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Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti 2025: ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ इस उद्घोष से लोगों को जोड़ने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन को जानते हैं
Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti 2025: सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक जीवन 1921 में कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के साथ शुरू हुआ। महात्मा गांधी के नेतृत्व में उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti 2025: सुभाष चंद्र बोस (नेताजी बोस) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, ओडिशा के कटक शहर में हुआ था। उनके पिता, जानकीनाथ बोस, एक प्रसिद्ध वकील थे। उनकी माता प्रभावती देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। सुभाष का झुकाव बचपन से ही समाज सेवा और राष्ट्रभक्ति की ओर था।
सुभाष चंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिया। उनकी अद्भुत बुद्धिमत्ता और शिक्षा के प्रति समर्पण ने उन्हें 1913 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला दिलवाया। यहीं पर उनका झुकाव भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ओर बढ़ा। एक घटना में, जब एक ब्रिटिश प्रोफेसर ने भारतीय छात्रों का अपमान किया, तो सुभाष ने उसके खिलाफ आवाज उठाई और परिणामस्वरूप उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया।
सुभाष ने बाद में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक किया और भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। हालांकि, उन्होंने 1921 में ब्रिटिश सरकार की सेवा से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उनका मानना था कि स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देना अधिक महत्वपूर्ण है।जलियांवाला बाग हत्याकांड के दिल दहला देने वाले दृश्य से सुभाष चंद्र बोस काफी विचलित हुए इसके बाद ही वे भारत की आजादी संग्राम में जुड़ गए।
प्रेरणा- सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद से गहराई से प्रेरित थे। उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। चितरंजन दास उनके राजनीतिक गुरु थे।
राजनीति में प्रवेश
सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक जीवन 1921 में कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के साथ शुरू हुआ। महात्मा गांधी के नेतृत्व में उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।
हालांकि, उनका दृष्टिकोण गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत से भिन्न था। सुभाष ने भारतीय युवाओं को संगठित करने और स्वतंत्रता के लिए एक मजबूत और आक्रामक रणनीति अपनाने की वकालत की।1921 में चितरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ‘फॉरवर्ड’ के संपादक बने।1923 में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष और बंगाल कांग्रेस के सचिव चुने गए।1925 में क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए उन्हें मांडले जेल भेजा गया, जहां वे तपेदिक से पीड़ित हो गए।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भूमिका
1930 के दशक में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक बन गए। उन्होंने 1938 में हरिपुरा में कांग्रेस के अध्यक्ष पद का कार्यभार संभाला। उनके नेतृत्व में, कांग्रेस ने योजना आयोग की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास के लिए एक ठोस रणनीति बनाना था।
1939 में, उन्होंने त्रिपुरी में कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव फिर से जीता। लेकिन महात्मा गांधी और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक नामक एक नया दल बनाया, जिसका उद्देश्य युवाओं और क्रांतिकारियों को एकजुट करना था।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
ट्रेड यूनियनों को संगठित कर श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।1930 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लिया।गांधी-इरविन समझौते का विरोध किया।जवाहरलाल नेहरू और एम.एन. रॉय के साथ मिलकर वामपंथी विचारधारा को बढ़ावा दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन से बचते हुए जर्मनी और फिर जापान पहुंचे।1943 में जापान-नियंत्रित सिंगापुर में 'आजाद हिंद सरकार' और 'आजाद हिंद फौज' का गठन किया।'दिल्ली चलो' और 'जय हिंद' जैसे नारों के जरिए क्रांतिकारी भावना जगाई।झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर महिला रेजिमेंट की स्थापना की।
INA में सिंगापुर के कैदी और दक्षिण-पूर्व एशिया के भारतीय नागरिक शामिल थे।सैनिकों की संख्या 50,000 तक पहुंची।1944 में इम्फाल और बर्मा की सीमाओं पर संबद्ध सेनाओं से संघर्ष किया।हालांकि, जापान की हार के बाद INA कमजोर पड़ गई।
आज़ाद हिंद फौज और द्वितीय विश्व युद्ध
सुभाष चंद्र बोस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान आज़ाद हिंद फौज (इंडियन नेशनल आर्मी या आईएनए) की स्थापना में था। 1941 में, वे ब्रिटिश सरकार से बचकर जर्मनी पहुंचे और वहां से जापान गए। जापानी सहयोग से उन्होंने आज़ाद हिंद फौज का पुनर्गठन किया और भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र संघर्ष शुरू किया।साल 1942 में सुभाष चंद्र बोस हिटलर के पास गए और भारत को आजाद करने का प्रस्ताव रखा। लेकिन हिटलर ने भारत की आज़ादी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उसने सुभाष चंद्र बोस को कोई भी स्पष्ट वचन भी नहीं दिया।
उनका प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा," भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। सुभाष ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को ‘शहीद’ और ‘स्वराज’ नाम देकर स्वतंत्र घोषित किया। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद आज़ाद हिंद फौज को भंग करना पड़ा।
महात्मा गांधी से संबंध
सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी के बीच गहरे वैचारिक मतभेद थे। गांधीजी अहिंसा और सत्याग्रह में विश्वास रखते थे, जबकि सुभाष का मानना था कि स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है।
हालांकि, दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते थे। सुभाष ने गांधीजी को ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया, जो उनके बीच आपसी आदर को दर्शाता है।
हिटलर ने दी उपाधि
सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधि जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने दी थी। नेताजी के साथ ही सुभाष चंद्र बोस को देश नायक भी कहा जाता है। कहा जाता है कि देश नायक की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिली थी।
विवाद और आलोचना
सुभाष चंद्र बोस के जीवन में कई विवाद भी जुड़े रहे। उनके जर्मनी और जापान जैसे देशों से समर्थन लेने को लेकर उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा। कुछ लोगों ने उनकी रणनीतियों को अत्यधिक जोखिमपूर्ण और विवादास्पद माना। इसके बावजूद, उनकी निष्ठा और देशभक्ति पर कभी सवाल नहीं उठाया गया।
मृत्यु और रहस्य
18 अगस्त, 1945 को ताइपेई में एक विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई, ऐसा कहा जाता है। हालांकि, उनकी मृत्यु को लेकर कई रहस्य और विवाद हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि वे दुर्घटना में मारे नहीं गए थे और गुप्त रूप से भारत लौट आए थे। नेताजी की मृत्यु का सत्य आज भी एक अनसुलझा रहस्य है।
सुभाष चंद्र बोस का प्रभाव और विरासत
सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय योगदान दिया। उनकी साहसिकता, नेतृत्व और विचारधारा ने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया। उनके प्रयासों ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी और स्वतंत्रता की दिशा में भारत की यात्रा को तेज किया।सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उनके नेतृत्व ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों में क्रांति और स्वतंत्रता की भावना जगाई।INA के सैनिकों पर ब्रिटिश सरकार द्वारा मुकदमा चलाने के बाद पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसने ब्रिटिश सरकार को जल्द-से-जल्द भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया।
आज के ही दिन देश मे पराक्रम दिवस मनाया जाता है ।नेताजी का जीवन हमें सिखाता है कि साहस, समर्पण और दृढ़ता के साथ किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनका जीवन और योगदान भारतीय इतिहास में हमेशा स्मरणीय रहेगा।सुभाष चंद्र बोस का जीवन त्याग, समर्पण और राष्ट्रभक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। उनकी प्रेरणा से आज भी युवा देशभक्ति और साहस के आदर्शों को अपनाते हैं।