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Motivational Story Hindi: सुख में भी करें भगवान का सुमिरन

Motivational Story Hindi: दुख में सुमिरन सब करैं सुख में करै न कोय।जो सुख में सुमिरन करै दुःख काहे को होय

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Newstrack Network
Published on: 15 April 2024 3:36 PM GMT
Motivational Story ( Social: Media Photo)
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Motivational Story( Social: Media Photo)

Motivational Story Hindi: एक धनवान सेठ ने अपने गांव के गरीब लोगों के लिए प्रतिमाह दान का प्रबंध कर रखा था। किसी को दस, किसी को बीस, तो किसी को पचास रुपये उसके पारिवारिक खर्च के आधार पर दान में मिलते थे। सभी लोग हर माह के प्रथम दिन आकर अपने रुपए ले जाते थे। यह क्रम वर्षों से चल रहा था। इनमें एक भिखारी भी था, जिसका बडा परिवार होने के नाते उसे 50 रुपये हर माह मिलते थे।

वह भिखारी भी हर माह के प्रथम दिन आकर अपने रुपये ले जाता था। एक बार माह की प्रथम तिथि को वह भिखारी रुपये लेने आया। इस बार सेठ के मुनीम ने कहा कि भाई हिसाब में थोड़ा फेरबदल हुआ है, अब से तुम्हें पचास रुपये की जगह पच्चीस रुपये ही मिला करेंगे!

यह सुनकर वह भिखारी बहुत नाराज हो गया। उसने कहा, क्या मतलब, मुझे तो हमेशा से पचास रुपये मिलते रहे हैं। बिना पचास रुपये लिए मैं यहाँ से नहीं जाऊंगा।पचास की जगह मात्र पच्चीस रुपए देने का क्या कारण है?

मुनीम ने कहा कि जिन सेठ जी की तरफ से तुम्हें रुपये मिलते हैं उन सेठ जी की बेटी का विवाह है। उस विवाह में बहुत खर्च होने वाला है। उनकी एक ही बेटी है, लाखों का खर्च है, इस कारण अभी सम्पत्ति में थोडी असुविधा है, इसलिए अब आपको पचास की जगह पच्चीस रुपये ही मिलेंगे। उस भिखारी ने क्रोध में हाथ-पैर पटके और कहा, इसका क्या मतलब है, तुमने मुझे क्या समझ रखा है, मैं कोई अमीर नहीं हूँ कि मेरे पैसे काटकर सेठ अपनी लडकी का विवाह करेगा, अगर अपनी बेटी के विवाह में लुटाना है तो अपने पैसे लुटाओ!

पिछले कई सालों से उस भिखारी को मुफ्त में पचास रुपये मिलते आ रहे थे, इसलिए वह मुफ्तखोरी का आदी और अधिकारवादी हो गया था। वह अपने आपको बड़ा मानने लगा था। उसके पच्चीस रुपये काट लेने पर उसका विरोध कर वह क्रोध और आवेश में आ गया था!

भिखारी को जो मुफ्त में मिला, उसे वह अपना अधिकार मान रहा है, उसमें से कुछ भी कटेगा तो वह विरोध तो करेगा। लेकिन उसे अब तक मुफ्त में जो मिला है, जो उसका अपना नहीं था, वह मिला, परंतु उसने इसके लिए कभी उस सेठ को धन्यवाद नहीं दिया कि आप पचास रुपये प्रतिमाह हमें देते हो, इससे हमारे परिवार का भरण-पोषण होता है, इसके लिए आपको धन्यवाद! लेकिन जब रुपये कटे, तो विरोध अवश्य किया।

अब आप भी विचार करें, क्या हम भी कभी मुफ्त में प्राप्त हवा, पानी सहित अन्य तमाम प्राकृतिक सुख-सुविधाओं के लिए भगवान को धन्यवाद देने मंदिर गए है? शायद ही किसी का उत्तर हां में होगा। हम सभी अधिकतर केवल सुख की कामना हेतु ही मंदिर गए हैं। जीवन - जिसकी प्राप्ति में हमारा कोई योगदान नहीं है - ऐसे सुंदर उपहार के लिए हमारे मन में उस ईश्वर के लिए कोई धन्यवाद नहीं है। लेकिन जीवन में आने वाले दुखों के लिए ईश्वर से ढ़ेर सारी शिकायतें अवश्य होती हैं!

जब भी हमने भगवान को पुकारा है तो केवल किसी पीड़ा या दुख निवारण हेतु ही पुकारा है, क्या हमने कभी धन्यवाद देने के लिए भगवान को पुकारा है? विचार अवश्य करें!

Everyone remembers in sorrow but no one does in happinessEveryone remembers in sorrow but no one does in happiness

Shalini Rai

Shalini Rai

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