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Loneliness: अकेलापन सताएं तो करें उपाएं

Loneliness: असल ज़िन्दगी में अकेलेपन का दंश हर रोज़ ज़हर पीने के बराबर है।

Preeti Mishra
Report Preeti MishraPublished By Vidushi Mishra
Published on: 12 March 2022 7:48 PM IST
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अकेलापन (फोटो-सोशल मीडिया)

Loneliness: 'अकेले हैं तो क्या गम है' ये लाइने सिर्फ गुनगुनाने तक ही ठीक लगती हैं। अगर असल ज़िन्दगी में ऐसे जीना पड़े तो अकेलेपन का दंश हर रोज़ ज़हर पीने के बराबर है। हमारी सामाजिक संगरचना ही ऐसी है जहाँ दो लोगों को पुरे जीवन के लिए शादी जैसे एक पवित्र बंधन में बांध कर रखा जाता है। जिसमें एक साथी दूसरे साथी के साथ ज़िन्दगी के खट्टे-मीठे अनुभव लेता हुआ ज़िन्दगी का सफर तय करता है।

शायद आप भी इस बात से सहमत होंगे कि जवानी से ज्यादा बुढ़ापे में अपने पार्टनर के साथ की ज्यादा जरुरत होती है। बुढ़ापा अपने आप में एक दौर है क्योंकि यहाँ आकर शरीर निर्बल और कमजोर हो जाता है।

बच्चे और रिश्तेदार भी आंखें चुराने लगते हैं। बमुश्किल किसी के पास बूढ़ों के साथ बैठ कर उनकी परेशानियां या उनकी बातें सुनने का वक़्त होता है। कई बार सामने वाले को पता ही नहीं चलता की सामने वाला बुजुर्ग अपने आप को सबसे कटा हुआ महसूस कर रहा है। वो अपनी दिल की बात ना किसी से कह पा रहें है और ना हीं कोई उसकी भावनाओं को समझ पा रहा है।

नहीं झेली जाती मानसिक कमजोरी

ऐसे में एक जीवनसाथी ही होता है जो एक दूसरे की पीड़ा ख़ुशी और अनकही बातों को बिना कहे आसानी से समझ जाता है। एक कहावत है कि बचपन गया खेल में, जवानी बीती काम में अब है बुढ़ापा चाहते हैं करना आराम पर नहीं चैन है शरीर और जान में, कोई तो समझों हमें भी हम भी हैं कतार में। यानि बुढ़ापे में शारीरिक कमजोरी तो झेली जा सकती है मगर मानसिक नहीं।

कुछ लोग ही खुशकिस्मत होते हैं जिनको अपने जीवन साथी का लम्बा साथ मिलता है। वहीं कुछ लोगों को ज़िन्दगी के सफर में अकेले ही आगे बढ़ना होता है। तो क्या ऐसे में सिर्फ परिवार या रिश्तेदारों का ही फ़र्ज़ बनता है कि अकेले रह गए साथी को अकेलेपन के दंश से बचाएं। या फिर समाज को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए।

दरअसल हम भागती हुई ज़िन्दगी के पीछे भाग रहें है। कोशिश यही रहती है की वक़्त से आगे निकल जाएँ। पर ऐसा संभव किसी के लिए नहीं होता। इस भाग-दौड़ और सारे सुख लेने के चक्कर में हम अपने मानवीय पहलु को भी खोते चले जा रहें हैं। हमे थोड़ा रुक कर यह सोचना होगा की आज अगर ये बूढ़े हुए है तो कल हमारा भी भविष्य यही होगा। सोच कर देखिये क्या आप ऐसे उपेक्षित जिंदगी जीना चाहेंगे? नहीं ना। तो आज से अपने बिजी शेडूयल से थोड़ा सा वक़्त बुजुर्गों को दीजिये। जरुरी नहीं है की ये बुज़ुर्ग सिर्फ आपके घर के ही हों।

आपको कहीं भी कोई भी परेशान, निराश और चुपचाप बैठे हुए कोई बुज़ुर्ग दिखें तो एकबारगी उनसे नज़र ना फेरे। हो सकता है आपके साथ बिताया हुआ 10 मिनट का ही समय उनके जीवन में एक नयी उम्मीद और ऊर्जा का संचार कर दें। याद रखिये अकेलापन या अपनी बात किसी को ना समझा पाना और किसी का उनको ना समझ का पाना डिप्रेशन और मानसिक उलझन की वजह बनता है। पुराने ज़माने में लोग इतने बड़े परिवार के साथ -साथ एक ऐसे समाज में रहते थे जहाँ सुबह शाम लोगों का आने -जाने का ताँता लगा रहता था।

मगर अब समय काफी बदल चुका है। लोगों के पास सब कुछ है सिवाये समय के। तो क्यों ना एक नई पहल की जाये। समाज में बढ़ते अकेलेपन और डिप्रेशन की समस्या को निकालने का प्रयास किया जाये। अपनों के साथ-साथ गैरों के भी दर्द को साझा करके एक प्यारा समाज बनाया जाये और तेजी से बढ़ती अकेलपन की महामारी को जड़ से ख़त्म करने की मुहिम चलायी जाये। याद रखिये हमेशा की कोई भी दिल से सिर्फ यही गुनगुनाना और जीना चाहता है कि हँसते -हँसते कट जाये रस्ते,,,,,,,ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहे........।



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Vidushi Mishra

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