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Motivational Story in Hindi: मानसिक पवित्रता से सौंदर्य वृद्धि
Motivational Story in Hindi: वास्तव में बाहरी सूरत-शकल आन्तरिक विचारों से बनती है। एतदर्थ प्रत्येक व्यक्ति को वही बातें विचारनी, बोलनी चाहिए और आचरण में लानी चाहिये जिनका प्रभाव हम हमारे रक्त और माँस पर देखना चाहते हैं।
Motivational Story in Hindi: सुन्दर निर्मल भावना एवं मानसिक शक्ति ही एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा सुन्दरता प्राप्त की जा सकती है। एक विद्वान डॉक्टर कहते हैं, कि सौंदर्य का आदर्श सदा ध्यान में रखने से सुन्दरता प्राप्त हो सकती है। सुन्दरता को ध्यान भावना में रखना और सुन्दर बनना एक ही बात है । क्योंकि मन जब किसी सुन्दर वस्तु पर लगाया जाता है तो वह सुन्दरता उस समय के लिए ध्यान करने वाले का अंग बन जाती है। और भी अनेक बातें हैं जिनसे सौंदर्य वृद्धि होती है, जैसे नम्र स्वभाव, प्रेमदृष्टि, पवित्र विचार तथा अहिंसात्मक भाव सुन्दरता को और भी विशेष चमका देते हैं, इनका प्रभाव और प्रतिबिम्ब चेहरा एवं आकृति पर पड़े बिना रह नहीं सकता।
वास्तव में बाहरी सूरत-शकल आन्तरिक विचारों से बनती है। एतदर्थ प्रत्येक व्यक्ति को वही बातें विचारनी, बोलनी चाहिए और आचरण में लानी चाहिये जिनका प्रभाव हम हमारे रक्त और माँस पर देखना चाहते हैं।
समझदार माता आरम्भ ही से पवित्र विचारों का प्रभाव अपने बालकों पर छोड़ती रहती है क्योंकि सुन्दरता अन्दर ही से उत्पन्न होती है और सत्य तथा पवित्र विचारों से स्थिर हो जाती है। पूर्ण सौंदर्य, पूर्ण मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य का प्रमाण है। सौंदर्य विकास के लिये अच्छे से अच्छे और बढ़िया से बढ़िया पवित्र विचार प्रत्येक अवयव के भीतर से गुजरते रहना चाहिये, जिससे शरीर के प्रत्येक भाग में बल एवं सौंदर्य का संचार हो।
मन का प्रभाव शरीर पर बड़ा गहरा पड़ता है। मन दर्द उत्पन्न कर सकता है और उसे दूर भी कर देता है, यदि मन शोकातुर अथवा पीड़ित हो तो प्राकृतिक सौंदर्य एवं स्वास्थ्य चिरकाल तक स्थिर नहीं रह सकता। हृदयान्तरगत विचारों का प्रतिबिम्ब ही हमारे चेहरे को बनाता और बिगाड़ता रहता है।
सुन्दर आकृति और हंसमुख चेहरा मुस्कराहट, प्रसन्नता, मानसिक हर्ष और सन्तोष से बन सकता है। चेहरे का प्रत्येक चढ़ाव-उतार कोई न कोई चिन्ह अवश्य छोड़ता जाता है जो यद्यपि हमें तत्काल नहीं दीख पड़ता तथापि लगातार ऐसा होने से वह साधारण आकृति में परिणित हो जाता है। जिससे मनुष्य सुन्दर या कुरूप बनता जाता है।
एक अनुभवी विद्वान का कथन है कि जिस आकृति में दुष्ट स्वभाव छिपा हुआ है वह आकृति कदापि सुन्दर नहीं बन सकती, किन्तु जिसका स्वभाव अच्छा, सत्य-शिव-सुन्दर विचारों से ओतप्रोत है उसकी कान्ति कभी भी भद्दी नहीं हो सकती चाहे उसकी बाह्य आकृति भले ही मनोरम न हो।
यही कारण है कि पवित्रात्मा-महात्माओं के दर्शन से एक विशेष प्रकार का सुख प्राप्त होता है। बहुधा वे व्यक्ति जो दरिद्रावस्था में कुरूप दिखाई पड़ते हैं, धनैश्वर्यशाली हो जाने पर-मानसिक विचारों में निश्चिन्तता आते ही कुछ और ही दिखाई देने लगते हैं। उनके मुँह पर एक विचित्र कान्ति आ जाती है वास्तव में आकृति-मन का सच्चा दर्पण और स्वभाव का फोटो है।
सौंदर्य-बहुत कुछ प्राकृतिक होता है सही, किन्तु फिर भी इसे चिरकाल तक टिकाये रखना या न रखना हमारे ही अधिकार में है। इसमें बहुत कुछ घटाव-बढ़ाव किया जा सकता है, हम जो कुछ अपनी आकृति को बना चुके हैं उसे प्रयास करने पर बदल भी सकते हैं, यह निर्विवाद सत्य है।
