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Ghazal And Shayari In Hindi: पढ़ें दर्दभरी शायरी, जो आपका मूड बना देंगी
Ghazal And Shayari In Hindi: पढ़ें डॉ. राहत इंदौरी और सागर त्रिपाठी की सुंदर शायरी और गजल।
Ghazal And Shayari In Hindi: आज के समय में भी लोग शायरी और गजल से जुड़े हुए हैं। इनके जरिए लोग अपनी भावनाओं कोबेहद आसान तरीके से लोगों के दिलों तक पहुंचा देते हैं। वहीं इन गजलों और शायरियों को पढ़ने और सुनने वाले भी इनसे मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। आज हम आपके लिए कुछ ऐसे ही डॉ. राहत इंदौरी और सागर त्रिपाठी की गजलें और शायरी लेकर आए हैं।
महरूफ़ थे सब
अपने ज़िंदगी
की उलझनों में
ज़रा सी ज़मीन
क्या हिली
सबको ख़ुदा याद आ गया।
तेरी कामयाबी पर तारीफ़,
तेरी कोशिश पर ताना होगा,
तेरे दुःख में कुछ लोग,
तेरे सुख में जमाना होगा...!!
खत्म होने को है।
दौर ख़्वाहिशों का।
तुझे पा लूँ।
ये आखिरी ख्वाहिश है मेरी
माना कि पहले से नखरे नहीं हैं,
मगर अपने दिल इतने सकरे नहीं हैं,
हम से सलामत है हम की रवायत,
मैं मैं करे कोई बकरे नहीं हैं
जितने अपने थे, सब पराये थे,
हम हवा को गले लगाए थे.
जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा,
जितने वादे थे, सर झुकाये थे।
(-डॉ. राहत इंदौरी)
डॉ. सागर त्रिपाठी की शायरी
खटखटाते रहिए दरवाजा एक दूसरे के मन का।
मुलाकातें ना सही, आहटें आती रहनी चाहिए।
छोड़िए शिकायत पहले शुक्रिया अदा कीजिए,
जितना है पास पहले उसका मज़ा लीजिए!!
वो कौन है जिन्हें तौबा की मिल गयी फ़ुर्सत,
हमें तो गुनाह करने को भी ज़िन्दगी कम है।
कुछ रहम कर ऐ जिन्दगी,
थोड़ा सँवर जाने दे,
तेरा अगला ज़ख़्म भी सह लेंगे, पहले वाला तो भर जाने दे।
उदासी
पकड़ ही नहीं पाते,
इतना संभाल के
मुस्कुराते है हम !!
एक बात मुझे आज तक समझ नहीं आयी कि,
ये प्रेम, प्यार, इश्क़, मोहब्बत के एक-एक अक्षर विकलांग क्यों है...
लिखतीं रहतीं हैं ख़त मेरे बचपन की ख़्वाहिशें आज भी...,
पर उन्हें यह ख़बर नहीं हैं कि अब वह रहतीं नहीं इस पते पर...।
रेत में तब्दील कर डाला मुझे उस शख्स ने।
कह रही थी जो कभी... दरिया बना देंगी मुझे।
ज़मीर, झूठ जो बोलूँ तो कान खींचता है।
कहूँ जो सच तो फिर हाकिम ज़बान खींचता है॥
(- डॉ. सागर त्रिपाठी)
ग़ज़ल पर डालें नजर
किसी की बात का इतना गिला क्या।
ज़रा सी बात कह दी, बात का क्या।।
दिलों की जंग में बेजा बजा क्या।
हरीफ़ों से गिला शिकवा भला क्या।।
तिरी फुरक़त मिरा ज़ेहनी ख़लल है।
अगर क़ुरबत नहीं तो फ़ासला क्या।।
कभी फ़ुरसत मिले तो मैं भी सोचूं।
मुझे मिलकर भी वो आख़िर मिला क्या।।
सुनें भी क्यों ग़म-ए- हिजराँ की बातें।
कभी तन्हाईयों में पास था क्या।।
मुझे तो कोई मुझसा मिल न पाया।
मिला है आपको भी आपसा क्या।।
करें क्यों बेसबब तर्क-ए -तआल्लुक़।
पता भी तो चले आख़िर हुआ क्या।।
अगर निस्बत नही है दरमियाँ तो।
भला वाबस्तगी क्या वास्ता क्या।।
चले तो थे उसे क़ाबू में करने।
तुम्हारा कोई बस दिल पर चला क्या।।
हमीं पर लग रहे इल्ज़ाम सारे।
हमीं रुसवा हुए हैं आपका क्या।
हुआ है इश्क़ फिर 'सागर' को शायद।
सुना वो आपने भी वाक़या क्या।।
(- सागर त्रिपाठी)