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Mahatma Gandhi Ki Wife: क्यों कस्तूरबा गांधी को महात्मा गांधी जी की सच्ची सहयोगी माना गया है, जानिए उनकी अनसुनी कहानी

Kasturba Gandhi Ka Jivan Parichay: आइये जानते हैं कस्तूरबा गांधी के बारे में और क्यों उन्हें महात्मा गांधी जी की सच्ची सहयोगी माना जाता है।

Akshita Pidiha
Published on: 22 Feb 2025 2:51 PM IST
Mahatma Gandhi Ki Patni Kasturba Gandhi Biography
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Mahatma Gandhi Ki Patni Kasturba Gandhi Biography

Mahatma Gandhi Wife Kasturba Gandhi Biography: कस्तूरबा गांधी, जिन्हें प्रेमपूर्वक 'बा' के नाम से जाना जाता है, महात्मा गांधी की पत्नी और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थीं। उनका जीवन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण अध्यायों में से एक है। उन्होंने अपने पति के साथ कदम से कदम मिलाते हुए न केवल सामाजिक सुधारों में भाग लिया, बल्कि महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा और स्वच्छता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया।

प्रारंभिक जीवन कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर, गुजरात में एक समृद्ध व्यापारी परिवार में हुआ था। उनके पिता, गोकुलदास मकनजी, एक सफल व्यवसायी थे। गुजरात के काठियावाड़ जिले में एक संपन्न व्यापारी परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘गोकुलदास कपाड़िया’ और माता का नाम ‘व्रजकुंवरबा कपाड़िया’ था। यह परिवार गुजराती हिंदू व्यापारियों की मोधबनिया जाति से संबंधित था और तटीय शहर पोरबंदर में रहता था।कस्तूरबा का बचपन पारंपरिक गुजराती संस्कृति में बीता। 1882 में, मात्र 13 वर्ष की आयु में, उनका विवाह मोहनदास करमचंद गांधी से हुआ, जो बाद में महात्मा गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए।जब कस्तूरबा जी मात्र 13 वर्ष की थीं उस दौरान ही उनका विवाह गुजरात के पोरबंदर में ‘मोहनदास करमचंद गांधी’ से हुआ। बता दें कि कस्तूरबा गांधीजी से आयु में कुछ माह बढ़ी थी। कस्तूरबा गांधी का विवाह अल्प आयु में महात्मा गांधी से हो गया था, जिसके कारण उनकी औपचारिक शिक्षा पूरी नहीं हो सकी। हालांकि, शिक्षा के प्रति उनकी रुचि बनी रही और उन्होंने घर पर ही ज्ञान अर्जित किया। इस दौरान, महात्मा गांधी ने अपनी वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड की यात्रा की और अपनी शिक्षा पूरी की, जबकि कस्तूरबा गांधी ने अपने परिवार और सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वहन किया।


गांधी जी के साथ संबंध और पारिवारिक जीवन कस्तूरबा और महात्मा गांधी का विवाह उस समय की प्रचलित बाल विवाह प्रथा का हिस्सा था। शादी के शुरुआती वर्षों में कस्तूरबा एक पारंपरिक गृहिणी के रूप में रहीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने गांधी जी के विचारों और आदर्शों को आत्मसात करना शुरू किया। गांधी जी ने उनके जीवन में शिक्षा के महत्व को समझाया और कस्तूरबा ने पढ़ाई में रुचि दिखाई।जब महात्मा गांधी को वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाना था, तो कस्तूरबा ने अपने गहने बेचकर उनके शिक्षा खर्च के लिए धन जुटाया था। ऐसा कहा जाता है कि विदेश जाने से पहले तक गांधीजी घर पर ही कस्तूरबा को पढ़ाया करते थे, ताकि वे भी शिक्षित हो सकें।

कस्तूरबा गांधी ने न केवल एक पत्नी बल्कि एक सच्ची सहयोगी के रूप में महात्मा गांधी का साथ दिया। उन्होंने अपने चार पुत्रों—हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास—का पालन-पोषण किया और पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया।


दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष महात्मा गांधी के साथ कस्तूरबा 1893 में दक्षिण अफ्रीका गईं, जहां गांधी जी ने भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया था। यहां कस्तूरबा ने गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने फीनिक्स आश्रम में गांधी जी के साथ जीवनयापन किया और वहां महिलाओं और बच्चों को शिक्षित किया।

कस्तूरबा ने 1913 में दक्षिण अफ्रीका में 'भारतीय महिलाओं के मार्च' का नेतृत्व किया, जिसमें भारतीय महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई गई। इस आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार भी किया गया और जेल में कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका भारत लौटने के बाद कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। चाहे वह चंपारण सत्याग्रह हो, खेड़ा आंदोलन या फिर असहयोग आंदोलन—कस्तूरबा ने हर बार महिलाओं को संगठित कर उन्हें आंदोलनों में शामिल किया।


