×

Men's Responsibility: बड़ा कठिन है पुरुष होना

Men's Responsibility: इस सृष्टि में सबसे कठिन कोई कार्य है, तो वह है पुरुष होना। पुरुष होने के लिए सचमुच बहुत बड़ा कलेजा चाहिए। जो विपरीत परिस्थितियों में अपने परिवार और समाज की रक्षा के लिए खड़ा हो जाए।

Network
Newstrack Network
Published on: 4 Feb 2023 1:17 PM GMT
Men Responsibility
X

Men Responsibility (Image: Social Media)

पुरुष दिवस होने के लिए तो इस धरती पर चार अरब के आसपास पुरुष हैं, फिर भी इस सृष्टि में सबसे कठिन कोई कार्य है, तो वह है पुरुष होना। पुरुष होने के लिए सचमुच बहुत बड़ा कलेजा चाहिए।

जो विपरीत परिस्थितियों में अपने परिवार और समाज की रक्षा के लिए विपदाओं के सामने छाती खोल कर खड़ा हो जाए और सारे कष्ट स्वयं अपने कंधे पर उठा ले, वह होता है पुरुष। पुरुष होता है वह पिता, जो अपनी संतान की रक्षा के लिए अपनी मरियल सी देह लेकर भी हर विपत्ति में सबसे आगे खड़ा रहता है। व्यक्ति शरीर से नहीं, साहस से पुरुष बनता है।

पुरुष थे वे भगवान श्री राम, जिन्होंने बालि के वध के बाद उसकी पत्नी तारा को माता कहा। लंका युद्ध समाप्त होने के बाद रावण के शव पर विलाप करती विधवा मंदोदरी के हृदय में श्री राम को देख कर तनिक भी भय नहीं उपजा, क्योंकि वे जानती थीं कि राम उन्हें क्षति नहीं पहुचायेंगे। एक तरह से देखें तो रावण को मारने से अधिक कठिन था, मंदोदरी के हृदय के भय को मारना। राम उसमें भी सफल रहे। यही पुरुषार्थ है।

यदि कोई स्त्री विपत्ति के क्षण में आपको देखते ही यह सोचकर निश्चिंत हो जाये कि इसके रहते कोई मेरा अहित नहीं कर सकता, तो समझिए कि आप पौरुष प्राप्त कर चुके।इस जगत में एक ही व्यक्ति पूर्ण पुरुष कहलाया है, वे थे भगवान श्रीकृष्ण।

नरकासुर की कैद में पड़ी सोलह हजार बंदी राजकुमारियों को जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने नाम का भरोसा दिया, तब वे पूर्ण पुरुष कहलाए। कैसा अद्भुत क्षण रहा होगा न! कोई स्त्री अपने पति के साथ किसी अन्य स्त्री को स्वीकार नहीं कर पाती, पर श्रीकृष्ण को एक साथ सोलह हजार स्त्रियों ने चुना। यदि विश्वास की कोई सीमा भी है तो वह भगवान श्रीकृष्ण पर आ कर समाप्त हो जाती है। अद्भुत था हमारा कन्हैया...

कभी काशीजी-अयोध्याजी के मेले में नहान करने निकले बुर्जुग जोड़े को देखिएगा। सत्तर वर्ष के हो चुके काँपते पति के साथ चलती बुजुर्ग पत्नी जिस भरोसे से उसका हाथ पकड़ कर चलती है, उस भरोसे का नाम पौरुष है। बूढ़ा व्यक्ति तो स्वयं की भी रक्षा नहीं कर सकता, पत्नी की क्या कर पायेगा? फिर भी, पत्नी का भरोसा उसे पुरुष बना देता है और वह भीड़ को ढकेलता हुआ पार कर जाता है।

पुरुष दिवसों में नहीं बंध सकता, पर यदि कोई दिवस पुरुष के नाम से बंधा है तो जयजयकार हो उस दिवस की। कभी जयशंकर प्रसाद ने कहा था, "नारी तुम केवल श्रद्धा हो" मैं उनके स्वर में स्वर मिला कर कहता हूँ, "पुरुष! तुम केवल विश्वास हो..."

Anupma Raj

Anupma Raj

Sports Content Writer

My name is Anupma Raj. I am from Patna. I'm a content writer with more than 3 years of experience.

Next Story