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Mother Teresa Wikipedia in Hindi: महाराष्ट्र की मदर टैरेसा, कैसे एक माँ ने संभाला 2000 बच्चों को
Mother Teresa Ke Bare Me Jankari: अपनी कठिनाइयों के बावजूद, सिंधुताई मदर टैरेसा ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने जीवन को एक उद्देश्य दिया।
Mother Teresa Ke Bare Me Jankari: मां अपने बच्चों के लिए ईश्वर के समान होती है, जो उनके जन्म से लेकर लालन-पालन तक हर जरूरत और खुशी का ख्याल रखती है। लेकिन क्या कभी आपने किसी ऐसी मां के बारे में सुना है, जो बिना अपने खुद के बच्चों के अनाथ और बेसहारा बच्चों की मां बनी हो? ऐसी ही एक प्रेरणादायक महिला थीं सिंधुताई सपकाल, जिन्होंने न केवल 1400 अनाथ बच्चों को मां का प्यार दिया, बल्कि उनके पालन-पोषण के लिए सड़कों पर भीख तक मांगी।सिंधुताई ने अपना पूरा जीवन अनाथ बच्चों की सेवा में समर्पित कर दिया। महाराष्ट्र की ‘मदर टेरेसा’ कही जाने वाली सिंधुताई का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उन्होंने न केवल अनगिनत बच्चों को सहारा दिया, बल्कि उनके जीवन को नई दिशा भी दी।
सिंधुताई सपकाल, जिन्हें ‘अनाथों की माँ’ के नाम से जाना जाता है, का जीवन संघर्ष, साहस और सेवा की एक अद्वितीय गाथा है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद इच्छाशक्ति और निस्वार्थ सेवा से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
प्रारंभिक जीवन (Mother Teresa Ka Jivan Parichay)
सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर,1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के पिंपरी मेघे गांव में हुआ था। उनका असली नाम ‘चिंधी’ रखा गया, जिसका अर्थ होता है ‘फटा हुआ कपड़ा’।यह नाम इस बात को दर्शाता है कि उनका परिवार उन्हें बोझ समझता था। उनके पिता अभिमान साठे एक गड़रिया (चरवाहा) थे और परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर था। हालांकि, उनके पिता ने हमेशा उनकी पढ़ाई का समर्थन किया। वह जानवर चराने के दौरान भी सिंधुताई को पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे।
परिवार और समाज की रूढ़िवादी सोच के कारण सिंधुताई की औपचारिक शिक्षा चौथी कक्षा तक ही हो पाई। मात्र 10 साल की उम्र में उनकी शादी 30 साल के श्रीहरि सपकाल से कर दी गई। शादी के बाद सिंधुताई का जीवन और भी कठिनाइयों से भरा हुआ हो गया।
शादीशुदा जीवन और संघर्ष (Mother Teresa Struggle)
शादी के बाद, सिंधुताई को लगातार अपने ससुराल वालों और पति से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उनके पति एक रूढ़िवादी और क्रूर व्यक्ति थे, जो सिंधुताई की हर बात पर संदेह करते थे। जब सिंधुताई ने ग्रामीणों की समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाई और स्थानीय अधिकारियों से मदद की मांग की, तो उनके पति ने उन्हें ‘झूठी और चरित्रहीन’ करार देकर घर से बाहर निकाल दिया।
उस समय सिंधुताई नौ महीने की गर्भवती थीं। उन्होंने एक गौशाला में अपनी बेटी ममता को जन्म दिया। इसके बाद, उनके पास न घर था, न पैसा और न ही कोई सहारा। वह रेलवे प्लेटफॉर्म, मंदिरों और सड़कों पर भीख मांगकर अपना और अपनी बेटी का पेट भरती थीं।
