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Motivational Story: प्रेरक प्रसंग/ शिक्षक का सम्मान

Motivational Story: बैंक जा रहा हूँ,आने में देर हो जाए तो परेशान मत होना

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Newstrack Network
Published on: 20 April 2024 11:00 AM IST (Updated on: 20 April 2024 11:01 AM IST)
Motivational Story ( Social Media Photo)
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Motivational Story ( Social Media Photo)

Motivational Story: सुनो, आज चार तारीख हो गई,पेंशन लेने का समय आ गया है।बैंक जा रहा हूँ,आने में देर हो जाए तो परेशान मत होना।युवाओं को समय की कद्र कहाँ, छोटे-छोटे काम में भी घंटों लगा देते हैं।" पत्नी को कहकर रामनिवास जी बाहर जाने लगे तो पत्नी ने पीछे से कहा, " आपके इतने सारे विद्यार्थी हैं, उन्हीं में से किसी को क्यों नहीं कह देते?" ज़माना बदल गया है।पहले जैसे विद्यार्थी अब कहाँ जो अपने गुरु का मान करें।उन्हें तो मेरा नाम भी याद नहीं होगा।" पत्नी को जवाब देकर वे बैंक चले गये।

महीने का पहला सप्ताह होने के कारण बैंक में भीड़ थी।एक खाली कुर्सी देखकर वे बैठ गये और फार्म भरकर कैशियर वाले डेस्क के सामने खड़े हो ही रहें थें कि एक स्टाफ़ ने उन्हें आदर-सहित कुरसी पर बैठा दिया और स्वयं फ़ार्म लेकर कैशियर के केबिन में चले गये।वे कुछ समझ पाते तब तक में बैंक का चपरासी उनके लिए चाय ले आया।उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि वे बिना चीनी के चाय पीते हैं।चपरासी बोला, " साहब ने बिना चीनी वाली का ही आर्डर दिया है।" कहकर उसने रामनिवास जी के हाथ में चाय की प्याली थमा दी।

रामनिवास जी ने घड़ी देखी, दस बजकर पाँच मिनट हो रहें थे।सोचने लगे, चाय पिलाया है,लगता है दो घंटे से पहले मेरा काम न होगा।तभी एक बत्तीस वर्षीय सज्जन ने आकर उनके पैर छुए और विड्रा की गई राशि उनके हाथ पर रख दिया।इतनी जल्दी काम पूरा होते देख रामनिवास जी चकित रह गए।उन्होंने उन सज्जन को धन्यवाद देते हुए परिचय पूछा तो उन्होंने कहा, " सर, मैं इस बैंक का नया मैनेजर हूँ, एक सप्ताह पहले ही मैंने ज्वाइन किया है लेकिन उससे पहले मैं आपका विद्यार्थी हूँ।"

" विद्यार्थी! " रामनिवास जी ने आश्चर्य से पूछा।उन्होंने कहा, "जी सर, सन् 2004 में आप सहारनपुर के उच्च माध्यमिक विद्यालय में नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों को गणित पढ़ाते थें।मैं भी उन्हीं में से एक था।गणित मुझे समझ नहीं आती थी।परीक्षा में पास होने के लिए मैंने नकल करना चाहा और पकड़ा गया।प्रिंसिपल सर मुझे रेस्टीकेट कर रहें थें तब आपने उनसे कहा था कि नासमझी में विद्यार्थी तो गलती करते ही हैं।हम शिक्षक हैं, हमारा काम उन्हें शिक्षा देने के साथ-साथ सही राह दिखाना भी है।संजीव की यह पहली गलती है,रेस्टीकेट कर देने से तो इसका पूरा साल बर्बाद हो जाएगा, जो मेरे विचार से उचित नहीं है।आपने उनसे विनती की थी कि मुझे माफ़ी देकर अगली परीक्षा में बैठने दिया जाए।प्रिंसिपल सर ने आपकी बात मान ली थी,आपने अलग से मुझे ट्यूशन पढ़ाया और मैं परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर आज आपके सामने खड़ा हूँ।आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर!" हाथ जोड़कर मैनेजर साहब ने अपने गुरु को धन्यवाद दिया और ससम्मान उन्हें बाहर तक छोड़ने भी गए।घर लौटते वक्त रामनिवास जी सोचने लगे, ज़माना चाहे कितना भी बदल जाए, जीवन भले ही मशीनी हो जाए लेकिन विद्यार्थियों के दिलों में शिक्षक का सम्मान हमेशा रहेगा,यह आज बैंक मैनेजर संजीव ने दिखा दिया।

Shalini Rai

Shalini Rai

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