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Justice: न्याय में देरी, क्या यह वास्तव में अन्याय के समान है? आइए समझते हैं!

Meaning of Justice Delayed is Justice Denied: न्याय में देरी एक गंभीर समस्या है और भारत में कई ऐसे चर्चित मामले रहे हैं, जिनमें न्याय मिलने में दशकों की देरी हुई।

Shivani Jawanjal
Published on: 15 March 2025 12:08 PM IST
Meaning of Justice Delayed is Justice Denied
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Meaning of Justice Delayed is Justice Denied (Image Credit-Social Media)

Meaning of Justice Delayed is Justice Denied: न्याय किसी भी लोकतांत्रिक समाज की आधारशिला है, जो केवल अपराध और दंड तक सीमित नहीं बल्कि नागरिक अधिकारों की रक्षा और सामाजिक संतुलन बनाए रखने का माध्यम भी है। त्वरित और निष्पक्ष न्याय कानून के शासन को सशक्त करता है और जनता का विश्वास बनाए रखता है। हालांकि, मुकदमों की अधिक संख्या, जटिल कानूनी प्रक्रियाएँ और संसाधनों की कमी न्याय में देरी का कारण बनती हैं, जिससे मामलों का निपटारा वर्षों तक लंबित रहता है। यह स्थिति प्रश्न उठाती है, "क्या न्याय में देरी अन्याय के समान है?" न्याय की धीमी प्रक्रिया न केवल पीड़ित बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करती है। इसलिए, न्याय में देरी के कारणों, प्रभावों और समाधान पर विचार करना आवश्यक है। इस लेख में हम न्याय में देरी के प्रमुख कारणों और प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

“न्याय में देरी, न्याय से वंचित करना" का अर्थ (Meaning of Quote)

"न्याय में देरी, न्याय से वंचित करना" (Justice delayed is justice denied) एक प्रसिद्ध कानूनी कहावत है, जिसका अर्थ है कि यदि किसी व्यक्ति को उचित समय पर न्याय नहीं मिलता, तो वह न्याय मिलने के बावजूद उसका लाभ नहीं उठा सकता। यह कथन न्यायिक प्रणाली की समयबद्धता की आवश्यकता को दर्शाता है।

जब किसी मामले का फैसला आने में वर्षों या दशकों का समय लग जाता है, तो पीड़ित व्यक्ति को होने वाली हानि की भरपाई असंभव हो जाती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित रखा जाता है और वर्षों बाद उसे न्याय मिलता है, तो वह उस न्याय का वास्तविक लाभ नहीं उठा सकता, क्योंकि उसकी परिस्थितियाँ बदल चुकी होती हैं।

इसके अलावा, जब अपराधियों को सजा मिलने में देरी होती है, तो इससे समाज में कानून और व्यवस्था के प्रति अविश्वास उत्पन्न होता है। अपराधी यह मानने लगते हैं कि वे कानूनी प्रक्रियाओं का लाभ उठाकर सजा से बच सकते हैं, जिससे अपराध दर बढ़ सकती है।

यह कथन केवल व्यक्तिगत न्याय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। यदि समाज के कमजोर और वंचित वर्गों को समय पर न्याय नहीं मिलता, तो यह सामाजिक असमानता को और बढ़ावा देता है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि न्याय प्रणाली तेज, कुशल और निष्पक्ष हो, ताकि हर व्यक्ति को समय पर न्याय मिल सके।

कथन का ऐतिहासिक उल्लेख(Historical reference of the statement)

"न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के बराबर है", इस वाक्यांश का पहला उल्लेख किसने किया, इसे लेकर अलग-अलग मत हैं। रिस्पेक्टफुली कोटेड: ए डिक्शनरी ऑफ़ कोटेशन्स (Respectfully Quoted: A Dictionary of Quotations) के अनुसार, इसका श्रेय विलियम इवर्ट ग्लैडस्टोन को दिया जाता है, जिन्होंने 1868 में इसे संसद में कहा था, लेकिन इसके पहले भी कई संदर्भ मौजूद हैं।

ऐतिहासिक रूप से, यह विचार पिरकेई एवोट, मैग्ना कार्टा (1215), और फ्रांसिस बेकन (1617) जैसे विभिन्न ग्रंथों और व्यक्तियों के कार्यों में मिलता है। विलियम पेन और मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने भी इस अवधारणा को दोहराया।

आधुनिक न्याय प्रणाली में, अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश वॉरेन ई. बर्गर (1970) ने न्याय में देरी को सामाजिक विश्वास और व्यवस्था के लिए हानिकारक बताया। विलंबित न्याय प्रणाली लोगों में निराशा और असुरक्षा की भावना पैदा कर सकती है।

