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Motivational Story: संसार में किसी का ऋण चुकाने के लिये और किसी से ऋण वसूल करने के लिये ही जन्म होता है
Motivational Story: संसार में जिनसे हमारा सम्बन्ध होता है वे माता, पिता, स्त्री, पुत्र तथा पशु-पक्षी आदि सब लेन-देन के लिये ही आये हैं
Motivational Story: लेन-देन का यह व्यवहार अनेक जन्मों से चला आ रहा है। और इसको बंद किये बिना जन्म-मरण से छुटकारा नहीं मिल सकता ।संसार में जिनसे हमारा सम्बन्ध होता है वे माता, पिता, स्त्री, पुत्र तथा पशु-पक्षी आदि सब लेन-देन के लिये ही आये हैं ।अतः मनुष्य को चाहिये कि वह उनमें मोह-ममता न करके अपने कर्तव्य का पालन करे अर्थात् उनकी सेवा करे,उन्हें यथाशक्ति सुख पहुँचाये।
यहाँ यह शंका हो सकती है कि अगर हम दूसरे के साथ शत्रुता का बर्ताव करते हैं तो इसका दोष हमें क्यों लगता है;क्योंकि हम तो ऐसा व्यवहार पूर्वजन्म के ऋणानुबन्ध से ही करते हैं ?इसका समाधान यह है कि मनुष्य-शरीर विवेक प्रधान है ।अतः अपने विवेक को महत्त्व देकर हमारे साथ बुरा व्यवहार करने वाले को हम माफ कर सकते हैं और बदले में उससे अच्छा व्यवहार कर सकते हैं ।मनुष्य-शरीर बदला लेने के लिये नहीं है, प्रत्युत जन्म-मरण से सदा के लिये मुक्त होने के लिये है ।
अगर हम पूर्व जन्म के ऋणानुबन्ध से लेन-देन का व्यवहार करते रहेंगे तो हम कभी जन्म-मरण से मुक्त हो ही नहीं सकेंगे ।लेन-देन के इस व्यवहार को बंद करने का उपाय है‒निःस्वार्थ भाव से दूसरों के हित के लिये कर्म करना ।दूसरों के हित के लिये कर्म करने से पुराना ऋण समाप्त हो जाता है और बदले में कुछ न चाहने से नया ऋण उत्पन्न नहीं होता ।इस प्रकार ऋण से मुक्त होने पर मनुष्य जन्म-मरण से छूट जाता है।.
मामेकं शरणं व्रजयह सबका अनुभव है कि कोई इच्छा पूरी होती है, कोई नहीं होती।सब इच्छाएँ पूरी हो जायँ--यह नियम नहीं है।इच्छाओं को पूरा करना हमारे वश की बात नहीं है,पर इच्छाओं का त्याग कर देना हमारे वश की बात है ।कोई भी इच्छा, चाहना नहीं रहेगी तो आप की स्थिति स्वतः परमात्मा में होगी।वास्तव में स्थिति पहले से ही है, उसका आपको अनुभव हो जायगा।
कुछ चाहना नहीं,
कुछ करना नहीं,
कहीं जाना नहीं,
कहीं आना नहीं,
कोई अभ्यास नहीं !
बस, इतनी ही बात है!
इतने में ही पूरी बात हो गयी।