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Pakistan Ka Ayyash Rashtrapati: कैसे एक अय्याश प्रधानमंत्री ने इस देश को खोखला कर दिया, आइए जानते इतिहास का ये किस्सा

Pakistani Poor President Yahya Khan: याह्या खान का सैन्य करियर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुआ। उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्से के रूप में उत्तरी अफ्रीका में भेजा गया, जहां उन्होंने इटली और जर्मनी के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

AKshita Pidiha
Written By AKshita Pidiha
Published on: 22 Dec 2024 6:52 PM IST
Pakistani Poor President Agha Muhammad Yahya Khan History
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Pakistani Poor President Yahya Khan History (Photo - Social Media)

Pakistani Poor President Yahya Khan: याह्या खान, जिनका पूरा नाम आगा मोहम्मद याह्या खान था, पाकिस्तान के इतिहास के एक विवादास्पद और महत्वपूर्ण व्यक्तित्व रहे हैं। 4 फरवरी, 1917 को पेशावर में एक पश्तून परिवार में जन्मे याह्या खान ने अपने जीवन में विभिन्न भूमिकाएं निभाईं। वे एक सैन्य अधिकारी, राष्ट्रपति और एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनकी नीतियों और निर्णयों ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के गठन में अहम भूमिका निभाई।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

याह्या खान के पिता एक ईरानी आप्रवासी थे, जो ब्रिटिश भारत में आए थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में पूरी की।


बचपन से ही याह्या पढ़ाई के साथ-साथ नेतृत्व के गुणों में रुचि रखते थे। कॉलेज के बाद, उन्होंने इंडियन मिलिट्री अकादमी, देहरादून में प्रवेश लिया और 1938 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए।

सेना में प्रारंभिक करियर

याह्या खान का सैन्य करियर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुआ। उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्से के रूप में उत्तरी अफ्रीका में भेजा गया, जहां उन्होंने इटली और जर्मनी के खिलाफ लड़ाई लड़ी। युद्ध के बाद, जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ, तो याह्या खान पाकिस्तान की सेना में शामिल हो गए।


1948 में, कश्मीर संघर्ष के दौरान उन्होंने पाकिस्तानी सेना के एक महत्वपूर्ण अधिकारी के रूप में काम किया। 1951 में, याह्या को पाकिस्तानी सेना में स्टाफ कॉलेज, क्वेटा का प्रमुख नियुक्त किया गया। उनकी नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक दृष्टिकोण ने उन्हें जल्द ही एक प्रभावशाली सैन्य अधिकारी बना दिया।

सैन्य तख्तापलट और सत्ता का अधिग्रहण

1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद, याह्या खान को जनरल बनाया गया। राष्ट्रपति अयूब खान के कार्यकाल में सेना के भीतर उनका प्रभाव बढ़ता गया। लेकिन अयूब खान की सरकार 1969 तक जनता के असंतोष का सामना कर रही थी।25 मार्च, 1969 को, अयूब खान ने इस्तीफा दिया और सत्ता याह्या खान के हाथों में आ गई।


याह्या ने पाकिस्तान के तीसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने तुरंत देश में मार्शल लॉ लागू कर संसद को भंग कर दिया। उनके शासनकाल को एक सैनिक तानाशाह के रूप में देखा गया।

याहया खान तानाशाह के रूप में

1970 का आम चुनाव याह्या खान का सबसे बड़ा राजनीतिक कदम, 1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव करवाना था। यह पाकिस्तान का पहला आम चुनाव था, जिसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की ओर एक कदम माना गया। लेकिन यह चुनाव देश के लिए विभाजनकारी साबित हुआ।


इस चुनाव में, शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी, अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में भारी बहुमत हासिल किया। वहीं, जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने पश्चिमी पाकिस्तान में जीत दर्ज की।अवामी लीग की जीत के बावजूद याह्या खान और भुट्टो ने मुजीब को सत्ता हस्तांतरित करने से इनकार कर दिया। इसने पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष और हिंसा को जन्म दिया।

पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट और संघर्ष

1971 में, याह्या खान ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ नामक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान में अवामी लीग के विद्रोह को कुचलना था। लेकिन इस अभियान के दौरान पाकिस्तानी सेना ने व्यापक मानवाधिकार हनन किए।जिसमें लाखों लोगों की हत्याएं हुईं।महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया।कई गांवों को जलाया गया।इससे पूरे पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह भड़क गया। इस दौरान भारत ने शरणार्थियों की भारी संख्या को संभाला और मुक्ति वाहिनी (पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता सेनानियों) का समर्थन किया।


तानाशाही और राजनीतिक दमन- याह्या खान ने सत्ता में आते ही पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू कर दिया।उन्होंने संसद को भंग कर दिया और संविधान को निलंबित कर दिया।प्रेस की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई।उन्होंने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया और राजनीतिक विरोध को कुचलने की कोशिश की।

भ्रष्टाचार और अनैतिक जीवनशैली- याह्या खान का शासनकाल न केवल राजनीतिक असफलताओं से बल्कि भ्रष्टाचार और अनैतिक जीवनशैली से भी जुड़ा रहा।उन पर अपने दोस्तों और परिवार को बड़े सरकारी ठेके देने के आरोप लगे।उनकी निजी जिंदगी भी विवादों से घिरी रही। उनके शराब पीने और रंगीन जीवनशैली के चर्चे आम थे।

भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश का गठन

3 दिसंबर, 1971 को, पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला किया, जिसके जवाब में भारत ने युद्ध की घोषणा की। भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को पराजित किया।16 दिसंबर,1971 को, पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।


यह इतिहास में सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था, जिसमें 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाले। इसके साथ ही बांग्लादेश का गठन हुआ।

पाकिस्तान का ‘अय्याश प्रधानमंत्री’ और उनकी रंगीन मिजाज शख्सियत

याह्या खान पाकिस्तान के इतिहास में केवल एक सैन्य तानाशाह और 1971 के युद्ध में हार के लिए ही नहीं जाने जाते, बल्कि उनकी व्यक्तिगत जीवनशैली, खासतौर पर उनका रंगीन मिजाज, हाउस पार्टियों और विवादित संबंधों ने भी उनकी छवि को खासा प्रभावित किया।


उनके शासनकाल के दौरान उनकी व्यक्तिगत आदतें और आचरण देश में चर्चा और विवाद का कारण बने।

अय्याश प्रधानमंत्री क्यों कहा जाता था

याह्या खान को ‘ अय्याश प्रधानमंत्री’इसलिए कहा जाता था, क्योंकि उनका जीवन विलासिता और रंगीन मिजाजी से भरा हुआ था।याह्या खान का समय हाउस पार्टियों, शराब, और मनोरंजन के लिए मशहूर था।उनके करीबी लोगों का कहना था कि वे हर रात पार्टी करते थे और सुबह तक जश्न का माहौल रहता था।उनकी पार्टियां पाकिस्तान के उच्च वर्ग, सैन्य अधिकारियों और विदेशी राजनयिकों का केंद्र थीं।कहा जाता था कि वे रात 08 बजे से लेकर 10 बजे तक नशे मे रहते थे।जिसके बाद भी अजीब हरकत करते थे । पाकिस्तान में एक बार यह आदेश जारी कर दिया गया था कि रात के 10 बजे के बाद उनकी बात को नहीं माना जाए । जब तक की राष्ट्रपति उस पर मुहर ना लगा दें । याह्या खान के बारे में मशहूर था कि वे शराब पीने के बेहद शौकीन थे।यहां तक कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी वे शराब के नशे में फैसले लेते रहे।

इस गायिका से थे संबंध

मशहूर गायिका और अदाकारा नूरजहां के साथ याह्या खान के संबंधों की चर्चा आम थी।कहा जाता है कि याह्या खान नूरजहां की खूबसूरती और गायकी के दीवाने थे।नूरजहां को याह्या के शासनकाल में कई विशेषाधिकार प्राप्त थे।


आलोचकों का मानना था कि याह्या ने नूरजहां पर सरकारी धन और संसाधनों का उपयोग किया।कहा जाता था कि उनकी सरकार नूर के हाथों मे थी ।

