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Sabse Khatarnak Don Ki Kahani: करीम लाला, मुंबई के अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन जिसने दाऊद को सरेआम सड़क पर खदेड़ा
Khatarnak Don Karim Lala Life Story: क्या आप जानते जानते हैं कि करीम लाला कौन थे और कैसे वो अंडरवर्ल्ड के बादशाह बन गए आइये जानते हैं आखिर क्यों उनसे डरता था दाऊद इब्राहिम।
Khatarnak Don Karim Lala Life Story: 20वीं सदी के मध्य में मुंबई के अंडरवर्ल्ड का एक नाम ऐसा था, जिसे न केवल अपराध की दुनिया में बल्कि आम जनता और सत्ता के गलियारों में भी बड़ी गंभीरता से लिया जाता था। यह नाम था करीम लाला। करीम लाला, जिन्हें ‘मुंबई अंडरवर्ल्ड का गॉडफादर’ भी कहा जाता है, अपने समय में न केवल एक कुख्यात अपराधी थे बल्कि एक सामाजिक नेता के रूप में भी चर्चित रहे। उनका जीवन संघर्ष, अपराध और नेतृत्व का एक मिश्रण था। आइए उनके जीवन और प्रभाव को विस्तार से जानें।
करीम लाला का जन्म 1911 में अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में एक पश्तून परिवार में हुआ था। उनका असली नाम अब्दुल करीम शेर खान था। वे एक निर्धन परिवार से आते थे और अपने प्रारंभिक जीवन में गरीबी का सामना किया। बेहतर जीवन की तलाश में, करीम लाला 1930 के दशक में भारत आए और मुंबई (तब बॉम्बे) में बस गए।
मुंबई आने के बाद उन्होंने शुरुआत में छोटी-मोटी नौकरियां कीं, जैसे होटल में वेटर का काम और छोटे स्तर पर व्यापार। लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने महसूस किया कि मुंबई की सड़कों पर अपनी जगह बनाने के लिए शक्ति और धन की आवश्यकता है।
करीम लाला को उनके कद-काठी और रौबदार व्यक्तित्व के लिए जाना जाता था। उनकी ऊंचाई 6 फीट थी, और वे अक्सर पठानी सूट पहनते थे। उनकी प्रभावशाली पर्सनैलिटी का ऐसा असर था कि हाजी मस्तान जैसे माफिया डॉन भी उन्हें "असली डॉन" कहकर बुलाते थे। 1940 के दशक का समय अंडरवर्ल्ड के लिए एक अलग युग था, जब खून-खराबे की जगह तस्करी का दौर चल रहा था। कहा जाता है कि करीम लाला ने ही मुंबई में शराब की अवैध बिक्री और जुए के अड्डों की शुरुआत की थी।
अपराध की दुनिया में प्रवेश
करीम लाला का अपराध जगत में प्रवेश तस्करी और वसूली जैसे अवैध कार्यों के माध्यम से हुआ। वे शुरू में सोने और विदेशी मुद्रा की तस्करी करते थे, जो उस समय मुंबई में एक बड़ा अवैध धंधा था। जल्द ही, उन्होंने डोंगरी, भिंडी बाजार और कमाठीपुरा जैसे इलाकों में अपना प्रभाव जमाना शुरू कर दिया।
1940 और 1950 के दशक में, करीम लाला ने अपने गिरोह की स्थापना की, जिसे "पठान गैंग" के नाम से जाना गया। यह गिरोह मुख्य रूप से अफगानी और पश्तून समुदाय के युवाओं से बना था। उनकी ताकत उनके साथियों की वफादारी और उनके साहस में थी।
मुंबई अंडरवर्ल्ड के राजा
1950 और 1960 के दशक में, करीम लाला ने मुंबई के अंडरवर्ल्ड में अपनी जगह को पुख्ता किया। उनका नाम तस्करी, जुए और वसूली के लिए जाना जाने लगा। वे अंडरवर्ल्ड में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने अपराधों को संगठित रूप दिया। उनके गिरोह ने मुंबई में तस्करी के व्यापार, विशेष रूप से सोने और कीमती पत्थरों की तस्करी पर नियंत्रण कर लिया।मुंबई के अंडरवर्ल्ड में उनका इतना खौफ था कि लोग उनकी मर्जी के बिना किसी बड़े व्यापार में कदम नहीं रखते थे। अगर किसी व्यापारी को किसी समस्या का सामना करना पड़ता, तो वह करीम लाला के पास जाता। उनका फैसला अंतिम माना जाता था, और इसे चुनौती देने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी।
पुलिस और राजनीतिक संबंध
करीम लाला का प्रभाव न केवल अंडरवर्ल्ड तक सीमित था, बल्कि पुलिस और राजनीति के क्षेत्र में भी था। मुंबई पुलिस उनके नाम से भयभीत रहती थी। कई बार पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन उनके राजनीतिक संबंध और सामरिक बुद्धिमत्ता के कारण वे हमेशा बच निकलते थे।
कहा जाता है कि करीम लाला के संबंध कई प्रभावशाली नेताओं से थे। उनके इन संबंधों ने उन्हें सत्ता के गलियारों में भी एक मजबूत स्थान दिलाया। वे अपने समुदाय के लोगों की मदद करते थे, जिसके कारण उनकी छवि एक सामाजिक नेता के रूप में भी उभरकर आई।
गंगूबाई काठियावाड़ी और करीम लाला