सिंधुताई याद करती हैं, "जब मैंने अपनी बेटी को जन्म दिया, उस समय मैं बेहोशी की हालत में थी।।मेरे पास कोई भी सहारा नहीं था। मेरे आसपास सिर्फ गायें थीं, जो उस वक्त मेरा सहारा बनीं। 116 बार पत्थर से मारकर मैंने अपनी बच्ची की नाल काटी। उसी समय मैंने ठान लिया कि अगर मैं यह सब सह सकती हूं, तो आगे भी मजबूती और साहस के साथ हर चुनौती का सामना करूंगी।"इस समय सिंधुताई पूरी तरह से असहाय थीं। उनकी अपनी मां ने भी उन्हें शरण देने से इंकार कर दिया था। इस समय में वह भीख मांग कर अपना गुजारा चलाती थीं।
अनाथ बच्चों के लिए समर्पण (Mother Teresa Ka Samarpan)
अपनी कठिनाइयों के बावजूद, सिंधुताई ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने जीवन को एक उद्देश्य दिया। एक दिन उन्होंने देखा कि कई अनाथ बच्चे भी उन्हीं की तरह जीवनयापन के लिए संघर्ष कर रहे थे। तभी उन्होंने ठान लिया कि वह इन बच्चों के लिए एक माँ बनेंगी।
सिंधुताई ने भीख मांगकर इन अनाथ बच्चों को भोजन, शिक्षा और आश्रय देना शुरू किया। उन्होंने महसूस किया कि इन बच्चों की देखभाल करना उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा उद्देश्य है। धीरे-धीरे, उन्होंने एक अनाथालय की स्थापना की।
पहला अनाथालय और संघर्ष (Mother Teresa Ka Pahla Anathalay)
1970 के दशक में, सिंधुताई ने पुणे में अपने पहले अनाथालय की शुरुआत की। इसे शुरू करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की
वह दिनभर भिक्षा मांगतीं और रात में बच्चों के लिए खाना बनातीं। उनके अनाथालय में रहने वाले बच्चों को उन्होंने न केवल खाना दिया, बल्कि उन्हें शिक्षित भी किया।
कानूनी रूप से बच्चों की माँ
सिंधुताई ने 1400 से अधिक अनाथ बच्चों को गोद लिया और उन्हें माँ का प्यार दिया। उन्होंने बच्चों को केवल पाला ही नहीं, बल्कि उन्हें शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाया। उनकी मेहनत और सेवा से प्रेरित होकर कई लोग उनके काम में सहयोग देने लगे।
परिवार और पति से सुलह (Mother Teresa Family)
सिंधुताई के संघर्षों और कामयाबी ने उनके पति को भी प्रेरित किया। वर्षों बाद, उनके पति ने उनके पास आकर रहने की इच्छा व्यक्त की।।तब सिंधुताई ने उन्हें पति के रूप में स्वीकार नहीं किया। सिंधुताई बताती हैं, 'मैंने अपने पति को उनके किए के लिए उन्हें माफ कर दिया।
जैसे मेरे और बच्चे थे, वैसे ही मैंने उन्हें भी अपने बच्चे के रूप में स्वीकार किया।' सिंधुताई ने उन्हें ‘बड़ा बच्चा’ कहकर स्वीकार कर अपने अनाथालय में उन्हें जगह दी। यह उनकी निस्वार्थता और विशाल हृदय का प्रतीक है।कुछ साल बाद उनके पति भी चल बसे।
सम्मान और पुरस्कार (Mother Teresa Achievements)
सिंधुताई सपकाल को उनके असाधारण कार्यों के लिए 750 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इन पुरस्कारों में भारत सरकार द्वारा दिया गया प्रतिष्ठित पद्मश्री भी शामिल है।
महाराष्ट्र सरकार ने 2012 में उन्हें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार से नवाजा। इसके अलावा, 1996 में उन्हें आईटी प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन का दत्तक माता पुरस्कार और 2010 में महाराष्ट्र सरकार का अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार मिला। 2012 में पुणे अभियांत्रिकी कॉलेज ने उन्हें कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग पुरस्कार दिया, 2013 में उन्हें मूर्तिमंत आईसाठीचा राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 2017 में डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
फिल्म और किताबें (Mother Teresa Movie Book)