ऐसा अनुभव में आता है कि अनेक स्त्री पुरुषों की आकृति से सदा उदासी टपका करती है, पर इस अवस्था में पहले यह पता लगाना चाहिये कि किन-2 कारणों से उदासी, अप्रसन्नता एवं दुख उत्पन्न हुआ है, यह वास्तव में दुखी हृदय का ही विकार होता है। और ऐसे मनुष्य संसार की प्रत्येक वस्तु को निराशा की दृष्टि से देखा करते हैं। इस स्वभाव को छोड़ने के लिये हमें उच्च कोटि के मनोबल एवं इच्छाशक्ति से काम लेना चाहिये, जब पूर्ण प्रसन्नता प्राप्त कर मनुष्य आशावादी बन जायेगा तो आशाजनित आभा का आविर्भाव होगा और अवश्यमेव आकृति की काया पलट जायगी।
अतएव इष्ट प्राप्ति में असफल होने वाले व्यक्तियों को पूर्व असफलता का अनिष्ट प्रभाव वर्तमान प्रयत्नों द्वारा मिटाना चाहिये, लोभी आत्माओं को जो सदा किसी न किसी अप्राप्त वस्तु के लिये आहें भरा करती हैं, उन्हें चाहिये कि वर्तमान स्थिति पर सन्तुष्ट रहना सीखें-इससे उनका परमहित होगा।
बहुत से चेहरों से सदा दुःख, उदासी, चिड़चिड़ापन, क्रोध, संकीर्ण हृदयता, लोभ, कपट, दम्भ और शत्रुता टपका करती है, ऐसी आकृतियों में वास्तविक सुन्दरता कदापि स्थिर नहीं रह सकती।
चेहरे की आकृति बदलने के लिये मन की गति बदलने की खास आवश्यकता है। दुःख और उदासी के स्थान पर प्रसन्न चित्त और हर्ष, चिड़चिड़ापन और क्रोध के स्थान पर सर्वप्रियता और मनोरंजन, संकीर्ण हृदयता के स्थान पर उदारता एवं संतोष उत्पन्न करना चाहिये।
बीमारी का ध्यान और आशंका करने से भी बीमारी पैदा होती है, कठिन से कठिन रोग का विचार हृदय से बाहर निकाल फेंको, तुम अवश्य निरोग हो जाओगे।
सुन्दर बनने का रहस्य स्वयं अपने आपको सुन्दर समझना है। सुन्दरता विनाशक विचारों को हृदय से निकाल दो तो आपको प्रत्येक समय खुद में सौंदर्य की एक आशा दीख पड़ेगी, किसी रूप के अनुसार अपने रूप को बनते हुए ध्यान करो, कुवासनाओं को मिटाकर उत्तम पवित्र विचार चित्त में आने दो, शोक और दुख का ध्यान छोड़ ईश्वर पर विश्वास रख अपनी वर्तमान स्थिति पर सन्तोष रखो। मन को सदा प्रसन्न रखो और फिर देखो कि आकृति पर सौंदर्य का प्रकाश अपना रंग लाता है कि नहीं। सौंदर्य के साथ उत्तम प्रकृति सोने में सुगंध का काम करती है।
कुवासनाओं एवं व्यभिचार की भावना मात्र से आकृति फीकी, निस्तेज और मलिन हो जाती है। भले आदमी और भली स्त्रियों के जितना निकट जाओ उतनी ही आकृति भली मालूम होगी। इसके प्रतिकूल बुरे आदमी और बुरी स्त्रियों के जितना निकट जाओ उनकी आकृति उतनी ही बुरी मालूम होने लगेगी।
सत्य प्रियता, न्याय, पवित्रता, मिष्ठा भाषण, दया, लज्जा, आत्मीयता, धैर्य, उत्साह, वीरता, परोपकार आदि सौंदर्य प्राप्ति के मुख्य साधन हैं।
प्रेम भी सुन्दरता का सच्चा सहायक है। माता पिता का पारस्परिक प्रेम-उत्तम सन्तान उत्पन्न करता है, पति-पत्नि का प्रगाढ़ प्रेम उनके हृदय सरोवरों में सदा प्रसन्नता की लहरें उठाया करता है। माता-पिता और सन्तान में पारस्परिक प्रेम से सन्तान इसीलिये सुन्दर हो जाती है और हमेशा सुन्दर रहती है।
बुद्धि, आत्मिक उन्नति और शिक्षा भी सौंदर्यता को बहुत कुछ बढ़ाती है। एक घर में दो बहनें हों, उसमें एक सभ्य और दूसरी अशिक्षित और असभ्य हो तो आप देखेंगे कि पहली अधिक रूपवती होगी। शिक्षा से भी एक चेहरे पर प्रतिभा आ जाती है। हमारे देश की महिलाओं में शिक्षा की खास कमी है। सफाई के सिद्धान्तों से अनभिज्ञ हैं। इन बातों पर ध्यान देना विशेष आवश्यक है।