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Motivational Story Hindi: मानव जीवन का लक्ष्य आनंद लोक के परमधाम तक पहुंचना है

Motivational Story Hindi: मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता का कारण यह है कि मनुष्य में सत्य और असत्य का विवेक कराने वाली बुद्धि का होना है

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Newstrack Network
Published on: 8 April 2024 11:23 AM IST (Updated on: 8 April 2024 3:05 PM IST)
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Motivational Story Hindi: क्या हमने-आपने कभी एकांत में यह सोचा है-विचार किया है कि हमें यह मानव जीवन क्यों मिला? महाभारत में युधिष्ठिर के एक प्रश्न के उत्तर में भीष्म पितामह ने कहा, “मनुष्य जीवन से बढ़कर कुछ नहीं है। मनुष्य जीवन इहलोक और परलोक की कड़ी है। चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद जीव को मनुष्य जीवन मिलता है और संसार के सभी प्राणियों में मनुष्य ही सबसे श्रेष्ठ है।”मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता का कारण यह है कि मनुष्य में सत्य और असत्य का विवेक कराने वाली बुद्धि का होना है। लेकिन इस धरती पर हम दुनियादारी और सांसारिक सुखों के चक्र में ऐसे फंस जाते हैं कि हमारी बुद्धि सीमित दायरे में ही सिमट कर रह जाती है। हम सांसारिक सुखों को ही सब कुछ मानकर उनमें ही लिप्त रहने में अपना सौभाग्य और अपने जीवन की सफलता मान लेते हैं। यह गलती हम करते हैं, तथापि कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं करता है कि वह पूर्णतः सुखी है। सच्चाई यह है कि हमें सामान्य मानव जीवन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए। यह सच है कि अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण का दायित्व हमारा है और हमें इसे हर हाल में निभाना चाहिए।

हमें यह नहीं पता कि हम कहां से आए, हमें कितने दिनों या सालों तक इस जगत में रहना है और हमारी मंजिल क्या है? इन प्रश्नों के उत्तर में अधिकांश लोग यही कहेंगे, उन्हें कुछ मालूम नहीं। ऐसे लोग बड़े ही बेचारे यात्री हैं इस जगत के। वे यात्रा तो कर रहे हैं, पर यात्रा के संबंध में उन्हें कुछ भी पता नहीं। उन्होंने मानव जीवन पाया। लेकिन उन्हें अपने जीवन का लक्ष्य मालूम नहीं। हमारे-आपके जीवन का अर्थ है, एक उद्देश्य खोज लेना और अपने भीतर शांत रहना। कहा गया है कि मनुष्य आनंदलोक का वासी है। आनंद के परमधाम तक पहुंचना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है, इसलिए मनुष्य को इस संसार की मृग-मारीचिका से निकलकर भव्य जीवन की प्राप्ति के लिए साधना के मार्ग को अपनाकर अपने गंतव्य - चौरासी लाख योनियों के जीवनचक्र से मुक्ति के द्वार - को पहचानना चाहिए और उसी में लीन होने के लिए साधनारत रहने का संकल्प लेना चाहिए।ऋग्वेद में कहा गया है कि मनुष्य जीवन पवित्र और श्रेष्ठ है। मनुष्य कर्मयोगी है। बस, यह बात कर्मयोगी के हाथों में है कि वह अपने लिए किस लक्ष्य का चयन करता है।



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Shalini singh

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