1971 के युद्ध के दौरान हाउस पार्टी का विवाद

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका था, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का अलग होना शामिल था।युद्ध के समय, जब पाकिस्तान की सेना हार का सामना कर रही थी, याह्या खान अपनी हाउस पार्टियों में व्यस्त थे।


यह कहा जाता है कि 16 दिसंबर, 1971, जब पाकिस्तान की सेना ने ढाका में आत्मसमर्पण किया, उस रात भी याह्या खान इस्लामाबाद में पार्टी कर रहे थे।यह रवैया उनके नेतृत्व पर सवाल उठाने के लिए काफी था और लोगों के गुस्से का कारण बना।

देश की जनता भी थी परेशान

याह्या खान के शासनकाल में उनकी छवि एक गैर-जिम्मेदार और विलासी शासक की बनी।1971 के युद्ध में हार और बांग्लादेश के अलग होने के बाद, देश की जनता ने उन्हें देश का गुनहगार ठहराया।उनकी रंगीन मिजाज जीवनशैली और पार्टियों ने जनता में उनकी छवि को और खराब किया।पाकिस्तान के लोग उन्हें एक असफल नेता के रूप में देखते थे, जिसने देश को विभाजन की ओर धकेला।उनकी व्यक्तिगत आदतें और फैसले सेना के भीतर भी असंतोष का कारण बने।कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए।

इंदिरा गांधी से याह्या खान का रिश्ता

याह्या खान और इंदिरा गांधी के रिश्ते पूरी तरह से राजनीतिक और तनावपूर्ण थे। इंदिरा गांधी ने याह्या खान की नीतियों को कड़ी आलोचना का निशाना बनाया।याह्या इंदिरा गांधी को ‘वो महिला’ कह कर पुकारते थे । याह्या इंदिरा गांधी से नफरत करते थे ।


युद्ध से पहले इंदिरा गांधी ने कई बार याह्या खान के साथ कूटनीतिक हल निकालने की कोशिश की।लेकिन याह्या खान के हठ और सैन्य कार्रवाई ने बातचीत की संभावनाओं को खत्म कर दिया।1971 की हार के बाद, इंदिरा गांधी ने याह्या खान को एक असफल और निर्दयी नेता के रूप में दुनिया के सामने पेश किया।पाकिस्तान की इस हार ने इंदिरा गांधी की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत किया, जबकि याह्या खान की छवि पूरी तरह ध्वस्त हो गई।

याह्या खान का पतन

बांग्लादेश की स्वतंत्रता और युद्ध में हार के बाद, याह्या खान की लोकप्रियता पूरी तरह समाप्त हो गई। देश में उनके खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया। जनता और सेना का दबाव बढ़ने पर 20 दिसंबर, 1971 को उन्होंने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया।उनके उत्तराधिकारी जुल्फिकार अली भुट्टो बने, जिन्होंने याह्या खान को नजरबंद कर दिया। याह्या पर भ्रष्टाचार, खराब प्रशासन और मानवाधिकार हनन के आरोप लगाए गए।

नजरबंदी और अंतिम दिन

याह्या खान ने अपना शेष जीवन नजरबंदी में बिताया। उन्हें 1977 में नजरबंदी से रिहा किया गया। लेकिन तब तक उनका स्वास्थ्य काफी खराब हो चुका था। 10 अगस्त, 1980 को इस्लामाबाद में उनका निधन हो गया।

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि याह्या खान ने पाकिस्तान में लोकतंत्र लाने का प्रयास किया था। लेकिन उनकी रणनीतिक और राजनीतिक असफलताओं ने उनके शासन को इतिहास में एक काला अध्याय बना दिया।


याह्या खान का जीवन और शासन पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। उनकी गलतियों ने न केवल पाकिस्तान को विभाजित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि सैन्य शासन और अधिनायकवाद कैसे एक देश को अस्थिर कर सकते हैं। उनका शासन एक चेतावनी है कि लोकतंत्र और जनता की इच्छा को दबाने का प्रयास अंततः विफल होता है।



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