1930 में दांडी मार्च के दौरान भी कस्तूरबा ने नमक कानून के विरोध में भाग लिया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और कई बार जेल भी गईं।कस्तूरबा गांधी 'सविनय अवज्ञा आंदोलन', 'भारत छोड़ो आंदोलन' और अन्य स्वतंत्रता आंदोलनों में अग्रिम पंक्ति में रहीं। जब गांधीजी को हिरासत में लिया जाता, तो वे आंदोलनों की बागडोर संभालती थीं। उन्होंने 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया और लोगों में जोश भरा।

साबरमती आश्रम को लंबे समय तक संभालने के अलावा, कस्तूरबा गांव-गांव जाकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को जागरूक करती थीं। वे महिलाओं को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करतीं, शराब की दुकानों के सामने धरना देने, चरखा चलाने और खादी पहनने का आग्रह करती थीं। उनके निरंतर प्रयासों के चलते वे खादी का चेहरा बन गईं और स्वदेशी आंदोलन को नई दिशा दी।

सामाजिक सुधार और महिलाओं के अधिकार कस्तूरबा ने महिलाओं की शिक्षा, छुआछूत उन्मूलन, स्वच्छता अभियान और स्वास्थ्य सेवाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह गांधी जी के रचनात्मक कार्यों में शामिल रहीं और आश्रमों में महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए काम किया।


कस्तूरबा गांधी ने अपना पूरा जीवन देश सेवा और जनकल्याण को समर्पित कर दिया। जब वे 74 वर्ष की थीं, तब उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने के आरोप में पूना की यरवदा जेल में रखा गया।

कस्तूरबा गांधी का जीवन साहस, बलिदान और सेवा का प्रतीक था। उन्होंने महात्मा गांधी के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका जीवन आज भी महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है।

त्याग और समर्पण का उदाहरण

कस्तूरबा गांधी ने अपने जीवन में कई त्याग किए। उन्होंने अपने गहने, आरामदायक जीवन और यहां तक कि अपने धार्मिक लाभ भी त्याग दिए। उन्होंने अपने घर के दरवाजे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए खोल दिए और हर संभव सहायता प्रदान की।

जब महात्मा गांधी जेल में होते और उपवास करते, तो कस्तूरबा उनकी देखभाल करतीं। उन्होंने न केवल एक आदर्श पत्नी की भूमिका निभाई, बल्कि एक सशक्त स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी पहचान बनाई। 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लेने के कारण उन्हें भी अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ गिरफ्तार कर पुणे के 'आगा खान पैलेस' में कैद किया गया।

कस्तूरबा लंबे समय से हृदय रोग से पीड़ित थीं और जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता गया। लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें रिहा नहीं किया, जिससे उनका सही समय पर उपचार नहीं हो सका। अंततः 22 फरवरी 1944 को पूना के कारावास में उनका निधन हो गया।


22 फरवरी 1944 को, कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी की गोद में अंतिम सांस ली। मृत्यु से पहले उन्होंने कहा था, "मेरी मौत पर शोक मत मनाना। यह आनंद का अवसर होना चाहिए।"

23 फरवरी 1944 को आगा खान पैलेस में उनका अंतिम संस्कार किया गया। महात्मा गांधी तब तक वहीं बैठे रहे, जब तक चिता की आग बुझ नहीं गई।

गांधीजी ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था, "हर स्थिति में वह मुझसे आगे खड़ी थीं। उसने मुझे जगाए रखने और मेरी इच्छाएं पूरी करने में मेरी मदद की। वह मेरे सभी राजनीतिक संघर्षों में मेरे साथ रहीं और कभी भी कदम उठाने में नहीं हिचकीं। हालांकि आज के मानकों के अनुसार वह अशिक्षित थीं, लेकिन मेरे अनुसार वह सच्ची शिक्षा की आदर्श थीं।"

महात्मा गांधी के साथ उनका वैवाहिक जीवन 62 वर्षों का रहा। उनका जाना महात्मा गांधी और पूरे राष्ट्र के लिए एक गहरी क्षति थी। गांधीजी की मृत्यु से चार वर्ष पूर्व ही 'बा' ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके योगदान और त्याग की गाथा भारतीय इतिहास में अमर हो गई।।

कस्तूरबा गांधी की समाधि

कस्तूरबा गांधी की समाधि पुणे के येरवाड़ा स्थित 'आगा खान पैलेस' में स्थित है। इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण 1892 में सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान द्वितीय ने करवाया था। यहां महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और उनके अन्य सहयोगियों को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा नजरबंद रखा गया था।


कस्तूरबा गांधी की इस करुणा, त्याग और मातृत्व भावना ने उन्हें लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया। यही कारण है कि लोग उन्हें आदरपूर्वक 'बा' कहकर पुकारने लगे। उनका जीवन एक उदाहरण है कि कैसे एक साधारण महिला भी अपने साहस, प्रेम और सेवा के बल पर असाधारण बन सकती है.



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