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Motivational Story: काम से पराजय
Motivational Story: सत्ता के सिंहासन पर बैठा व्यक्ति सदैव सिंहासन चले जाने के भय से भयभीत रहता है।वह कोई भी योजना बनाता है तो सबसे अधिक इसी बात का ध्यान रखता है कि इससे मेरी सत्ता मजबूत होगी या नहीं।
Motivational Story: जो किसी अस्त्र से पराजित नहीं होता वह काम से पराजित होता है। एक बार देवर्षि नारद के अंदर तपस्या का भाव उत्पन्न हुआ।उनकी अपनी गृहस्थी थी नहीं जो तप के मार्ग में बाधक होती।वे हिमालय में गए और गङ्गा तट पर एक मनोरम स्थान देख कर तप करने लगे। नारद ऋषि थे, तप उनका स्वाभाविक कर्म था।उन्होंने यह तपस्या किसी लोभ या इच्छा के कारण प्रारम्भ नहीं की थी,वे बस अपना कर्तव्य कर रहे थे।पर सदैव की भांति देवराज इंद्र को उनके तप से भय होने लगा।मन में वही बात आ गयी कि कहीं ये स्वर्ग का राज्य पाने के लिए तो तप नहीं कर रहे हैं? राजसिंहासन का पहला दुर्गुण यही है कि वह उसपर बैठने वाले व्यक्ति को सदैव भयभीत रखती है। सत्ता के सिंहासन पर बैठा व्यक्ति सदैव सिंहासन चले जाने के भय से भयभीत रहता है।वह कोई भी योजना बनाता है तो सबसे अधिक इसी बात का ध्यान रखता है कि इससे मेरी सत्ता मजबूत होगी या नहीं।इस भय के कारण अनेक बार वह अपने लोगों को और स्वयं का भी अहित कर देता हैसऔर जाने अनजाने अपने शत्रुओं को लाभ पहुँचाता रहता है।
यह किसी एक राजा का दोष नहीं, यह उस सिंहासन का ही दोष है। देवराज के अंदर बैठा यही सत्ता का भय उन्हें उस तपस्वी का विरोधी बना गया। जो सदैव उनके कल्याण की कामना करते रहे थे।देवराज किसी भी तरह उनकी तपस्या को भंग करने का उपाय ढूंढने लगे।यदि किसी व्यक्ति में सचमुच वैराग्य है, तो उसे न धन का लोभ तोड़ सकता है , न शक्ति का भय! उसपर एक ही अस्त्र के सफल होने की थोड़ी सी संभावना होती है, वह है काम! इतिहास छोड़िये,वर्तमान को ही निहार लीजिये। आप पाएंगे कि जो किसी अस्त्र से पराजित नहीं होता वह काम से पराजित होता है।ऐसा क्यों?काम की सफलता की संभावना अधिक क्यों है? क्योंकि यह जीव का अर्जित गुण नहीं है,यह प्रकृतिक गुण है,जन्मना गुण है।
यह उसे जन्म के साथ मिला है।धन इक्कठा करने का लोभ,शक्ति अर्जित कर के दूसरों पर शासन करने का अहंकार,यह विकास के क्रम में मनुष्य ने अर्जित किया है,अन्य जीवों में यह दुर्गुण उपलब्ध नहीं है।पर काम सबको प्रारम्भ से ही मिला है।यह गुण जलचर,थलचर, नभचर, सबमें लगभग समान रूप से उपलब्ध है।चुकी यह सृष्टि के लिए आवश्यक भी है,सो यह गुण सदैव बना भी रहेगा।तो यदि आपका कोई अपना काम के वशीभूत हो कर कुछ कुकृत्य कर रहा है,तो उसके प्रति क्रोध नहीं संवेदना दिखाइए। सच यह है कि वह अपराधी नहीं, पीड़ित है।वह फंसा हुआ है।उसे सत्य का बोध कराइये।आपकी संवेदना,आपका सहयोग उसे बाहर निकाल सकता है, आपका क्रोध उसे और गहरे धकेलता जाएगा।
तो देवराज जब अन्य सारे अस्त्रों का प्रयोग कर के थक गए,तब हर ओर फूल खिल उठे,मोहक सुगंध बिखर गया,शीतल समीर बहने लगा।सङ्गीत अप्सराओं का नृत्य होने लगा।पर नारद नही डिगे।उनका तप भंग नहीं हुआ। उन्होंने कामदेव पर भी विजय प्राप्त कर लिया,या कहें तो काम को जीत लिया। यह उनके वैराग्य की अंतिम परीक्षा थी,जिसमे वे सफल हुए।अब? अब तक तो कामदेव को पराजित करने की उपलब्धि केवल महादेव के पास थी। अब नारद के पास भी यह उपलब्धि । पर यह उपलब्धि क्या नारद के लिए सुखद थी? हमें अपने जीवन में अनेक उपलब्धियां ऐसी प्राप्त होती हैं,जो अंततः हमारे लिए कष्ट का कारक बनती हैं।हर उपलब्धि प्रसन्नता का विषय नहीं होती इसीलिए किसी उपलब्धि पर तुरंत उत्साहित नहीं होना चाहिये।
( लेखक धर्म व अध्यात्म के विशेषज्ञ हैं ।)