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Life Story: किसी को कुछ देने के लिए हैसियत नही दिल बड़ा होना चाहिए
कुछ देने के लिए आदमी की हैसियत नहीं , दिल बड़ा होना चाहिए। आपके पास क्या है ? और कितना है ? यह कोई मायने नहीं रखता ! आपकी सोच व नियत सर्वोपरि होना आवश्यक है।
Story: पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती एक सम्पन्न घर की महिला ने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया . "नहीं दीदी ! बदले में तीन साड़ियों से कम तो नही लूँगा ." बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा।
अरे भैया ! एक एक बार की पहनी हुई तो हैं.. ! बिल्कुल नये जैसी। एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं , मैं तो फिर भी दे रही हूँ। नहीं नहीं , तीन से कम में तो नहीं हो पायेगा ." वह फिर बोला।"
एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अर्द्ध विक्षिप्त महिला ने वहाँ आकर खाना माँगा।
आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपडों पर गयी.... अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी।
एकबारगी उस महिला ने मुँह बिचकाया। पर सुबह सुबह का याचक है सोचकर अंदर से रात की बची रोटियाँ मँगवायी। उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा -तो भैय्या ! क्या सोचा ? दो साड़ियों में दे रहे हो या मैं वापस रख लूँ ! "बर्तन वाले ने उसे इस बार चुपचाप टब पकड़ाया और दोनों पुरानी साड़ियाँ अपने गठ्ठर में बाँध कर बाहर निकला।
अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तो सामने नजर गयी। गली के मुहाने पर बर्तन वाला अपना गठ्ठर खोलकर उसकी दी हुई दोनों साड़ियों में से एक साड़ी उस अर्ध विक्षिप्त महिला को तन ढँकने के लिए दे रहा था !
हाथ में पकड़ा हुआ टब अब उसे चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था। बर्तन वाले के आगे अब वो खुद को हीन महसूस कर रही थी। कुछ हैसियत न होने के बावजूद बर्तन वाले ने उसे परास्त कर दिया था। वह अब अच्छी तरह समझ चुकी थी कि बिना झिकझिक किये उसने मात्र दो ही साड़ियों में टब क्यों दे दिया था।
कुछ देने के लिए आदमी की हैसियत नहीं , दिल बड़ा होना चाहिए। आपके पास क्या है ? और कितना है ? यह कोई मायने नहीं रखता ! आपकी सोच व नियत सर्वोपरि होना आवश्यक है। और ये वही समझता है जो इन परिस्थितियों से गुजरा हो।