सिंधुताई सपकाल के जीवन पर एक मराठी फिल्म "मी सिंधुताई सपकाल" बनाई गई, जिसने उनके संघर्ष और सेवा को बड़े पर्दे पर दिखाया।इसे 54वें लंदन फिल्म महोत्सव में वर्ल्ड प्रीमियर के लिए भी चुना गया था। इस फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। उनके जीवन पर कई किताबें भी लिखी गईं, जो प्रेरणा का स्रोत हैं।
सिंधुताई सपकाल के महाराष्ट्र में कई अनाथालय और आश्रय स्थल हैं, जहाँ उन्होंने इन बच्चों को एक सुरक्षित और पोषणपूर्ण वातावरण प्रदान किया है। सावित्रीबाई फुले मुलींचे वसतिगृह (लड़कियों का हॉस्टल) ,यह पुणे में स्थित है। मदर ग्लोबल फाउंडेशन , यह भी पुणे में स्थित है।सन्मति बाल निकेतन , यह पुणे में स्थित है।ममता बाल सदन , यह पुणे में स्थित है। सावित्रीबाई फुले मुलींचे वसतिगृह (लड़कियों का हॉस्टल) , पुणे में।अभिमान बाल भवन , यह पुणे में स्थित है।गंगाधर बाबा छात्रालय ,यह पुणे के पास स्थित है।सप्तसिंधु महिला आधार, बालसंवर्धन और शिक्षा संस्था, यह पुणे में स्थित है।श्री मांशांति छात्रालय ,यह पुणे में स्थित है।वनवासी गोपाल कृष्ण बहुउद्देश्यीय मंडल , यह महाराष्ट्र के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत है।
अंतिम समय और विरासत (Mother Teresa Property)
4 जनवरी,2022 को सिंधुताई सपकाल का निधन हो गया। 73 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी। उनके द्वारा स्थापित अनाथालय और आश्रम आज भी हजारों बच्चों के जीवन को रोशन कर रहे हैं।सिंधुताई सपकाल का बड़ा परिवार अब 207 दामादों और 36 बहुओं को शामिल करता है, जो उनके असीम प्रेम और देखभाल का प्रमाण है।उनकी अपनी बेटी भी इस विरासत का हिस्सा है। वह भी अनाथ बच्चों के कल्याण में योगदान दे रही है।सिंधुताई सपकाल की कहानी ने उनके एक बच्चे को उनकी असाधारण यात्रा पर केंद्रित पीएच.डी. करने के लिए प्रेरित किया है।अब इन बच्चों के पास पुणे जिले के मांजरी में अपनी एक पूरी तरह से सुसज्जित इमारत है, जिसमें कंप्यूटर रूम, सांस्कृतिक हॉल, सोलर पावर, लाइब्रेरी और स्टडी रूम जैसी सुविधाएं मौजूद हैं।
सरकार की तरफ से नहीं मिली मदद
सिंधुताई ने अपनी जिंदगी में जो दर्द सहा, उससे सबक लेते हुए उन्होंने गरीब और अनाथ बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने की ठान ली। उन्होंने अपने जीवन को मासूम बच्चों के लिए समर्पित कर दिया, हालांकि उनके पास रोजी-रोटी का कोई निश्चित साधन नहीं था। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उनके लिए सम्मानजनक जीवन जीने का इंतजाम किया। आज उनकी गोद लिए हुए बच्चे नौकरी कर रहे हैं और अच्छी जिंदगी जी रहे हैं। हालांकि सिंधुताई कि पढ़े-लिखे नहीं होने की वजह से उनके काम को सरकारी मान्यता नहीं मिल सकी है और ना ही सरकार की तरफ से उन्हें कोई अनुदान मिलता है।
सिंधुताई का जीवन हमें सिखाता है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर हम अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हैं, तो हम दुनिया को बदल सकते हैं। उनका जीवन प्रेम, सेवा और आत्मविश्वास की एक जीती-जागती मिसाल है।सिंधुताई सपकाल एक ऐसी प्रेरणादायक महिला थीं, जिन्होंने अपने व्यक्तिगत संघर्षों को ताकत में बदलकर अनगिनत लोगों की जिंदगी को रोशन किया। उनकी कहानी न केवल महिलाओं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके कार्य और योगदान उन्हें हमेशा यादगार बनाए रखेंगे।