां आने पर ही सामान्यजन को ज्ञात होता है कि भूत प्रेतादि किस प्रकार मनुष्य को कष्ट पहुँचाते हैं। किस तरह सहज ही उन्हें कष्ट बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुँचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है।

बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं। शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है । ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं। प्रसाद हमेशा थाली या दोने में रखकर दिया जाता है।

लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है। भूत प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर बड़बड़ाने लगते है । स्वतः ही वह हथकडी और बेड़ियों में जकड़ जाता है। कभी वह अपना सिर धुनता है। कभी जमीन पर लोट पोट कर हाहाकार करता है। कभी बालाजी के इशारे पर पेड़ पर उल्टा लटक जाता है। कभी आग जलाकर उसमें कूद जाता है ।

कभी फाँसी या सूली पर लटक जाता है। मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वतः ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं। अन्यथा समाप्त कर दिये जाते हैं। बालाजी उन्हें अपना दूत बना लेते हैं। संकट टल जाने पर बालाजी की ओर से एक दूत मिलता है जोकि रोग मुक्त व्यक्ति को भावी घटनाओं के प्रति सचेत करता रहता है।

बालाजी महाराज के मन्दिर में प्रातः और सायं लगभग चार चार घंटे पूजा होती है। पूजा में भजन आरतियों और चालीसों का गायन होता है। इस समय भक्तगण जहां पंक्तिबद्ध हो देवताओं को प्रसाद अर्पित करते हैं। वहीं भूत प्रेत से ग्रस्त रोगी चीखते चिल्लाते उलट पलट होते अपना दण्ड भुगतते हैं।

बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। क्ति-भाव से उनकी आरती, चालीसा, कीर्तन, भजन आदि किए जाते हैं। बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है।
पृथक रूप से उनकी आराधना - उपासना कहीं नहीं की जाती, न ही उनका कहीं कोई मंदिर है। वेद, पुराण, धर्म ग्रन्थ आदि में कहीं भी प्रेतराज सरकार का उल्लेख नहीं मिलता। प्रेतराज श्रद्धा और भावना के देवता हैं। कुछ लोग बालाजी का नाम सुनते ही चौंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूत-प्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहाँ जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी - जो बालाजी के प्रति भक्ति-भाव रखने वाला है, इन तीनों देवों की आराधना कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।
किसी ने सच ही कहा है—"नास्तिक भी आस्तिक बन जाते हैं, मेंहदीपुर दरबार में।" प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं। प्रेम-श्रद्धा से चढ़ा हुआ प्रसाद बाबा सहर्ष स्वीकार भी करते हैं।

कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव भगवान शिव के अवतार हैं। उनकी ही तरह भक्तों की थोड़ी सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं। भैरव महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल, डमरू, खप्पर तथा प्रजापति ब्रह्मा का पाँचवाँ कटा शीश रहता है। वे कमर में बाघाम्बर नहीं, लाल वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं। उनकी मूर्तियों पर चमेली के सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है।

शास्त्र और लोककथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन है, जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं। श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव, भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की आराधना करते हैं। भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं।

इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन, कीर्तन, आरती और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं। प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के बड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ा दिया करते हैं। सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूत-प्रेतादि उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं। वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं, जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है। कलियुग में बालाजी ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो अपने भक्त को सहज ही अष्टसिद्धि, नवनिधि तदुपरान्त मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।

(राधे-राधे जी वेबसाइट से साभार)

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