समाधान के रूप में, वैकल्पिक विवाद समाधान, प्रभावी केस प्रबंधन, और न्याय प्रणाली के आधुनिकीकरण पर जोर दिया जाता है ताकि न्याय त्वरित और प्रभावी हो सके।

न्याय में देरी के प्रमुख कारण (Major causes of Delay in Justice)

अदालतों में मामलों का भारी बोझ:- भारत में अदालतों में करोड़ों मुकदमे लंबित हैं, जिससे न्याय मिलने में अत्यधिक देरी होती है। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और निचली अदालतों में बढ़ते मामलों की संख्या इतनी अधिक है कि न्यायपालिका उन्हें समय पर निपटा नहीं पा रही है। नए मुकदमों की लगातार बढ़ती संख्या और पुराने मामलों के लंबित रहने के कारण स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। छोटे-छोटे मामलों में भी लंबी बहस और अपील की प्रक्रिया के चलते फैसले आने में वर्षों लग जाते हैं। 2024 तक भारत की अदालतों में लगभग 5.2 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जो न्यायिक प्रणाली पर अत्यधिक दबाव डाल रहे हैं।

न्यायधीशों की कमी:- भारत में न्यायधीशों की संख्या आवश्यकता से बहुत कम है, जिससे न्याय प्रणाली पर भारी दबाव पड़ता है। वर्तमान में देश में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर केवल 19 न्यायधीश हैं, जबकि विकसित देशों में यह संख्या कहीं अधिक होती है। न्यायधीशों की कमी के कारण मामलों का निपटारा धीमी गति से होता है, जिससे न्याय मिलने में देरी होती है। इसके अलावा, कई अदालतों में आवश्यक पद रिक्त पड़े होते हैं, जिससे लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जाती है और कार्यभार अत्यधिक बढ़ जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए न्यायधीशों की संख्या बढ़ाने और न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है।

न्याय प्रक्रिया की जटिलता:- भारत की न्यायिक प्रक्रिया अत्यधिक जटिल और समय लेने वाली है। कानून की जटिलता के कारण मामलों का निपटारा जल्दी नहीं हो पाता। मुकदमों में कई चरण होते हैं, स्थानीय अदालत, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, जिससे समय अधिक लगता है। बार-बार की तारीखों और अपील की प्रक्रिया के कारण न्याय मिलने में लंबा समय लग जाता है।

अधिवक्ताओं द्वारा जानबूझकर देरी कराना:- कई बार वकील अपने मुवक्किल के पक्ष में केस को लंबा खींचते हैं। वे मामलों को अनावश्यक रूप से जटिल बनाते हैं। कुछ वकील जानबूझकर गवाहों को पेश नहीं करते, जिससे केस में देरी होती है। कभी-कभी विरोधी पक्ष भी मामले को लंबा खींचने के लिए बार-बार अपील करता है।

गवाहों और साक्ष्यों की कमी:- गवाहों का समय पर न मिलना या उनकी सुरक्षा की समस्या न्याय में देरी का बड़ा कारण बनती है। कई बार गवाह मुकर जाते हैं, जिससे केस कमजोर पड़ जाता है। पुलिस की जांच प्रक्रिया भी सुस्त होती है, जिससे साक्ष्य (सबूत) इकट्ठा करने में देरी होती है।

सरकारी मामलों की अधिक संख्या:- सरकार स्वयं कई मामलों में पक्षकार होती है, जिससे अदालतों पर बोझ बढ़ जाता है। कई सरकारी विभाग एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमे दायर करते हैं, जिससे गैर-जरूरी मुकदमों की संख्या बढ़ती है। सरकारी वकीलों और अधिकारियों की लापरवाही के कारण मामलों का निपटारा देर से होता है।

कानूनों में सुधार की कमी:- भारतीय न्याय प्रणाली में कई पुराने कानून आज भी लागू हैं, जो कि धीमी न्याय प्रक्रिया का कारण बनते हैं। कानूनी सुधारों की गति धीमी होने के कारण न्यायिक प्रक्रिया में बदलाव नहीं हो पा रहा। अदालतों में डिजिटल प्रणाली का उपयोग पूरी तरह से लागू नहीं होने से प्रक्रियाएँ सुस्त बनी हुई हैं।

जमानत और स्थगन आदेश (Stay Orders) का दुरुपयोग:- कई बार आरोपी पक्ष जानबूझकर जमानत (Bail) और स्थगन आदेश (Stay Order) लेकर मुकदमे को लंबा खींचते हैं। बड़े और प्रभावशाली लोगों के खिलाफ मामले सालों तक चलते रहते हैं क्योंकि वे बार-बार अपील और स्थगन आदेश लेते हैं। कई हाई-प्रोफाइल मामलों में सालों तक कोई फैसला नहीं आता, जिससे आम जनता में निराशा बढ़ती है।