करीम लाला का नाम गंगूबाई काठियावाड़ी के साथ भी जुड़ा। गंगूबाई, जो कमाठीपुरा में सेक्स वर्कर्स की प्रमुख थीं, एक बार न्याय के लिए करीम लाला के पास गईं। उनकी बहादुरी और ईमानदारी से प्रभावित होकर करीम लाला ने उन्हें अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया। इसके बाद गंगूबाई ने करीम लाला को राखी बांधी और दोनों के बीच एक गहरा संबंध बन गया।
यह संबंध इस बात को दिखाता है कि करीम लाला केवल एक अपराधी नहीं थे, बल्कि उनके व्यक्तित्व के मानवीय पहलू भी थे। वे कमजोर और शोषित लोगों की मदद करने के लिए जाने जाते थे।
लोग क्यों डरते थे करीम लाला से
करीम लाला के डर का मुख्य कारण उनकी क्रूरता और प्रभावशाली नेटवर्क था। उनका नाम सुनते ही लोग सहम जाते थे। उनकी ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके विरोधी या तो गायब हो जाते थे या उनका अंजाम बेहद बुरा होता था।
करीम लाला ने अपने साम्राज्य को बनाने के लिए न केवल शक्ति का इस्तेमाल किया, बल्कि रणनीति और राजनीति का भी सहारा लिया। उनकी यही चालाकी और नेतृत्व क्षमता उन्हें अंडरवर्ल्ड का "गॉडफादर" बनाती थी।
उपाधियां और प्रसिद्धि
करीम लाला को उनके साम्राज्य और सामर्थ्य के कारण ‘मुंबई अंडरवर्ल्ड का गॉडफादर’ कहा गया। वे अपने समुदाय के लोगों के लिए ‘पठानों के नेता’ और ‘गरीबों के मसीहा’ माने जाते थे।
दाऊद के भाई की हत्या
करीम लाला, हाजी मस्तान और अन्य गैंगस्टर्स ने अपने-अपने इलाके बांट रखे थे। उसी समय दाऊद इब्राहिम ने अपने भाई शब्बीर के साथ मिलकर तस्करी के धंधे में कदम रखा। यह धंधा करीम लाला की पठान गैंग के खिलाफ था, जिससे दोनों पक्षों में दुश्मनी बढ़ गई। 1981 में करीम लाला की गैंग ने दाऊद के भाई शब्बीर की हत्या कर दी। इसके बाद दाऊद और पठान गैंग के बीच जंग छिड़ गई। 1986 में इस दुश्मनी ने और गहरा रूप ले लिया, जब दाऊद के आदमियों ने करीम लाला के भाई रहीम खान की हत्या कर दी।
मजिस्ट्रेट के सामने करीम लाला
एक प्रॉपर्टी विवाद में एक महिला ने करीम लाला पर आरोप लगाया था कि उसने घर खाली करवाने के लिए उसके साथ मारपीट की। मामला कोर्ट में पहुंचा, और करीम लाला को सुनवाई के लिए बुलाया गया। जब वे कोर्ट पहुंचे, तो उनकी शख्सियत के चलते वहां मौजूद सभी लोग खड़े हो गए। गवाह बॉक्स में खड़े होने के बाद मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा। इस पर करीम लाला ने कहा, "ये कौन काली कोट वाली महिला है, जो हमारा नाम नहीं जानती।" उनकी इस बात पर कोर्ट में ठहाके लगने लगे।
जनता दरबार का आयोजन
करीम लाला की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण था उनका जनता दरबार। हर शाम उनके घर पर लोगों का तांता लगता था। वे विभिन्न समुदायों के मामलों में मध्यस्थता करते और समस्याओं का समाधान निकालते। उनकी यह दिनचर्या उन्हें अमीर और गरीब सभी के बीच प्रिय बना देती थी। उनके जनता दरबार में बॉलीवुड के कई सेलेब्रिटीज भी आते थे।
दाऊद को सबक सिखाना
दाऊद इब्राहिम के तस्करी के धंधे में आने से करीम लाला की परेशानी बढ़ गई थी। दोनों के बीच दुश्मनी खुलकर सामने आ गई। एक बार करीम लाला के आदमियों ने दाऊद को पकड़ लिया। इसके बाद करीम लाला ने खुद दाऊद की जमकर पिटाई की। इस पिटाई से दाऊद को गंभीर चोटें आईं। यह घटना मुंबई के अंडरवर्ल्ड में आज भी चर्चा का विषय है।
करीम लाला के कद, व्यक्तित्व और उनके अपराध जगत के किस्सों ने उन्हें एक ऐसा डॉन बना दिया, जिसे न केवल डर, बल्कि सम्मान भी मिलता था। उनका जीवन मुंबई के अंडरवर्ल्ड के इतिहास का एक अभिन्न हिस्सा है।
1980 के दशक तक, करीम लाला का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा। अंडरवर्ल्ड में नए डॉन्स, जैसे हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम, उभरने लगे। बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण उन्होंने धीरे-धीरे अपराध की दुनिया से दूरी बना ली। 2002 में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी विरासत आज भी मुंबई के इतिहास में दर्ज है।
करीम लाला का जीवन अपराध, नेतृत्व और करिश्माई व्यक्तित्व का मिश्रण था। वे न केवल एक कुख्यात अपराधी थे, बल्कि अपने समुदाय के लिए एक नेता और संरक्षक भी थे। उनका जीवन यह दर्शाता है कि कैसे एक व्यक्ति परिस्थितियों का फायदा उठाकर सत्ता और शक्ति हासिल कर सकता है। हालांकि उनका नाम अपराध के कारण कुख्यात हुआ, लेकिन उनकी मानवीय पहलुओं को भी नकारा नहीं जा सकता।
करीम लाला की कहानी मुंबई के अंडरवर्ल्ड के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो यह दिखाती है कि कैसे सत्ता, राजनीति और अपराध एक साथ जुड़े हुए हैं।