पुलिस और प्रशासन की अक्षमता:- पुलिस की लापरवाही और गलत जांच के कारण भी मामलों में देरी होती है। कभी-कभी पुलिस समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं करती, जिससे मामला कमजोर हो जाता है। भ्रष्टाचार के कारण भी जांच धीमी होती है, जिससे न्याय में देरी होती है।

वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) का कम उपयोग:- मध्यस्थता (Arbitration), सुलह (Conciliation) और लोक अदालत (Lok Adalat) जैसे उपायों का अधिक उपयोग नहीं किया जाता। अगर अधिकतर छोटे मामले लोक अदालतों और मध्यस्थता के ज़रिए निपटाए जाएं, तो अदालतों पर बोझ कम होगा।

न्याय में देरी को दूर करने के उपाय (Measures to eliminate delay in justice)

न्याय प्रणाली में सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं:

  • न्यायधीशों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि अधिक मामलों का निपटारा जल्दी हो सके।
  • डिजिटल कोर्ट और ई-फाइलिंग को बढ़ावा दिया जाए ताकि मामलों की सुनवाई तेज़ी से हो।
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast Track Courts) की संख्या बढ़ाई जाए ताकि गंभीर मामलों का त्वरित निपटारा हो।
  • गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए ताकि वे सही गवाही दे सकें।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) को बढ़ावा दिया जाए ताकि छोटे मामलों का हल कोर्ट के बाहर निकल सके।
  • सरकारी मुकदमों को कम किया जाए ताकि अदालतों का समय बर्बाद न हो।
  • कानूनी सुधार किए जाएं ताकि पुराने और बेकार कानूनों को हटाकर न्याय प्रणाली को सरल बनाया जा सके।

न्याय में देरी के प्रभाव (Impact of Delayed Justice)

आम जनता का न्याय प्रणाली से भरोसा उठनाजब लोगों को समय पर न्याय नहीं मिलता, तो वे न्याय प्रणाली से निराश हो जाते हैं और उनका विश्वास कम हो जाता है।

अपराधियों को देर से सजा मिलने से अपराध दर में वृद्धिअगर अपराधियों को समय पर दंड नहीं मिलता, तो अपराध दर बढ़ सकती है, क्योंकि लोगों को यह लगता है कि वे सजा से बच सकते हैं।

पीड़ितों को न्याय न मिलने से उनका मनोबल टूटनापीड़ितों और उनके परिवारों को वर्षों तक मानसिक और भावनात्मक तनाव झेलना पड़ता है, जिससे उनका मनोबल कमजोर हो जाता है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभावन्याय में देरी से समाज और देश की आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ता है। लोग कानूनी लड़ाइयों में अपना पैसा और समय बर्बाद करते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है।

क्या न्याय में देरी हमेशा अन्याय होता है? (Is Delay Always Denial of Justice?)

कुछ मामलों में देरी आवश्यक क्यों हो सकती है? कुछ मामलों में गहन जांच और निष्पक्ष निर्णय के लिए समय की आवश्यकता होती है। जल्दबाजी में किया गया फैसला कई बार गलत साबित हो सकता है।

विस्तृत जांच और निष्पक्षता के लिए समय लगनाअपराधों में गहन जांच और साक्ष्यों के परीक्षण के लिए समय लगता है, ताकि निर्दोष व्यक्ति को सजा न मिले और दोषी को उचित दंड मिले।

उदाहरण – ऐतिहासिक मामलों का विश्लेषणकुछ ऐतिहासिक मुकदमों में, जहाँ न्याय पाने में समय लगा, लेकिन विस्तृत जांच के कारण निष्पक्ष निर्णय संभव हो सका।

न्याय में देरी के कुछ प्रमुख उदाहरण(Some major examples of delay in justice)

  • अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद (1949 - 2019, 70 साल)
  • भूपेंद्र सिंह जोगी हत्याकांड (1983 - 2007, 24 साल)
  • निठारी कांड (2005 - 2017, 12 साल)
  • शहबानो केस (1978 - 1985, 7 साल)
  • बोफोर्स घोटाला (1986 - 2005, 19 साल)
  • निर्भया केस (2012 - 2020, 8 साल)
  • 1993 मुंबई बम धमाके (1993 - 2017, 24 साल)
  • सिक्ख विरोधी दंगे (1984 - 2018, 34 साल)
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